Monday, 13 January 2014

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आंसुओं का मोल



गीत : डीके पुरोहित

दर्द ही जानता है
आंसुओं का मोल
दूर से लगते हैं सुहाने
बैंडबाजे और ढोल

सच हमेशा कड़वा होता है
झूठ के नहीं होते पैर
गली-गली घूमे जोगी कबीरा
मांगता है सबकी खैर
बावरी दुनिया उड़ाती है
खुदा के बंदों का मखौल
दर्द ही जानता है 
आंसुओं का मोल

लोग शीशे के घर में रहते
खुद पत्थर बन गए हैं
अपना ही वजूद लगा दांव
अपने ही सामने तन गए हैं
झगड़े फसाद में भूल गए 
प्यार के दो मीठे बोल
दर्द ही जानता है
आंसुओं का मोल

जीवन समझौतों का नाम
शर्तों में जी रहे हैं
खुदगर्जी की डगर चलते
स्वार्थ की हाला पी रहे हैं
अपनी धुरी पर घूमती धरा
आदमी भी है गोल-मोल
दर्द ही जानता है
आंसुओं का मोल।

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