गजल: डी.के. पुरोहित
चलो फिर कोई नई बात करें
गैर नही ंतो अपनों पर घात करें
अपराध का कोई समय नहीं होता
इसे हर दिन, हर इक रात करें
सजा कौन दे सकता है हमें
कचहरी में फाइलों से मुलाकात करें
गलती से गर हो गया दुष्कर्म
फिर रुपयों से मामला शांत करें
थाना हमारा, सरकार हमारी
फिर अफसरों से किस बात डरें
अंग्रेज चले गए आजादी देकर
कहां गई आजादी मालूमात करें ।
Saturday, 2 November 2013
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डीके जी
ReplyDeleteअपनी बात कहने का ब्लॉग अच्छा जरिया है।
D.K Really U Got a nice Platform
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