Sunday, 13 July 2014

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बाल कविता : डी.के. पुरोहित

चित्रकार तुम चित्र बनाओ

चित्रकार तुम चित्र बनाओ
नूतन शैली अपनाओ
एक महल हो सपनों का
जिस पर चंदा मुस्काए
करते हों तारे झिल-मिल
हवा चांदनी संग गाये
पास कहीं झरना बहता हो
मीठी राग सुनाए
हरियाली धानी चूनर हों
प्रेम पुष्प महकाये
करतें हों पक्षी कलरव
और झूमें वृक्ष लताएं
सुर-संगीत सुनाये कान्हा
ऐसा मधुवन लाओ
चित्रकार तुम चित्र बनाओ।

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