Saturday, 12 July 2014

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बाल कविता : डी.के. पुरोहित

सुबह सुहानी आई

छंटा अंधेरा धीरे-धीरे
सुबह सुहानी आई
चीं-चीं चिड़िया चहकीं
और गाय रंभाई
छोड़ो बिस्तर उठ जाओ
मुर्गे ने बांग लगाई
आसमान पर उभरी लाली
सूरज ने किरणें फैलाई
शांत सरोवर कल-कल करते
लहरों ने तेजी दिखाई
पेड़-पौधे नव स्फूर्त हुए
बागों में कलियां मुस्काई
छंटा अंधेरा धीरे-धीरे
सुबह सुहानी आई। 

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