Sunday, 13 July 2014

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बाल कविता : डी.के. पुरोहित

चंदा आए

शाम हुई निकले तारे
चंदा छत पर आए
चांदनी मुट्ठी में भरने
बाल मन ललचाए
अपनी छाया देखकर
अचरज में पड़ता जाए
दूर गगन में बैठा
चांद इस पर मुस्काए
चांद बड़ा ही सुंदर
अपने दाग कहां छिपाये
यही सोच-सोच उसका
रूप घटता जाए
शाम हुई निकले तारे
चंदा छत पर आए।

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