Thursday, 10 July 2014

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बाल कविता: डी.के. पुरोहित



जलियां वाला बाग

जलियां वाले बाग की
भूल न जाना कुर्बानी
जब भी कोई चीख सुनो
सड़कों पर बिखरे खून
आंखों के सामने अन्याय देखकर
रह न जाना बिन सुन
डायर की शैतानी का
फिर ना कहीं दोहराव हो
भारत मां के सीने पर
कहीं ना गहरा घाव हो
आजादी की कीमत हमको
कभी नहीं है बिसरानी। 
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