Sunday, 13 July 2014

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बाल कविता : डी.के. पुरोहित


वंदना


जय-जय-जय जगतपति
जय-जय भारत भारती
तू तेजोमय बलशाली
तू निज सुतों को तारती
मस्तक बना हिमालय
गंगा चरण पखारती
काश्मीर की वादियां
तेरा रूप निखारती
अलग-अलग धर्मों की
पुनीत ध्वजा तू धारती
भिन्न-भिन्न भाषाएं
तेरी शोभा बखानती
हरियाली की धानी चूनर
तेरा उर है संवारती
जय-जय-जय जगतपति
जय-जय भारत भारती।

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