Sunday, 13 July 2014

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बाल कविता : डी.के. पुरोहित

तिमिर ने मात खाई

रात अंधेरी घिर आई
बादल पहरेदार हुए
नहीं चांद की चांदनी
तारे परदेदार हुए
इस निशा का अंत न होगा
शंकाओं ने डेरा डाला
वर्षा ने उत्पात मचाया
तूफान उठा मतवाला
दिवले पर संकट छाया
डगमगाई बाती की तार
आज उजाले पर कहीं
अंधियारा न हो जाये सवार
मगर रोशनी का संघर्ष जीता
तिमिर ने मात खाई
राह गहन अंधेरी चाहे
सदा सुबह सुहानी आई। 

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