कविता: राखी पुरोहित
पापा!
आज मेरी आंखें
कलश हो गई हैं
उस दिन
जब आपने मुझे
शादी पर
विदा किया था
तब भी मेरे नैन
नीर पी गए थे
बिछोह का दर्द
सह गया था मन
मैं जानती थी
मेरे जाने पर
पापा अकेले हो गए थे
बेटी पर प्यार लुटाने वाले
पिता रेलगाड़ी में
सेवा के सफर पर
परिवार के दायित्वों की मंजिल
खोजते रहे
सेवा के साथी
काम की व्यस्तता
पापा को मेरे जाने का दर्द
सहने की शक्ति देते रहे
मैं जानती हूं पापा
आज आप अकेले हैं
नितांत अकेले
जीवन की पटरी पर
आज एक रेलगाड़ी
रिटायर हो गई
इंजन में आज भी ऊर्जा है
डिब्बे भी दमखम रखते हैं
मगर समय ने
सेवा के आगे समर्पण कर दिया
अब साठ साल के इंजन को
सरकार ने विश्राम दिया है
मगर सही मायने में
सफर तो अब शुरू हुआ है
अब आपको चलना है
अकेले
अपने बल पर
मुश्किल सफर
मेरे पापा आसान बनाते हैं
फर्श से अर्श की कहानी
उनकी मेहनत-समर्पण
खुद बयां करती है
पापा!
आप निराश बिल्कुल मत होना
समय का सच यही है
वर्तमान अतीत बनता है
मगर भविष्य कभी
खत्म नहीं होता
अब आपको
अपने लिए गढ़नी होगी
नई पटरी
नए सफर के लिए
हम सब भाई-बहन
और आपकी जीवनसंगिनी
आपके साथ हैं
हमारे जीवन में
प्यार की शक्ति है
पापा! आप और हम
इस सफर को देंगे पूर्णता।
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