-पंडित अमृतलाल वैष्णव विख्यात ज्योतिर्विद, हस्तरेखा विशेषज्ञ और वास्तुविद हैं। इन्हें राज्य स्तरीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रपति से पुरस्कार मिल चुका है। उनकी पुस्तक ‘संक्षिप्त वास्तु-शास्त्र’ के प्रस्तुत हैं यहां मुख्य अंश-
भाग-वन
वर्ग या आयत में भूखंड जो होई,
सबसे सुंदर प्लाट हो सोई।
वृत्ताकार भूखंड भी ले आना,
अपने घर श्री लक्ष्मी बसाना।
जो भूखंड हो गोमुख आकार,
आवास निर्माण जरूर हो साकार।
नाहर मुख भूखंड व्यवसाय कर लो,
धन-दौलत से आंगन भर लो।
जो गोमुख में व्यवसाय होई,
निष्चय फले नहीं व्यवसाय सोई।
नाहर मुख आवास जो होई,
धन व चैन हड़पि ले दोई।
जो नाहर मुखी भवन में जावे,
तन-मन-धन अपार सकल नसावै।
भूखंड के चारों ओर जो मार्ग हो,
सर्वश्रेष्ठ प्लाट जैसे स्वर्ग हो।
यदि कोण ईशान कटा होगा,
भाइयों व साझेदारों से टंटा होगा।
पश्चिम दिशा यदि मध्य से कटी हो,
राजप्रकोप की लाठी, वहां टूटी हो।
नैर्ऋत्य कोण का यदि विस्तार हो,
कानूनी समस्याओं का लगे अंबार हो।
ईशान को छोड़ कोई कोण बढ़ा हो,
समकोण उसे तब जरूर करा लो।
नाहर मुख व्यवसाय हेतु प्लाट लिया,
वास्तुशास्त्री से क्या संपर्क किया।
आवास हेतु गोमुख भूखंड उत्तम है,
वास्तु शास्त्री की राय निर्माण में प्रथम है।
सौ पद का वास्तु मंडल सर्वश्रेष्ठ है,
इक्यासी पद का वास्तु भी श्रेष्ठ है।
चौसठ पद का वास्तु भी है अच्छा,
तदनुसार नक्शा बनाओ सच्चा।
आजकल चलन में बाद के वास्तु दोय,
पहला महल या नगर में वांछित होय।
यदि भूखंड हो बहुत बड़ा,
81 पदीय वास्तु पर उसे करें खड़ा।
काफी छोटा हो भूखंड सारा,
64 पदीय वास्तु का लो सहारा।
मर्म स्थलों का रखो पूरा ध्यान,
बचाकर उन्हें कराओ निर्माण।
मर्मस्थल पृथ्वी धर पर न हो खंभा,
घर आएगी लक्ष्मी नाचेगी रंभा।
ब्रह्मस्थल पर भी न कराओ निर्माण,
सुखी समृद्ध और बनें धनवान।
भूखंड में प्रवेश कहाता मुख्यद्वार,
आवास में प्रवेश है, मुख्य उपद्वार।
ये दोनों मुख्य द्वार ही कहलाते हैं,
निर्दिष्ट स्थान पर सुखी बनाते हैं।
मुख्य द्वार ईशान या दक्षिण आग्नेय हो,
या पश्चिम दिशा में कोण वायव्य हो।
मार्ग दो ओर हो उत्तर व पूर्व,
प्लाट होगा वह श्रेष्ठ एवं अपूर्व।
यदि मार्ग होगा पूर्व व उत्तर,
श्रेष्ठ प्लाट है, ले लो तत्पर।
मार्ग हो यदि उत्तर व पच्छम,
निष्चय ही प्लाट यह होगा उत्तम।
पष्चिम दक्षिण मार्ग हो तो भी,
उत्तम प्लाट कहलाए वो भी।
पूर्व दक्षिण जिसके यदि मार्ग होगा,
प्लाट बहुत ही अच्छा वह होगा।
स्थान शुद्धि पहले करा लो,
मनचाहा वास्तु अनुकूल घर बना लो।
हो शास्त्र रीति से यदि गृह निर्माण,
सर्वदा करेगा आपका भव कल्याण।
मर्म, अतिमर्म का रखें ध्यान,
तरक्की दिन दूनी रात महान।
शिलान्यास पहला, प्रथमद्वार दूजा,
वास्तु मंडल की कराएं पूजा।
छत डालना तीजा, गृह प्रवेश चौथा,
ये चार वास्तु पूजन का मौका।
नैर्ऋत्य से नीचा आग्नेय कोण,
आग्नेय से नीचा वायव्य कोण।
वायव्य से नीचा कोण ईशान होना,
सुख-ऐष्वर्य-शांति की माला पोना।
नींव की खुदाई करें ईशान से,
घर बनाएं फिर शान से।
ईशान से फिर वायव्य को खोदें,
भावी जीवन में बीज, सुख के बो दें
फिर ईशान से आग्नेय खोदना,
सुखद घर निर्माण की योजना।
फिर वायव्य से नैर्ऋत्य में जाएं,
अड़चनें सारी दूर भगाएं।
आग्नेय से नैर्ऋत्य फिर खुदाएं
पुत्रोन्नति का मार्ग बनाएं।
वास्तु नियमानुसार करें निर्माण,
सुख-सौभाग्य उन्नति प्रमाण।
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