Thursday, 24 July 2014

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कविता: राखी पुरोहित


मां

यह कि मेरा अस्तित्व
तुझसे जुड़ा है
यह कि तुम
संसार का सार हो
यह कि तुम ममता-प्यार हो
यह कि तुम 
मेरे अतीत की साथी
वर्तमान की बाती
भविष्य का शृंगार हो
जब-जब मैं होती उदास
तुम मेरे चेहरे को पढ़ लेती
मुझे हर खुशी देने
हमेशा रहती थी तत्पर
मैं रोती तो
तुम्हारा भी दिल रोता
मेरे आंसू पौंछने
तेरे हाथ सबसे पहले उठते
मैं तो जिद्दी थी,
मगर तुम मेरी हर ख्वाहिश 
पूरी करती थी
मेरी इच्छा पूरी करने
तुम सबसे झगड़ती थी
पर नसीब को 
कुछ और ही था मंजूर                         
तेरा दर छूटा
जा पहुंची मैं बहुत दूर
लेकिन तेरी यादें हमेशा 
मेरे पास है
आज भगवान से ज्यादा
किसी को पूजती हूं तो
वह तुम हो
क्योंकि उसको देखा नहीं है
पर तुमने दिखाई है
ये हंसी दुनिया
एक पल के लिए
उसे भूल जाऊंगी 
पर तेरे एहसान नहीं-
मां!



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