आओ मिलो मेरे गीतों से
आओ मिलो मेरे गीतों से
इनसे आंखें चार करो।
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो।
मेरे गीत तो धवल चांदनी
रातों का श्रंगार है।
प्यासी धरती पर जैसे
बादल की मल्हार है।
मंद पवन का झोंका बन
उनका तुम दीदार करो।
सौ-सौ फूल गुलाबों के
यह बांहों का गलहार है।
हर मौसम में मुस्काते
यह तो सदाबहार है।
दिल जजबातों को समझे,
इनसे तुम इकरार करो।
_______________________________________
(2)
गीत : डी.के. पुरोहित
ये बहार, ये फिजां
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
प्यार की वो मंजिलें
फिर कभी मिलेगी नहीं
रास्तों को ढूढ़ते
बढ़ चले जो कदम
मन मरीचिका हुआ
मिट न पाया भरम
प्यासी रतियां कभी
नींद को सहेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
प्यार की वो मंजिलें
फिर कभी मिलेगी नहीं
नासमझ नहीं थे हम
साफ था हमारा मन
समझाने उनको भला
क्या कम किए जतन
बेरहम हवा ने कहा-
वो अब बहेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
प्यार की वो मंजिलें
फिर कभी मिलेगी नहीं
दो किनारे हम हुए
नादां लहर मचलती रही
सागर की खामोषियां
बादलों को छलती रहीं
कैसे अमरित गिरे
जब भाप उठेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
प्यार की वो मंजिलें
फिर कभी मिलेगी नहीं।
आओ मिलो मेरे गीतों से
इनसे आंखें चार करो।
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो।
मेरे गीत तो धवल चांदनी
रातों का श्रंगार है।
प्यासी धरती पर जैसे
बादल की मल्हार है।
मंद पवन का झोंका बन
उनका तुम दीदार करो।
सौ-सौ फूल गुलाबों के
यह बांहों का गलहार है।
हर मौसम में मुस्काते
यह तो सदाबहार है।
दिल जजबातों को समझे,
इनसे तुम इकरार करो।
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(2)
गीत : डी.के. पुरोहित
ये बहार, ये फिजां
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
प्यार की वो मंजिलें
फिर कभी मिलेगी नहीं
रास्तों को ढूढ़ते
बढ़ चले जो कदम
मन मरीचिका हुआ
मिट न पाया भरम
प्यासी रतियां कभी
नींद को सहेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
प्यार की वो मंजिलें
फिर कभी मिलेगी नहीं
नासमझ नहीं थे हम
साफ था हमारा मन
समझाने उनको भला
क्या कम किए जतन
बेरहम हवा ने कहा-
वो अब बहेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
प्यार की वो मंजिलें
फिर कभी मिलेगी नहीं
दो किनारे हम हुए
नादां लहर मचलती रही
सागर की खामोषियां
बादलों को छलती रहीं
कैसे अमरित गिरे
जब भाप उठेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
प्यार की वो मंजिलें
फिर कभी मिलेगी नहीं।
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