Saturday, 2 November 2013
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वे नारों से देश बदल रहे हैं
गजल: डी.के. पुरोहित
वे नारों से देश बदल रहे हैं
मुंह में राम बगल में छुरियां ले चल रहे हैं
पानी मिले न मिले गांव-शहर में
दारु के दरिया हर गली निकल रहे हैं
विकास के नाम पर पेड़ कट रहे
धुंआ घड़ी भर का चैन निगल रहे हैं
जिधर देखो उधर हालात विकट है
परछाइयों के भी अब पर निकल रहे हैं
हत्या, लूट, डकैती और दुष्कर्म
अपराध की होड़ में आगे निकल रहे हैं
देश अपना है रहम करो यारों
घर में ये कैसे जंगल पल रहे हैं
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D.K.Purohit
Sub Editor, Dainik Bhaskar, Jodhpur
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