-इतिहास में बताया गया है कि चाणक्य जब राजकीय कार्य करता था तो सरकारी दीपक जलाता था और घर का कार्य करता था तो उसे बंद कर देता था। पर यह इतिहास की बात है। आज के सरकारी कर्मचारी और अधिकारी नया इतिहास बना रहे हैं। सरकारी वाहनों का निजी कार्यों में उपयोग कर रहे हैं। फैमिली सहित सैर-सपाटा करते हैं। फर्जी बिल बनाते हैं। फर्जी यात्रा बताकर कमाई का जरिया बना लिया है। इन दिनों चुनाव चल रहे हैं। चुनाव के नाम पर सरकारी अधिकारी वाहनों का जमकर दुरुयोग कर रहे हैं और कमाई भी कर रहे हैं...
-डी.के. पुरोहित-
जोधपुर। सुबह का समय। शास्त्रीनगर स्थित सेंटपाॅल्स स्कूल। कई सरकारी वाहन यहां खड़े रहते हैं। किसलिए? साब के बच्चों को स्कूल छोड़ना होता है। ऐसे ही नजारे डीपीएस, जीएस जांगिड़, लक्की बाल निकेतन सहित शहर की कई स्कूलों के साथ काॅलेजों में भी देखे जा सकते हैं। यहां तक की कोचिंग सेंटर और कंप्यूटर इंस्टीट्यूट के बाहर भी सरकारी वाहनों में साब लोगों के बच्चे आते-जाते हैं।
ये बात छोटी है। पर इसके मायने बड़े हैं। ऐसा क्यों? साब लोगों की आदत पड़ चुकी है। अब सरकारी अधिकारियों के बच्चे सरकारी वाहनों में पढ़ने के लिए जाते हैं। यही नहीं हर छोटे-बड़े काम भी सरकारी वाहनों में होते हैं। वाहन शाम होते ही कलेक्ट्रेट में खड़े होने चाहिए, मगर ये वाहन साब लोगों के घर के आगे खड़े रहते हैं।
मेम साब की शाॅपिंग भी सरकारी वाहन में
सरकारी अधिकारियों का रवैया भी कुछ ऐसा ही है। अगर मंडी से सब्जी लानी है तो सरकारी वाहन का यूज होगा। अगर मैम साब की शाॅपिंग करवानी है तो भी सरकारी वाहन जाएगा। शहर के जालोरी गेट, नई सड़क, घंटाघर, रातानाडा और कई स्थानों पर ऐसे नजारे देखे जा सकते हैं। इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। कलेक्टर गौरव गोयल भी कोई कार्रवाई नहीं करते। ऐसा नहीं है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है, मगर अब ऐसा होना फैशन हो गया है। सरकारी वाहनों का साब लोग घरों में उपयोग नहीं करेंगे तो कौन करेगा? यहां तक की धोबी को कपड़े इस्त्री के लिए देने हैं तो भी सरकारी वाहन जाएगा।
फैमिली सहित सैर सपाटा
कहीं घूमने जाना है। फैमिली के साथ। तो भी सरकारी वाहन ही काम में आता है। बस टूर बनाने की जरूरत है। आम का आम, गुटली के दाम। काम भी हो जाता है और घूमना भी। ऐसा वर्षों से चल रहा है। अब अधिकारियों की आदत बन चुकी है। इस आदत को किसी कलेक्टर ने बदलने की कोशिश नहीं की। किसी जिले में ऐसी कार्रवाई करते किसी कलेक्टर को नहीं देखा गया।
कथा सुनने जाते हैं तो भी सरकारी वाहन
शहर में कई जगह भागवत कथाएं और अन्य धार्मिक आयोजन होते हैं। यहां भी सरकारी वाहन खड़े देखे जा सकते हैं। एक तरफ साब के माता-पिता और बीवी कथा सुनने जाती हैं और ज्ञान की बातें सीखती हैं और दूसरी ओर सरकारी कोष को चूना लगाकर और नैतिकता का हनन करने के मामले सामने आना आम बात है।
मरु मेले के दौरान सैकड़ों अधिकारी आएंगे
जैसलमेर में प्रति वर्ष मरु मेला आयोजित होता है। इस मेले में देश के कोने-कोने से सरकारी अधिकारी अपने परिवार सहित सरकारी वाहनों में आते हैं। इस दौरान कई कार्यशालाएँ, संगोष्ठियां, बैठकें और टूर बनते हैं। ये सभी बाकायदा मरु मेले के पीरियड़ में होते हैं और इसका निर्धारण मरु मेले का आनंद लेने के लिए किया जाता है। सरकारी अधिकारी अपनी फैमिली सहित जैसलमेर आते हैं। ऐसा वर्षों से चल रहा है और जारी है।
चुनाव में पानी की तरह बह रहा है सरकारी धन
इन दिनों विधानसभा चुनाव है। यह केवल जोधपुर की बात ही नहीं है। समूचे राजस्थान में सरकारी वाहनों का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। चुनाव के नाम पर सरकारी वाहनों का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। फर्जी बिल बन रहे हैं। सरकारी अधिकारियों के साथ ही ड्राइवर भी कमाई कर रहे हैं। ऐसा खुल्लेआम हो रहा है और इसकी जांच भी नहीं होती। इन दिनों माॅनिटरिंग और जांच-पड़ताल के नाम पर सरकारी वाहन घूमते रहते हैं। एक तरफ उम्मीदवारों से आचार संहिता के नाम पर उगाही चल रही है वहीं दूसरी ओर सरकारी वाहनों का फर्जी बिल भी बनता है। चुनाव अधिकारियों के लिए कमाई का जरिया बने हुए हैं। सरकारी धन पानी की तरह बह रहा है। कौन रोके? सभी कमाई में लगे हुए हैं।
कलेक्ट्रेट पर वाहन खड़े नहीं होते
नियमानुसार शाम होते ही सरकारी वाहन कलेक्ट्रेट पर खड़े होने चाहिए। यही नहीं अगर सरकारी वाहन कलेक्ट्रेट पर खड़े नहीं हो तो सरकारी कार्यालयों के आगे खड़े होने चाहिए, लेकिन सरकारी अधिकारी वाहनों को अपने घर के आगे खड़े रखते हैं। यही नहीं सरकारी वाहन सरकारी बंगलों के पोर्च में खड़े रहते हैं। नियम बनाने वाले ही नियमों को तोड़ रहे हैं। कलेक्टर गौरव गोयल ने भी इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। ऐसा आए रोज हो रहा है। नियमित। बेरोकटौक। मगर प्रशासन भी सख्त कदम नहीं उठा रहा। प्रशासन की निष्क्रियता के चलते अधिकारियों के मौज हैं।
-डी.के. पुरोहित-
जोधपुर। सुबह का समय। शास्त्रीनगर स्थित सेंटपाॅल्स स्कूल। कई सरकारी वाहन यहां खड़े रहते हैं। किसलिए? साब के बच्चों को स्कूल छोड़ना होता है। ऐसे ही नजारे डीपीएस, जीएस जांगिड़, लक्की बाल निकेतन सहित शहर की कई स्कूलों के साथ काॅलेजों में भी देखे जा सकते हैं। यहां तक की कोचिंग सेंटर और कंप्यूटर इंस्टीट्यूट के बाहर भी सरकारी वाहनों में साब लोगों के बच्चे आते-जाते हैं।
ये बात छोटी है। पर इसके मायने बड़े हैं। ऐसा क्यों? साब लोगों की आदत पड़ चुकी है। अब सरकारी अधिकारियों के बच्चे सरकारी वाहनों में पढ़ने के लिए जाते हैं। यही नहीं हर छोटे-बड़े काम भी सरकारी वाहनों में होते हैं। वाहन शाम होते ही कलेक्ट्रेट में खड़े होने चाहिए, मगर ये वाहन साब लोगों के घर के आगे खड़े रहते हैं।
मेम साब की शाॅपिंग भी सरकारी वाहन में
सरकारी अधिकारियों का रवैया भी कुछ ऐसा ही है। अगर मंडी से सब्जी लानी है तो सरकारी वाहन का यूज होगा। अगर मैम साब की शाॅपिंग करवानी है तो भी सरकारी वाहन जाएगा। शहर के जालोरी गेट, नई सड़क, घंटाघर, रातानाडा और कई स्थानों पर ऐसे नजारे देखे जा सकते हैं। इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। कलेक्टर गौरव गोयल भी कोई कार्रवाई नहीं करते। ऐसा नहीं है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है, मगर अब ऐसा होना फैशन हो गया है। सरकारी वाहनों का साब लोग घरों में उपयोग नहीं करेंगे तो कौन करेगा? यहां तक की धोबी को कपड़े इस्त्री के लिए देने हैं तो भी सरकारी वाहन जाएगा।
फैमिली सहित सैर सपाटा
कहीं घूमने जाना है। फैमिली के साथ। तो भी सरकारी वाहन ही काम में आता है। बस टूर बनाने की जरूरत है। आम का आम, गुटली के दाम। काम भी हो जाता है और घूमना भी। ऐसा वर्षों से चल रहा है। अब अधिकारियों की आदत बन चुकी है। इस आदत को किसी कलेक्टर ने बदलने की कोशिश नहीं की। किसी जिले में ऐसी कार्रवाई करते किसी कलेक्टर को नहीं देखा गया।
कथा सुनने जाते हैं तो भी सरकारी वाहन
शहर में कई जगह भागवत कथाएं और अन्य धार्मिक आयोजन होते हैं। यहां भी सरकारी वाहन खड़े देखे जा सकते हैं। एक तरफ साब के माता-पिता और बीवी कथा सुनने जाती हैं और ज्ञान की बातें सीखती हैं और दूसरी ओर सरकारी कोष को चूना लगाकर और नैतिकता का हनन करने के मामले सामने आना आम बात है।
मरु मेले के दौरान सैकड़ों अधिकारी आएंगे
जैसलमेर में प्रति वर्ष मरु मेला आयोजित होता है। इस मेले में देश के कोने-कोने से सरकारी अधिकारी अपने परिवार सहित सरकारी वाहनों में आते हैं। इस दौरान कई कार्यशालाएँ, संगोष्ठियां, बैठकें और टूर बनते हैं। ये सभी बाकायदा मरु मेले के पीरियड़ में होते हैं और इसका निर्धारण मरु मेले का आनंद लेने के लिए किया जाता है। सरकारी अधिकारी अपनी फैमिली सहित जैसलमेर आते हैं। ऐसा वर्षों से चल रहा है और जारी है।
चुनाव में पानी की तरह बह रहा है सरकारी धन
इन दिनों विधानसभा चुनाव है। यह केवल जोधपुर की बात ही नहीं है। समूचे राजस्थान में सरकारी वाहनों का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। चुनाव के नाम पर सरकारी वाहनों का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। फर्जी बिल बन रहे हैं। सरकारी अधिकारियों के साथ ही ड्राइवर भी कमाई कर रहे हैं। ऐसा खुल्लेआम हो रहा है और इसकी जांच भी नहीं होती। इन दिनों माॅनिटरिंग और जांच-पड़ताल के नाम पर सरकारी वाहन घूमते रहते हैं। एक तरफ उम्मीदवारों से आचार संहिता के नाम पर उगाही चल रही है वहीं दूसरी ओर सरकारी वाहनों का फर्जी बिल भी बनता है। चुनाव अधिकारियों के लिए कमाई का जरिया बने हुए हैं। सरकारी धन पानी की तरह बह रहा है। कौन रोके? सभी कमाई में लगे हुए हैं।
कलेक्ट्रेट पर वाहन खड़े नहीं होते
नियमानुसार शाम होते ही सरकारी वाहन कलेक्ट्रेट पर खड़े होने चाहिए। यही नहीं अगर सरकारी वाहन कलेक्ट्रेट पर खड़े नहीं हो तो सरकारी कार्यालयों के आगे खड़े होने चाहिए, लेकिन सरकारी अधिकारी वाहनों को अपने घर के आगे खड़े रखते हैं। यही नहीं सरकारी वाहन सरकारी बंगलों के पोर्च में खड़े रहते हैं। नियम बनाने वाले ही नियमों को तोड़ रहे हैं। कलेक्टर गौरव गोयल ने भी इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। ऐसा आए रोज हो रहा है। नियमित। बेरोकटौक। मगर प्रशासन भी सख्त कदम नहीं उठा रहा। प्रशासन की निष्क्रियता के चलते अधिकारियों के मौज हैं।
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