Sunday, 24 November 2013

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पैसों की खातिर प्रदेश में बिक रही हैं बेटियां

-राजस्थान में बेटियां पैसों की खातिर बेची जा रही हैं। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें बेटियों को तीन गुना अधिक उम्र के लोगों के साथ रुपए लेकर ब्याह दी गई, कुछ मामलों में बेटियों ने विरोध किया और अंततः शादी तोड़कर रोशनी की किरण तलाशने में जुट गईं....

-डी.के. पुरोहित-

केस: एक: बीकानेर जिला। 17 साल की अमिया की शादी 54 साल के वृद्ध नारायण के साथ कर दी। महज 50 हजार रुपए की खातिर। अमिया ने कोर्ट की शरण ली और शादी के बंधन से मुक्त हुई।

केस: दो: पोकरण तहसील का नेडाणा गांव। 17 साल की आसू कंवर की शादी 35 साल के सवाईसिंह के साथ तय कर दी गई। शराबी पिता ने 49 हजार रुपए नकद व एक सोने के हार के बदले बेटी का सौदा कर लिया। एक एनजीओ ने बीच-बचाव कर रिश्ता तुड़वाया।

केस: तीन: अजमेर जिला। 15 साल की भवंती। दादा ने दो लाख रुपए लेकर नाबालिग की शादी तिगुनी उम्र के व्यक्ति के साथ कर दी। ‘सारथी’ संस्था के बीच बचाव से मामला सामने आया और शादी निरस्त करवाने के लिए भवंती कोर्ट पहुंची।

जोधपुर। नारी सशक्तिकरण के कितने ही ढोल पीटे जाएं और महिलाओं को आरक्षण मिल भी जाए तो पुरुष प्रधान समाज में उसकी स्थिति में खास फर्क नहीं आया है। राजस्थान में बेटियां न घर में सुरक्षित है और न ही बाहर। हालत यह है कि बेटियों को उनके माता-पिता और घर के बुजुर्ग पैसों की खातिर तीन गुना बड़े लोगों से ब्याह रहे हैं। कई मामलों में बेटी सब कुछ सहन कर लेती है, लेकिन अब विरोध भी मुखर होने लगा है। स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से ऐसे मामले सामने आने लगे हैं और बेटियों को न्याय भी मिलने लगा है।

राजस्थान के अजमेर जिले का ताजा मामला सामने है। 15 साल की भवंती सेन के दादा ने दो लाख रुपए लेकर उसका विवाह लगभग तिगुनी उम्र के व्यक्ति से कर दिया था। विरोध जताने पर उसने न सिर्फ भवंती के माता-पिता को बंधक बना लिया बल्कि जाति पंचों से धमकी भी दिलाई। शुक्रवार को भगत की कोठी स्थित सारथी कार्यालय में पत्रकार वार्ता में संस्था की कार्यकर्ता कृति भारती ने यह मुद्दा उजागर किया। यह पहला मामला नहीं है। जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर, जैसलमेर, नागौर, अजमेर और अन्य कई जिलों में जो स्थिति सामने आ रही है, वह चौकाने वाली है। राजस्थान में पैसे लेकर बेटियों की शादी बड़ी उम्र के लोगों के साथ करने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। मगर सरकार कोई सख्त कदम नहीं उठाती। न ही ऐसे लोगों को सजा मिल पाती। मामलों में जातीय पंचों की भूमिका हमेशा खलनायकी वाली रही है। बेटी को न्याय दिलाने की बजाय अन्याय का साथ दिया जाता है। दूसरी ओर बेटियां भी मुखर होकर विरोध नहीं कर पाती। इक्का-दुक्का मामले ही सामने आते हैं, वे भी एनजीओ के माध्यम से।

अजमेर की भवंती के मामले में भी सारथी संस्था की कृति भारती ने पहल की। अब उम्मीद की जा सकती है कि कोर्ट से भवंती को न्याय मिलेगा। लेकिन ऐसी कितनी ही भंवती है, जिन्हें भी सहारे की जरुरत है।

गरीबी की वजह से बढ़ रहे हैं मामले

राजस्थान में बेटियों को इस तरह बेचने के पीछे पारिवारिक गरीबी भी बड़ा कारण माना जाता है। माता-पिता के सामने घर खर्च चलाने और बेटी का ब्याह आसानी से करने के लिए यही रास्ता अपनाया जाता है। लेकिन इससे अपनी ही बेटी के साथ वे अन्याय कर रहे हैं। इस अन्याय को रोकने की दिशा में किसी सरकार ने कार्य नहीं किया। चाहे वसुंधरा राजे की सरकार रही हो और चाहे अशोक गहलोत की। दोनों ही मुख्यमंत्रियों ने बेटी को इस अन्याय से बचाने के लिए पहल नहीं की। योजनाएं तो खूब बनी मगर बेटी को न्याय नहीं मिला।

पिछड़ी जातियों में मामले अधिक

इस तरह शादी करवाने के मामले पिछड़ी जातियों में अधिक सामने आ रहे हैं। माता-पिता बेटियों को ज्यादा उम्र के साथ शादी करने को मजबूर कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसा हाल ही में हो रहा हो, बल्कि ये परंपरा वर्षों से चली आ रही है। खासकर पश्चिमी राजस्थान में आए साल अकाल पड़ने और रोजगार के अवसर कम होने की वजह से गरीबी व मजबूरी में बेटियां बेची जा रही हैं।

शिक्षा की वजह से कुछ जागृति आई है

नाबालिग बेटियों को अधिक उम्र के व्यक्ति के साथ पैसे लेकर ब्याहने के मामले अब सामने आने लगे हैं। बेटियां खुद आगे आकर यह रिश्ता ठुकराने लगी हैं, लेकिन ऐसे मामलों में पुलिस की भूमिका सकारात्मक नहीं रही है। पुलिस बेटी के साथ न्याय करने की बजाय समझौता करवाने में जुट जाती है। भला हो एनजीओ का जो इस तरह के मामलों में धैर्य, संयम और स्वाभिमान बेटी का साथ देते हैं। महिला एवं बाल विकास केंद्र की परियोजना निदेशक इंदू चोपड़ा ने पूर्व में ऐसे मामलों को उजागर किया है और बेटियों को न्याय दिलाया है। दिल्ली की विजया सानी ने भी ऐसे मामलों के खिलाफ अभियान चलाया है।

कोर्ट पर ही भरोसा कायम

बेटियों के साथ हो रहे अन्याय के मामलों में कोर्ट पर ही भरोसा कायम रहा है। पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता और ले-देकर मामला रफा-दफा करने की परिपाटी से राजस्थान में बेटियों के साथ अन्याय हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में कोर्ट की सजगता से ऐसे मामलों को उठाया गया और प्रसंज्ञान लेते हुए बेटियों को न्याय भी दिलाया है। लोकतंत्र में अब न्यायपालिका पर ही भरोसा कायम है, नेता, नौकरशाह और दबाव समूहों ने गठबंधन कर आम आदमी का जीना मुश्किल कर दिया है। ऐसे में बेटियों को न्याय दिलाने के लिए कोर्ट पर भी भरोसा बचा है।

बेटी को भार समझना भूल

बेटियों को बेचने के मामले के पीछे बेटियों को भार समझना है। आमतौर पर राजस्थान में बेटी के जन्म पर खुशियां नहीं मनाई जाती। बेटी होना मतलब परिवार पर भार। बेटियों को समाज में उचित स्थान नहीं मिलता। हालांकि परिस्थितियां बदल रही हैं, मगर अभी भी परंपरावादी लोग बेटियों की कम उम्र में ही शादी करवाना चाहते हैं, फिर चाहे बड़ी उम्र के दूल्हों के हाथों बेचा ही क्यों न जाए। एडवोकेट एल.एन. मेहता का कहना है कि ऐसे मामलों में कोर्ट के माध्यम से बेटियों को न्याय दिलाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि राजस्थान में अब जागरूकता आ रही है, मगर कई मामलों में आज भी परंपराएं हावी हैं, जिनका जवाब केवल जागरूकता व शिक्षा ही है। जागरूक और शिक्षित होकर ही बेटी को न्याय दिलाया जा सकता है।

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