Tuesday, 12 November 2013

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सिमटते धोरों से जैसलमेर में लोंगटर्म टूरिज्म खतरे में

-विश्व विख्यात जैसलमेर यानि गोल्डन सिटी में सोने से चमकने वाले मखमली धोरे सिमटते जा रहे हैं, सम और खुहड़ी में रेतीले-सर्पिले इसी तरह घटते रहे तो लोंगटर्म टूरिज्म खतरे में हो सकता है

-डी.के. पुरोहित-

जैसलमेर । जैसलमेर अब पहले जैसा नहीं रहा । पसरती आधुनिकता और विकास के पंख लगे तो रेतीले धोरे ही खत्म हो रहे हैं । एक समय था जब जैसलमेर के आस-पास ही धोरे थे, विदेषी सैलानी कैमल सफारी का लुत्फ उठाते थे । समय के साथ आस-पास के धोरों पर सड़कें और मकान बन गए । धोरे सिमटे तो देशी- विदेशी सैलानियों ने सम और खुहड़ी की ओर रुख किया । लेकिन अब तो सम ओर खुहड़ी में भी धोरे सिमटते जा रहे हैं, यही स्थिति रही तो जैसलमेर से पर्यटक पलायन भी कर सकते हैं ।

जैसलमेर से 40 किलोमीटर दूर सम स्थित है । यहां पर रेतीले धोरे परंपरागत रूप से पर्यटकों को लुभाते रहे हैं । यहां सितंबर से फरवरी माह तक जब मौसम ठंडा रहता है तो पर्यटकों की धूम रहती है। खासकर विदेषी सैलानियों को धोरों में कैमल सफारी करना खूब भाता है। लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं रही। यहां धोरे कम और होटलें और रिसोर्ट अधिक हो गए हैं। कैमल सफारी का आनंद भी पहले जैसा नहीं रहा । इसका विकल्प खुहड़ी बना । लेकिन यहां भी अब सम जैसे हालात हो रहे हैं । यानी कि धोरे सिमट रहे हैं ।

विकास और पर्यटन परस्पर विरोधाभाषी बने

जैसलमेर में टूरिज्म का रिश्ता करीब तीस साल से रहा है । तब जैसलमेर में धोरे खूब होते थे । सैलानी भी खूब आते थे । समय बदला । अब धोरे नहीं सड़कों का जाल बिछ गया है । बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें बन गई हैं । ऐसे में जबकि धोरे सिमट रहे हैं तो सैलानियों को भी यहां शांत वातावरण नहीं मिल पाता । इंग्लैंड के पीटर रोमान ने बताया कि वे जैसलमेर घूमने इसलिए नहीं आते कि यहां गोल्डन फोर्ट है । मैं यहां की पीस यानी शांति की वजह से यहां आता हूं । यहां मुझे सुकून मिलता है । लेकिन यही सुकून विकास ने छीन लिया है । अब यहां की आबोहवा में भी प्रदूषण का घुन लग गया है ।

सम व खुहड़ी के धोरे गंदे हो रहे हैं

एक तरफ धोरे खत्म होते जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर खतरा और भी है । यहां के धोरे अब गंदे होते जा रहे हैं । यहां पर सैलानी खाने-पीने की वस्तुएं, पॉलीथिन, पानी की बोतलें आदि फेंक देते हैं । ऐसे में ये धोरे गंदे होते जा रहे हैं । यही हाल रहे तो धोरे गंदे होकर पर्यटकों का मोह भंग कर देंगे । सोने जैसे चमकने वाले धोरे काले-मटमेले रंग के हो रहे हैं । ऐसे में सैलानियों को सुकून देने वाला नजारा देखने को नहीं मिलेगा ।

आईएएस डॉ.के.के. पाठक ने चिंता जताई थी

जैसलमेर में कलेक्टर रह चुके डॉ. के.के. पाठक ने यह मुद्दा उठाया था । उन्होंने इस दिशा में प्रयास भी किए । सम और खुहड़ी में समिति बनाकर सैलानियों से शुल्क वसूलना शुरू हुआ, लेकिन एक दशक में कितनी राशि एकत्रित हुई और कितना धोरों पर खर्च हुआ, इसका पुख्ता जवाब प्रशासन के पास नहीं है । पाठक के स्थानांतरण के बाद यह विषय चिंता का नहीं रहा ।

हाइट घटती रही, धोरे सिमटते रहे

तीन द्शक में सम में धोरे न केवल सिमटते रहे बल्कि इनकी हाइट भी घटती रही । ऐसे में कैमल सफारी का आनंद घटता रहा । जैसलमेर में गर्मियों में अक्सर आंधियां चलती हैं, ऐसे में धोरे भी बिखरते रहे और उनका आकर्षण भी खत्म होता रहा है ।

धोरे बचाकर ही पर्यटन बचाया जा सकता है

सम और खुहड़ी के धोरों में कैमल सफारी और सूर्यास्त का नजारा देखना सैलानियों को सुखद लगता रहा है । अब हमारी जिम्मेदारी है कि इन्हें बचाएं । धोरे बचाकर ही लोंगटर्म टूरिज्म को बचाया जा सकता है । सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रप्रकाश व्यास का कहना है कि जैसलमेर विकास समिति के माध्यम से इस दिशा में प्रयास किया जाएगा।


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