Friday, 15 November 2013

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श्मशानों में भी बिखरा है सौंदर्य

-जैसलमेर। दुनिया की आंखों का तारा। यहां लोग घूमने आते हैं। उन्हें घूमते-घूमते पता ही नहीं चलता कि जिन छतरियों के वे फोटो खींच रहे हैं वे श्मशान हैं...

-डी.के. पुरोहित-

जैसलमेर।
विश्व विख्यात सोनार नगरी में पग-पग पर सौंदर्य है। यहां तक कि श्मशानों में भी सौंदर्य बिखरा हुआ है। देश-विदेश के सैलानियों को यहां की छतरियां खूब लुभाती है। हिंदू व मुस्लिम शैली में बनी छतरियों का आकर्षण देखते ही बनता है। राजे-महाराजाओं के समय से यहां छतरियां बन रही हैं। जब भी राजपरिवार में किसी की मृत्यु होती थी तो उसका अंतिम संस्कार कर वहां पर छतरी बना दी जाती थी। यह सिलसिला आज भी चल रहा है। जैसलमेर से सात किलोमीटर दूर बड़ाबाग की छतरियां दुनिया भर में पहचान रखती है। इनके शिल्प-स्थापत्य ने सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित किया है।

ये छतरियां तो श्मशान स्थल पर बनी हुई है ही, आम लोगों के श्मशानों में भी छतरियों के रूप में सौंदर्य बिखरा हुआ है। जैसलमेर में बड़ाबाग रोड पर ही व्यास श्मशान घाट है। यहां ब्राह्मण समाज के लोगों का मरने के बाद दाह संस्कार किया जाता है। इस जगह पर कई छतरियां बनी हुई है। ये छतरियां पर्यटकों को खूब लुभाती है। इन दिनों यहां विदेशी सैलानियों को फोटो खींचते देखा जा सकता है। पर्यटक घूमते-घूमते श्मशानों तक जा पहुंचते हैं। जब गाइड उन्हें बताते हैं कि जहां वे खड़े हैं वे श्मशानभूमि है, जो उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रहती। अकस्मात उनके मुंह से निकलता है-ओह! ऐसा भी होता है, यहां!

बड़ाबाग की छतरियां ध्वस्त हो रही है

इधर, रखरखाव के अभाव में बड़ाबाग में राजे-महाराजे काल की छतरियां ध्वस्त हो रही है। यहां पर राज परिवार की ओर से पिछले कुछ वर्षों से पर्यटकों से शुल्क वसूला जाता है। शुल्क वसूलने के बावजूद इन छतरियों की मरम्मत नहीं की गई है। राज-परिवार की यह निजी संपत्ति है। जब सैलानी यहां भ्रमण के लिए आते हैं और टूटी छतरियां देखने को मिलती है तो उन्हें दुख होता है। इंग्लैंड के पीटर एनक ने बताया कि ये छतरियां बहुत ही सुंदर है। आकर्षक है। इनका शिल्प-स्थापत्य काफी समृद्ध है। लेकिन इसकी मरम्मत नहीं की जा रही है, यह जानकर दुख होता है।

शादी के बाद धोक देने आते हैं कपल

नई-नई शादी होने के बाद विवाहित कपल यहां धोक देने आते हैं। यह परंपरा वर्षों से चल रही है। यहां पर राजे-महाराजाओं की छतरियों पर धोक देने के साथ ही क्षेत्रपाल मंदिर में जात देते हैं। इसका सांस्कृतिक दृष्टि से भी बड़ा महत्व है।

व्यास छतरियों पर रखरखाव हुआ है

जैसलमेर में व्यास छतरियों में पिछले कुछ वर्षों में रखरखाव हुआ है। इसका सैलानी बखान करते नहीं थकते। सैलानियों को जब यहां छतरियों के संरक्षण व विकास कार्य की जानकारी गाइड देते हैं तो वे खुश होते हैं, साथ ही बड़ाबाग की छतरियों की तरफ ध्यान नहीं देने पर उन्हें कोफ्त भी होती है।

जैन दादावाड़ियों भी शिल्प-स्थापत्य की विरासत है

जैसलमेर में एक ओर श्मशानों में सौंदर्य बिखरा हुआ है, वहीं जैन दादावाड़ियों में भी शिल्प-वैभव सराहनीय है। देदानसर रोड, गड़सीसर, गजरूप सागर मार्ग और शहर के चारों ओर जैन दादावाड़ियां बनी हुई हैं। ये भी परंपरागत रूप से बनाई गई है। ये दादावाड़ियां कलात्मक हैं और सैलानियों को खूब भाती है। घंटों तक इन दादावाड़ियों में सैलानी टहलते रहते हैं और फोटो खींचते हैं। हालत यह है कि इनकी शिल्प-शैली जैन मंदिरों की तरह होने से सैलानी यहां वीडियोग्राफी भी करते हैं।

फिल्मी शूटिंग भी होती है

इन छतरियों व दादावाड़ियों में फिल्मों की शूटिंग भी होती है। कई फिल्मों में ये छतरियां दिखाई गई है। पुरानी फिल्मों के साथ ही आधुनिक फिल्मों के डायरेक्टरों को भी यहां की लोकेशन लुभाती है। बड़ाबाग की छतरियां और व्यास छतरियां तो कई फिल्मों को हिट कर चुकी है।

गांवों में छतरियां टूट-फूट रहीं हैं

जैसलमेर शहर के साथ ही कई गांवों में भी छतरियां बनी हुई है। इतिहासकार नंदकिशोर शर्मा ने बताया कि गांवों में बनी छतरियां अब जर्जर हो रही है। लोग इनके पत्थर निकाल कर ले गए। अब ढांचें बचे हुए हैं। यदि इनका संरक्षण नहीं किया गया तो यह विरासत यूं ही खत्म हो जाएगी। शर्मा ने इन छतरियों पर खूब शोध कार्य किया है और अपनी पुस्तकों में इनका हवाला भी दिया है। शर्मा ने कई बार प्रशासन से इन छतरियों को बचाने का आग्रह भी किया, लेकिन अभी तक इस दिशा में ठोस पहल नहीं हुई। केंद्रीय संस्कृति मंत्री चंद्रेश कुमारी ने पिछले दिनों कहा था कि इन छतरियों को बचाने की जरूरत है। उनका मानना है कि इस वैभव को बचा कर हम अपनी संस्कृति का संरक्षण कर सकते हैं।

1 comments:

  1. जैसलमेर विकास समिति बनी हुई है, जिसके अध्यक्ष जिला कलक्टर हैं, इनसे अपेक्षा करते है कि समय रहते ठोस कदम उठाएँगे.

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