Saturday, 16 November 2013

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दस साल में छीतर और गोल्डन पत्थरों का हो जाएगा संकट

-जोधपुर के छीतर और जैसलमेर के गोल्डन पत्थरों का अंधाधुंध दोहन होने से इनकी कमी महसूस की जा रही है। आने वाले एक दशक में ये पत्थर कम हो जाएंगे और फिर इन पत्थरों का संकट खड़ा हो जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इनका दोहन संतुलित हो और नई खदानों की तलाश की जाए और पत्थरों का विकल्प तलाशा जाए...

-डी.के. पुरोहित-

जोधपुर.जैसलमेर। दुनिया भर में प्रसिद्ध जोधपुर का छीतर का पत्थर और जैसलमेर का गोल्डन पत्थर वर्षों से दोहन होने की वजह से अब सिमट रहा है। इसी तरह खनन होता गया तो आने वाले दस साल में इन पत्थरों का संकट खड़ा हो जाएगा।

प्रकृति में हर चीज संतुलित है। उसकी अपनी मात्रा है। ऐसे में अंधाधुंध दोहन से छीतर और गोल्डन पत्थरों का संकट खड़ा हो गया है। पिछले तीन दशक में इन पत्थरों की खदानें खत्म ही हो गई है। प्रकृति की अद्भुत दैन ये पत्थर अब सीमित मात्रा में रह गए हैं। पत्थरों का निर्माण होने में शताब्दियां लग जाती है और उसके खनन में चंद घंटे लगते हैं। ऐसे में रीप्रोडक्शन तो हो नहीं पाता और अब हालत यह है कि जोधपर व जैसलमेर जैसे शहरों में आस-पास के क्षेत्र की खदाने तो खत्म हो गई है। अब भी हम चेते नहीं हैं और पत्थरों का बड़ी मात्रा में दोहन किया जा रहा है। भविष्य की ओर हमारा ध्यान नहीं जा रहा है। यही हालात रहे तो फिर इन पत्थरों की कमी पूरी कैसे होगी, इसके जवाब अभी से तलाशने होंगे।

आठ सौ साल से हो रहा है दोहन

जोधपुर और जैसलमेर में करीब आठ सौ साल से इन पत्थरों का दोहन हो रहा है। निरंतर दोहन से खाने प्रायः खत्म ही हो गई है। जोधपुर के मेहरानगढ़ में और जैसलमेर के सोनार किले में पत्थरों का खूब इस्तेमाल हुआ है। साथ ही दोनों शहरों में कई दर्शनीय इमारतें बनी हुई है, जिनमें इन पत्थरों का जमकर उपयोग किया गया है। तब से लेकर अब तक निरंतर दोहन से खानें सिमट गई है। अब अगले दस साल तक ही इन पत्थरों का दोहन हो सकेगा। खींचतान के बीस साल। इसके बाद तो छीतर और गोल्डन पत्थर मिलने दूभर हो जाएंगे।

विदेशों में भी जाता है छीतर और गोल्डन पत्थर

जोधपुर का छीतर और जैसलमेर का पीला यानी गोल्डन पत्थर देश के विभिन्न कोनों में तो जाता है ही, साथ ही विदेशों में भी जाता है। इंग्लैंड, अमेरिका, सिंगापुर, हांगकांग और इटली जैसे कई देशों में दोनो शहरों के पत्थरों की खूब डिमांड है। इस डिमांड को पूरी की जाने से बड़ी मात्रा में राजस्व की प्राप्ति तो होती है, साथ ही पत्थरों की स्थानीय स्तर पर भी कमी हो सकती है। अब समय आ गया है कि छीतर और गोल्डन पत्थर के विकल्प तलाशें जाएं।

दस प्रतिशत रह गई हैं खाने

जोधपुर और जैसलमेर में अब एक अनुमान के अनुसार दस प्रतिशत ही खदानें रह गई हैं। इन खदानों में भी पत्थरों का उत्पादन कम हो रहा है। सरकार की नित्य-नई बदलती खदान नीति भी हालात को नियंत्रित नहीं कर पा रही है। सरकार को इस दिशा में सोचना होगा। एक रास्ता यह है कि अब ईंटों के उपयोग पर जोर देना होगा। ठेकेदार ओमप्रकाश चौधरी ने बताया कि जैसलमेर व जोधपुर शैली के मकान बनाने में लोगों की होड़ मची हुई है। अब भी जैसलमेर में प्राचीन वास्तु-शिल्प शैली में मकान बन रहे हैं। कलात्मक इमारतों में जैसलमेर का पत्थर बड़ी तादाद में लगता है, जिससे इसके उत्पादन पर भी असर पड़ता है। आवश्यकता इस बात की है कि अब ईंटों का उपयोग बढ़ाना होगा।

अत्यधिक खनन से बन गए भूकंप जोन

डाॅ. जेके पुरोहित ने बताया कि अत्यधिक खनन से जोधपुर व जैसलमेर भूकंप जोन बन गए हैं। अगर इसी तरह खनन होता रहा तो धरती का संतुलन बिगड़ जाएगा और आए साल भूकंप आएंगे, जिससे अत्यधिक नुकसान हो सकता है। अब आवश्यकता इस बात की है कि खनन कम से कम हो। अत्यधिक जरूरत होने पर ही खनन किया जाए।

बजरी की तरह छीतर व गोल्डन पत्थर पर भी रोक लगाएं

विशेषज्ञ डाॅ. जेके पुरोहित ने बताया कि जिस तरह न्यायालय ने बजरी के खनने पर रोक लगाई थी, उसी तरह छीतर व गोल्डन पत्थरों के दोहन पर भी रोक लगाएं। ऐसा करके ही दोनों बेशकीमती पत्थरों को बचाया जा सकता है। छीतर और गोल्डन पत्थर दुनिया की धरोहर है। अगर इसे नहीं बचाया जा सका तो शहरों की मौलिकता खतरे में पड़ जाएगी। इसलिए समय रहते जागने की जरूरत है। अभी भी हमारी आंख नहीं खुली तो कल पछताना पड़ सकता है।

गोल्डन पत्थर पर होती है बारीक नक्काशी

जैसलमेर का विश्व प्रसिद्ध गोल्डन पत्थर शिल्प-स्थापत्य व नक्काशी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस पत्थर इतनी बारीक नक्काशी की जा सकती है जो कागज पर भी संभव नहीं है। जैसलमेर भ्रमण पर आने वाले देशी‌-विदेशी सैलानी बारीक नक्काशी को देखकर अभिभूत हो जाते हैं। उन्हें आश्चर्य होता है कि इन पत्थरों में प्राण कैसे भर दिए। जैसलमेर के नक्काशी वाले बेलबूटेदार पत्थर बोलते नजर आते हैं । राजस्थानी के कवि श्याम सुंदर श्रीपत ने तो अपनी कविता में कह दिया-पाषाणों में भर दिया प्राण, अनूठा शिल्प है, यही है मेरे शहर की विशेषता...।

... और अब जागरूकता की जरूरत

इन पत्थरों को बचाना है। हमारी धरोहर को बचाना है। हमारे परिदृश्य को बचाना है। ...तो जरूरत है जागरूकता की। जागरूक होकर ही इन पत्थरों का दोहन रोका जा सकता है। यही रवैया रहा तो छीतर और गोल्डन के पत्थर आगे उपलब्ध नहीं हो पाएंगे और हमारी धरोहर को खतरा पहुंच जाएगा। पत्थरों की मात्रा सीमित है। नए पत्थर बनने में युगों लग जाते हैं, मगर इसका इसी तरह दोहन संकट की ओर संकेत कर रहा है। तो अब जाग जाएं...मकान बनाएं, लेकिन जैसलमेर और जोधपुर के पत्थरों का विकल्प तलाशा जाए। ईंटों का उपयोग करके भी हम हमारी धरोहर के संरक्षण में सहयोग कर सकते हैं।

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