कविता : राखी पुरोहित
अरमां जल गए सारे
ख्वाब धुंआ-धुंआ है
दिल के किसी कोने को
जाने किस गम ने छुआ है
बताएं हाल-ए-दिल किसी को
उससे भला है दर्द छुपा लो
आंसू को समझो तुम अमृत
भले ही गरल हो पी जाओ
मिले खुशी औरों को ये दुआ है
अरमां जल गए सारे
ख्वाब धुंआ-धुंआ है
हर किसी को यहां मनचाहा
मीत नहीं मिलता
सुर मिल नहीं पाते तो
कभी गीत नहीं मिलता
अच्छा है दूसरों के सुर में
अपना सुर मिला लें
प्यासा क्यूं खड़ा है
सामने अगर कुआं है
अरमां जल गए सारे
ख्वाज धुंआ-धुंआ है।
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