गीत : राखी पुरोहित
इतनी रुसवा क्यूं है रात
दिल में छुपाए क्या जज्बात
ढलती ही जा रही है
नया सवेरा कब हो जाने
विरह के गीत गा रही है
किसी प्रेयसी को प्रियतम की
आई शायद याद
इतनी रुसवा क्यूं है रात
पल-पल घुटता है दम
दर्द नहीं हो पाता कम
अपनी वेदना को कैसे
छुपाए जा रहे हैं
देख न ले नजरों के आंसू
छलक जाने के बाद
इतनी रुसवा क्यूं है रात
खुशियों को लग गई नजर
गम बढ़ता हर प्रहर
अपनी परछाई से ही
जाने क्यूं हम जाते डर
कैसा यह मन में अवसाद
इतनी रुसवा क्यूं है रात।
इतनी रुसवा क्यूं है रात
दिल में छुपाए क्या जज्बात
ढलती ही जा रही है
नया सवेरा कब हो जाने
विरह के गीत गा रही है
किसी प्रेयसी को प्रियतम की
आई शायद याद
इतनी रुसवा क्यूं है रात
पल-पल घुटता है दम
दर्द नहीं हो पाता कम
अपनी वेदना को कैसे
छुपाए जा रहे हैं
देख न ले नजरों के आंसू
छलक जाने के बाद
इतनी रुसवा क्यूं है रात
खुशियों को लग गई नजर
गम बढ़ता हर प्रहर
अपनी परछाई से ही
जाने क्यूं हम जाते डर
कैसा यह मन में अवसाद
इतनी रुसवा क्यूं है रात।
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