गीत : डी.के. पुरोहित
जब तक सांस है
बाकी आस है
ऐ मेरे मन तू
क्यों फिर उदास है
ये सूरज, ये सितारे
सारी कायनात तेरे पास है
जब तक सांस है
बाकी आस है
ऐ मेरे मन तू
क्यों फिर उदास है
मसीहा मिटते नहीं कभी
दुनिया के मिटाने से
सब खत्म नहीं हो जाता
कोई तारा टूट जाने से
खुदी पै रख भरोसा
मंजिल तेरे पास है
जब तक सांस है
बाकी आस है
ऐ मेरे मन तू
क्यों फिर उदास है
खुदगर्ज जमाना क्या रोके
रोशनी का रास्ता
इंसान तुझे है तेरी
इंसानियत का वास्ता
बढ़ाता चल आगे कदम
छूना इक दिन आकाश है
जब तक सांस है
बाकी आस है
ऐ मेरे मन तू
क्यों फिर उदास है
सगर के पार जाना है
हौसलों को बना कश्ती
तकदीर से लड़ना है तुझे
मिटने न दे हस्ती
बस्ती-बस्ती बेगानी
मुटठी में मधुमास है
जब तक सांस है
बाकी आस है
ऐ मेरे मन तू
क्यों फिर उदास है।
जब तक सांस है
बाकी आस है
ऐ मेरे मन तू
क्यों फिर उदास है
ये सूरज, ये सितारे
सारी कायनात तेरे पास है
जब तक सांस है
बाकी आस है
ऐ मेरे मन तू
क्यों फिर उदास है
मसीहा मिटते नहीं कभी
दुनिया के मिटाने से
सब खत्म नहीं हो जाता
कोई तारा टूट जाने से
खुदी पै रख भरोसा
मंजिल तेरे पास है
जब तक सांस है
बाकी आस है
ऐ मेरे मन तू
क्यों फिर उदास है
खुदगर्ज जमाना क्या रोके
रोशनी का रास्ता
इंसान तुझे है तेरी
इंसानियत का वास्ता
बढ़ाता चल आगे कदम
छूना इक दिन आकाश है
जब तक सांस है
बाकी आस है
ऐ मेरे मन तू
क्यों फिर उदास है
सगर के पार जाना है
हौसलों को बना कश्ती
तकदीर से लड़ना है तुझे
मिटने न दे हस्ती
बस्ती-बस्ती बेगानी
मुटठी में मधुमास है
जब तक सांस है
बाकी आस है
ऐ मेरे मन तू
क्यों फिर उदास है।
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