गजल : मेनका व्यास
रास्ता बदलकर चलने लगा है
अपना ही अब ठगने लगा है
तारों की बात क्यों करें
जब सूरज ही डूबने लगा है
प्रकृति का विस्तार तो अनंत है
बता ये जंगल क्यों कटने लगा है
आशाओं का दीप बुझ गया
संघर्ष नई राह पकड़ने लगा है
वर्षों की दोस्ती के कपड़े
अब पल में निचोड़ने लगा है
कांटों ने लाख जख्म दिए हों
गुलाब खुशबू बिखराने लगा है
दूध पिलाया था जिसे अपना
आस्तीन का सांप बनने लगा है
दोष जमाने को क्यों दे हम
जब मां जाया बिछड़ने लगा है।
रास्ता बदलकर चलने लगा है
अपना ही अब ठगने लगा है
तारों की बात क्यों करें
जब सूरज ही डूबने लगा है
प्रकृति का विस्तार तो अनंत है
बता ये जंगल क्यों कटने लगा है
आशाओं का दीप बुझ गया
संघर्ष नई राह पकड़ने लगा है
वर्षों की दोस्ती के कपड़े
अब पल में निचोड़ने लगा है
कांटों ने लाख जख्म दिए हों
गुलाब खुशबू बिखराने लगा है
दूध पिलाया था जिसे अपना
आस्तीन का सांप बनने लगा है
दोष जमाने को क्यों दे हम
जब मां जाया बिछड़ने लगा है।
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