-डी.के. पुरोहित-
दुनिया के नक्शे में गोल्डन सिटी, स्वर्णनगरी व सुनहरे शहर के रूप में प्रसिद्ध जैसलमेर की मौलिक पहचान खतरे में है। सात समंदर पार से और देश के कोने-कोने से जिस सुनहरे शहर को देखने पर्यटक यहां आते हैं उनके लिए यह निराशा भरी स्थिति है। शहर के लोग अब शहर की मौलिक पहचान मिटाने पर आमादा है।
हालत यह है कि स्थानीय लोग अब शहर के पीले और सुनहरे रंग को हटा कर यहां पत्थरों पर कृत्रिम रंगों का उपयोग कर इसकी आॅरिजनलिटी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वर्षों पहले जब विख्यात साहित्यकार अज्ञेय यहां आए थे तो उन्होंने तत्कालीन कलेक्टर को चेताया था कि इस शहर की मौलिक पहचान को खतरा न हो, इसके प्रबंध किए जाए। यही बात लता मंगेश्कर, चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन और श्रीलंका की राष्ट्रपति भी कह चुकी है। मगर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
सू कारपेंटर भी इस सुनहरे शहर की मौलिक पहचान को लेकर चिंतित रही है। अपने जैसलमेर प्रवास के दौरान उन्होंने किले के लोगों से मार्मिक अपील भी की थी और कहा था कि प्लीज इस शहर की मौलिकता को खतरा न पहुंचाएं। मगर ये सब बातें बातों-बातों में हवा हो गई। स्थिति यह है कि चाहे सोनार किले की दीवारें हों, चाहे पटुवा हवेली की पोल हो, सालिमसिंह, नथमल और आस-पास के पर्यटन स्थलों पर नारे, चित्र और अभद्रता भरे शब्द अंकित किए जा रहे हैं। पोस्टरों से दीवारें अटने लगी है। आज से कुछ वर्ष पूर्व कलेक्टर निरंजन आर्य ने अपने कार्यकाल में इस दिशा में कार्रवाई की थी, मगर उनके यहां से स्थानांतरण होने के बाद स्थिति फिर जस की तस रह गई।
पूर्व जिला कलेक्टर गिरिराज कुशवाह जो खुद पर्यटन महकमे से यहां आए थे , वे भी इस दिशा में चिंतित नहीं दिखे थे । कुशवाह अपनी नोटंकी से बाज नहीं आ रहे थे , कभी वे शिक्षकों को परेशान करते थे , कभी कर्मचारियों को अपने पद का रौब दिखाते थे , लेकिन कभी तक पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। न तो उन्होंने कोई कारगर कदम उठाए और न ही कोई अपने मौलिक आइडिया अपनाए। बस लकीर के फकीर बने हुए रहे ।
वर्तमान कलेक्टर के सामने लोंग टाइम टूरिज्म को बढ़ावा देने की चुनौति है, मगर वे कोई जलवा नहीं दिखा पाए। लोग उनसे अपेक्षाएं रख रहे हैं, मगर उनकी तंद्रा नहीं जाग रही। शहर में जगह-जगह लोग घरों की दीवारों को भांति-भांति के रंगों और आॅयल पेंट से पौत रहे हैं, मगर उन्हें रोकने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। जन जागृति बगैर पर्यटन को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। इस दिशा में पूर्व कलक्टर कुशवाहा ने सस्ती वाह-वाही लूटने के लिए स्वांग जरूर रचे मगर पर्यटन को उनके अनुभवों का कोई खास लाभ नहीं मिल पाया है।
कौन आएगा जैसलमेर देखने:
अगर जैसलमेर के पीले यानि गोल्डन स्वरूप को नहीं बचाया जा सका तो फिर इसे कौन गोल्डन सिटी कहेगा? सात समंदर पार से आने वाले गोल्डन पत्थरों को देख अभिभूत हो जाते हैं। काबिले गौर बात यह है कि इस प्रकार के पत्थर जैसलमेर के अलावा दुनिया में कहीं नहीं हैं, मगर इस ओर अभी तक चिंतन नहीं किया गया। कलेक्टर और अधिकारियों से ही बात नहीं बनेगी, यहां के चिंतकों और समाजसेवियों को भी इस दिशा में कदम उठाने होंगे।
वादे हैं वादों का क्या:
जैसलमेर को बचाने के लिए कई मुख्यमंत्रियों ने वादे किए, मगर वादे तो वादे होते हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दूसरी बार सत्ता में काबिज ही हैं, कई बार जैसलमेर आई हैं, मगर मजाल है जो उनका ध्यान इस ओर गया हो। कई बार पत्रकारों ने उनका ध्यान भी आकर्षित किया। न तो नौकरशाही, न ही नेता और न ही जनता, सभी अपनी-अपनी ढपली-अपना राग अलाप रहे हैं, ऐसे में गोल्डन सिटी के मौलिक स्वरूप को कौन बचाएगा, यह चिंता और सवाल अब अपने जवाब मांग रहे हैं।
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