गीत : राखी पुरोहित
रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है
कुछ पल खुशियां पाने को
आंसू को पीना सीखा है
ताने उलहाने सुन कर हम
बने रहे हर बार अनजान
वो हमें सताते रहे
हमे न समझा कभी इनसान
सब्र के पनघट का पानी
अभी तलक न रीता है
रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है
मन की गहराई में जो उतरे
उलझन की लहरों ने घेरा
रात बीती रुसवाई में
बेबस निकला सुबह सवेरा
मौसम की सही अगन
घावों को नित सीना सीखा है
रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है
ठोकर खा कर इतना जाना
स्वार्थ की पसरी है धुंध
सबकुछ सहा खामोशी में
हमने अपनी ली आंखें मूंद
वो सिमत पे सितम रहे ढहाते
हम ही जानते जो हम पे बीता है
रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है।
रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है
कुछ पल खुशियां पाने को
आंसू को पीना सीखा है
ताने उलहाने सुन कर हम
बने रहे हर बार अनजान
वो हमें सताते रहे
हमे न समझा कभी इनसान
सब्र के पनघट का पानी
अभी तलक न रीता है
रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है
मन की गहराई में जो उतरे
उलझन की लहरों ने घेरा
रात बीती रुसवाई में
बेबस निकला सुबह सवेरा
मौसम की सही अगन
घावों को नित सीना सीखा है
रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है
ठोकर खा कर इतना जाना
स्वार्थ की पसरी है धुंध
सबकुछ सहा खामोशी में
हमने अपनी ली आंखें मूंद
वो सिमत पे सितम रहे ढहाते
हम ही जानते जो हम पे बीता है
रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है।
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