गीत : डी.के. पुरोहित
तारा टूटा आसमान से
चांद पै कोई असर नहीं
इस भरी महफिल में यारों
अपनी कहीं बसर नहीं
जिसको अपना समझा वो भी
नजर चुराके निकल गया
दिन को छोड़ शाम भरोसे
सूरज छलिया ढल गया
सागर मिले किनारों से
ऐसी हमदम लहर नहीं
तारा टूटा आसमान से
चांद पै कोई असर नहीं
इस भरी महफिल में यारों
अपनी कहीं बसर नहीं
इस बगिया के फूलों में
माली ने सींचा खून पसीना
जौहरी की मेहनत फलती
तब ही चम-चम करे नगीना
सौदागर जाने मोल लगाना
मेहनत की कोई फिकर नहीं
तारा टूटा आसमान से
चांद पै कोई असर नहीं
इस भरी महफिल में यारों
अपनी कहीं बसर नहीं
इंद्रधनुषी सपने मन के
पल भर के हैं बस मेहमान
पंछी की आजादी को
देता आसमान खुद वरदान
लेकिन बैरी मौसम को
ये हसरत मंजूर नहीं
तरा टूटा आसमान से
चांद पै कोई असर नहीं
इस भरी महफिल में यारों
अपनी कोई बसर नहीं।
तारा टूटा आसमान से
चांद पै कोई असर नहीं
इस भरी महफिल में यारों
अपनी कहीं बसर नहीं
जिसको अपना समझा वो भी
नजर चुराके निकल गया
दिन को छोड़ शाम भरोसे
सूरज छलिया ढल गया
सागर मिले किनारों से
ऐसी हमदम लहर नहीं
तारा टूटा आसमान से
चांद पै कोई असर नहीं
इस भरी महफिल में यारों
अपनी कहीं बसर नहीं
इस बगिया के फूलों में
माली ने सींचा खून पसीना
जौहरी की मेहनत फलती
तब ही चम-चम करे नगीना
सौदागर जाने मोल लगाना
मेहनत की कोई फिकर नहीं
तारा टूटा आसमान से
चांद पै कोई असर नहीं
इस भरी महफिल में यारों
अपनी कहीं बसर नहीं
इंद्रधनुषी सपने मन के
पल भर के हैं बस मेहमान
पंछी की आजादी को
देता आसमान खुद वरदान
लेकिन बैरी मौसम को
ये हसरत मंजूर नहीं
तरा टूटा आसमान से
चांद पै कोई असर नहीं
इस भरी महफिल में यारों
अपनी कोई बसर नहीं।
0 comments:
Post a Comment