गीत : डी.के. पुरोहित
प्रेम का कोई रूप नहीं
ना ही कोई आकार
निराकार की भक्ति में
होता प्रेम साकार
मीरा तो बस नाम किसी का
पाया जिसने मोहन
छोड़ निस्सार संसार को
भटकी बनकर जोगन
अमृत बन गया जहर भी
भीतर से हुआ साक्षात्कार
प्रेम का कोई रूप नहीं
ना ही कोई आकार
कबीरा कब पैदा हुआ
वो तो बस थी माया
परमेश्वर ने मानवता की ओर
अपना कदम बढ़ाया
संतों की वाणी है अमृत
सच का है दरबार
प्रेम का कोई रूप नहीं
ना ही कोई आकार
नानक का कहना लोगों से
बांटो जग में प्यार
रसखान की वाणी में थी
गिरिधर की गहन पुकार
सूरदास ने बंद आंखों से
जीवंत देखा संसार
प्रेम का कोई रूप नहीं
ना ही कोई आकार
हम सब ईश्वर के बंदे
क्यों ना बनते नेक
रंग-रूप-आकार अलग पर
जीव सभी में एक
माटी में मिलना इक दिन
डूबेगी सागर में पतवार
प्रेम का कोई रूप नहीं
ना ही कोई आकार।
प्रेम का कोई रूप नहीं
ना ही कोई आकार
निराकार की भक्ति में
होता प्रेम साकार
मीरा तो बस नाम किसी का
पाया जिसने मोहन
छोड़ निस्सार संसार को
भटकी बनकर जोगन
अमृत बन गया जहर भी
भीतर से हुआ साक्षात्कार
प्रेम का कोई रूप नहीं
ना ही कोई आकार
कबीरा कब पैदा हुआ
वो तो बस थी माया
परमेश्वर ने मानवता की ओर
अपना कदम बढ़ाया
संतों की वाणी है अमृत
सच का है दरबार
प्रेम का कोई रूप नहीं
ना ही कोई आकार
नानक का कहना लोगों से
बांटो जग में प्यार
रसखान की वाणी में थी
गिरिधर की गहन पुकार
सूरदास ने बंद आंखों से
जीवंत देखा संसार
प्रेम का कोई रूप नहीं
ना ही कोई आकार
हम सब ईश्वर के बंदे
क्यों ना बनते नेक
रंग-रूप-आकार अलग पर
जीव सभी में एक
माटी में मिलना इक दिन
डूबेगी सागर में पतवार
प्रेम का कोई रूप नहीं
ना ही कोई आकार।
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