Tuesday, 7 January 2014

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कमठा मजदूरों को मिल रहे प्रतिदिन 500 रुपए और प्राइवेट स्कूलों में टीचर को मिलते नहीं 100 रुपए

-अनपढि़या घोड़े चढ़े, पढि़या मांगे भीख...बुजुर्गों की यह कहावत काफी हद तक सही है, अब निजी स्कूलों के टीचर को ही लें, उन्हें प्रतिदिन 100 रुपए भी नहीं मिल रहे, जबकि एक कमठा मजदूर भी प्रतिदिन 500 रुपए कमा लेता हैं....

-डी.के. पुरोहित-

जोधुपर. जैसलमेर। निजी स्कूलों के अध्यापकों को प्रतिदिन 100 रुपए मेहनताना भी नहीं मिल रहा। अधिकतर स्कूलों में शिक्षक को 1200 से 2000 रुपए तक वेतन मिल रहा है। जबकि एक कमठा मजदूर भी शाम को जब घर जाता है तो जेब में 500 रुपए मजदूरी लेकर जाता है। पढ़ाई करने के बावजूद युवा अपने सपने साकार नहीं कर पाते। यह विड़ंबना ही है कि पढ़ाई पर लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी उसका कोई फायदा नहीं मिल रहा।

निजी स्कूल में पढ़ाने वाले राजेश का कहना है कि उसने एमए कर रखी है। बीएड नहीं कर पाया। ट्रेंड टीचर नहीं होने की वजह से उसे 2000 हजार रुपए प्रति माह वेतन मिल रहा है। अगर ट्रेंड होता तो उसे 3000 हजार रुपए मिलते। यानी पढ़े लिखे-होने के बाद भी अपने सपने साकार नहीं कर पाया।

निजी स्कूलों में होता है शोषण

हालत यह है कि निजी स्कूलों में शिक्षकों को शोषण होता है। मोटी फीस लेने के बावजूद भी शिक्षकों को उचित मानदेय या वेतन नहीं मिलता। लेकिन बेरोजगारी का दंश झेल रही युवा पीढ़ी मन मसौस कर रह जाती है और बेरोजगारी की बजाय अपना शोषण करवाने को मजबूर होना पड़ता है। अभिभावक अपने बच्चों पर लाखों रुपए खर्च करते हैं। लेकिन उसका फायदा नहीं मिल रहा।

40 प्रतिशत युवा को नहीं मिलती मनपसंद नौकरी

एक अनुमान के अनुसार ग्रेज्युएट और पोस्ट ग्रेज्युएट किए युवाओं में से 40 प्रतिशत युवा अपने सपने साकार नहीं कर पाते। ऊंची पढ़ाई करने के बाद भी मनपसंद नौकरी नहीं मिल पाने की वजह से वे निजी स्कूलों, दुकानों, होटलों और एनजीओ में नौकरी करने को मजबूर है।

हताशा में अपराध की राह पर

एक सर्वे में सामने आया है कि हताशा में युवा अपराध की राह पकड़ लेते हैं। ऊंची पढ़ाई करने के बाद भी जब अपना भविष्य नहीं संवार पाने की वजह से युवा नशीले पदार्थ बेचने को धंधा बना लेते हैं। यही नहीं चोरी करना, लूट-खसौट जैसी वारदात भी करने लगते हैं।

सपने साकार नहीं होते तो डिप्रेशन का हो रहे शिकार

सर्वे में यह भी सामने आया है कि ऊंची पढ़ाई करने के बाद जब नौकरी नहीं मिल पाती। सपने साकार नहीं हो पाते तो युवा डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। मौजूदा दौर में दस में से तीन युवा डिप्रेशन के शिकार हैं। डिप्रेशन की वजह से वे अपने अभिभावकों पर बोझ बन जाते हैं। मनोरोग विशेषज्ञ डा. देवराज पुरोहित ने बताया कि युवा पीढ़ी ऊंची पढ़ाई करने के बाद ऊंचे ख्वाब देखती है। इन ख्वाबों के पूरे नहीं होने पर वे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। डिप्रेशन के मामले खूब सामने आ रहे हैं।

इससे तो मजदूर होते तो अच्छा

दिनेश ने बताया कि पढ़ने लिखने के बाद भी अच्छा रोजगार नहीं मिल रहा है। इससे तो अच्छा मजदूरी करते। मजदूरी करते तो भी अपने परिवार का पेट पाल लेते। यह पीड़ा अकेले दिनेश की नहीं है, कई युवा इस समस्या से ग्रस्त हैं।

फार्मासिस्ट किए हुए गार्ड बने हुए हैं

शहर में ऐसे युवा भी हैं जो फार्मासिस्ट किए हुए हैं, मगर नौकरी नहीं मिल पाने के कारण गार्ड की नौकरी कर रहे हैं। एक युवा तो काफी समय तक दैनिक भास्कर कार्यालय जोधपुर में गार्ड बना रहा। उसने फार्मासिस्ट कर रखी है। ऐसे अन्य युवा भी कर्इ जगह कम वेतन में नौकरी कर रहे हैं।

नौकरी मिली नहीं, अपने धंधे के लिए पैसे नहीं

कई युवा ऐसे भी हैं जिन्होंने पढ़ाई तो कर ली मगर नौकरी नहीं मिली। गौरतलब बात यह है कि निजी स्कूलों में शोषण करवाने वाली नौकरी में भी सिफारिश की जरूरत रहती है। बिना सिफारिश दो हजार रुपए महीने की नौकरी भी नहीं मिल पाती। इस तरह युवाओं को जब नौकरी नहीं मिल रही है तो अपने धंधे के लिए भी पैसे नहीं है। लोन लेने के लिए भी लंबी कतार है। लोन भी बिना सिफारिशके नहीं मिल रहा। ऐसे में युवाओं को सिवाय हताशा के कुछ हाथ नहीं लगती।

प्रतियोगिता का जमाना, आरक्षण ने किया कबाड़ा

प्रतियोगिता के जमाने में अपना मुकाम बनाना आसान नहीं है। अगर प्रतिभा है भी तो आरक्षण के सांप ने फन फैला रखा है। नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए आरक्षण की रेवडि़यां बांट रखी है, ऐसे में पढ़े लिखे ऊंची जाति वाले युवाओं के लिए सरकारी नौकरी पाना आसान नहीं रहा। आरक्षण एक ऐसा नासूर बन गया है, जिसका कोई राजनीतिक दल विरोध नहीं कर रहा। जागो पार्टी ने आरक्षण को हटाने का मानस बनाया है, मगर उनके केंडिडेट को जनता का सपोर्ट भी नहीं मिल रहा। ऐसे में सवर्ण जाति के युवाओं के सामने आत्महत्या करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं रहता।

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