Monday, 20 January 2014

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टूट गया जो चांद अकेला

गीत : डी.के. पुरोहित


एक सितारा टूट गया तो
आसमां की झोली खाली न होगी
जो टूट गया चांद अकेला
फिर रात की रानी निराली न होगी

कुदरत जिसे चाहने लगे
उसे भला कौन मार सकता है
औरों से हमेशा जीतने वाला
केवल अपनो से हार सकता है
सिकंदर मन का क्यों रूठे 
रूठा तो जीत मतवाली न होगी
जो टूट गया चांद अकेला
फिर रात की रानी निराली न होगी

हौसलों के बल पर कौन जीतता
जो बुद्धि का जलवा साथ न हो
हर घड़ी बदलता वक्त फैसला
वो जीत ही क्या जो बिगड़े हालात न हो
हमने कभी न सुनी मन की 
अहं की फितरत उसने पाली न होगी
जो टूट गया चांद अकेला
फिर रात की रानी निराली न होगी

तेरे फैसले हम आज बदलेंगे
मुझे बसाना है नया जहान
तुझे मारकर मुझे जीना है
सुन सके तो सुन ले भगवान
सुन मैं ही धरा का हूं पोषक
मार सके वो जहर की प्याली न होगी
जो टूट गया चांद अकेला
फिर रात की रानी निराली न होगी। 

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