फसल
राजनीति के खेत में
उनके पूर्वजों ने बीज बोए थे
फसल पीढि़यों तक कट रही है
जब से पार्टियों की अतिवृष्टि शुरु हुई
समझ आया उपज की मात्रा घट रही है।
प्रार्थना
शब्द जब हृदय से निकले
प्रार्थना कुबूल हो गई
जबान का साथ पाकर
आस्था धूमिल हो गई ।
सहारा
दुनिया से सहारा न मिला जिसे
उसका सहारा मिल गया
उसका सहारा न मिला जिसे
उसे कहीं सहारा न मिला
सच
सच कोई कहता है अगर
किसी की कसम खाकर
समझो उसमें मिलावट है
क्योंकि इस दौर में
असली चीज कौन खाता है?
प्यास
कंठ की प्यास
पानी से बुझती है
दिल की प्यास
दिल से बुझती है
कुछ प्यास ऐसी होती है
जिसे बयां नहीं कर सकते
वह सहरा की
मृगमरीचिका निकलती है।
आंख
जो दिखता है वह
आंख का सच हो यह जरूरी नहीं
अंधे भी देखते हैं हृदय से
उनकी दृष्टि सृष्टि की चेतना होती है।
मौत
मरना तो अटल सत्य है
लेकिन उसका मरना ही मरना है
जिसने मरने को अटल मान
आसमां से गिरना सीख लिया।
सोना
सोने के लिए सोना खोना है
कुछ लोग बिन खोए सोना
पा लेते हैं सोना
वे जागने वालों को दिला देते हैं सोना।
दाग
आदमी चाहे तो
अपने दाग
पश्चाताप की स्याही से
धो सकता है
मगर चांद के दाग कब धुलेंगे
कोई नहीं जानता।
आशियाना
एक अदद आशियाना
सपना ही रहा
लेकिन आसमान की छत
किस्मत भी छीन न सका।
घाव
घाव जब हरे होते हैं
संवेदनाओं से भरे होते हैं
कुछ सिसके, कुछ डरे होते हैं
संबंधों से परे होते हैं
वे भी क्या लोग है
जिनका स्वाभिमान नहीं जगता
वास्तव में वे भीतर से मरे होते हैं।
सड़क
पथरीली राहों पर
मखमली सड़क बनाने वाले
खुद आज भी पगडंडी पर चलते हैं
उनके बच्चे साहूकार और ठाकुर के
खेतों में बंधुआ मजदूर होकर पलते हैं।
अहं
सुना है बलशाली रावण का अंत
अहं ने किया
यहां हर अहं के अंधे रावण
कितनों को बेमौत मारते हैं
कोई राम उन्हें बचाने नहीं आता।
शर्म
महलों के लिए
झोंपड़े अपनी शर्म बेचते हैं
पैसों वालों की दुनिया का
अपना कोई जमीर नहीं होता।
कर्ज
वक्त का कर्ज कोई
उतार सकता नहीं
वक्त सभी के कर्ज भरता है
फिर भी देखो लोग
वक्त को ही कोसते हैं।
रात और सुबह
रात भयानक तब होती है
जब सुबह दस्तक देती है
सुबह भयानक तब होती है
जब शाम बेवक्त आ टपकती है
आदमी को भंवर में
मिल जाता है किनारा
उसकी मौत वहीं होती है
जहां पानी की मात्रा कम होती है।
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