Friday, 10 January 2014

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शब्द फिसल गए, अरमां जल गए

गीत -डीके पुरोहित 

शब्द फिसल गए
अरमां जल गए
उसकी भोली सूरत पर
हम क्यों मचल गए?

दुनिया जिसे भुलावा कहती
वह छलावा निकली
दो घड़ी वो देकर साथ
फिर किसी और आंगन चली
हम निरा अकेले रहे
जाने कहां वो पल गए
शब्द फिसल गए
अरमां जल गए

राख को अंगार कहना भूल है
कांटों ने काटा, गए कहां फूल है
विश्वास में लेकर घात करना
ओ दुनिया तेरा कैसा उसूल है
देखते ही रहे, वो
पास से निकल गए
शब्द फिसल गए
अरमां जल गए

ये रात घनी अंधेरी है
आज चांद ना प्रहरी है
तारों का क्या भरोसा
वो नागिन प्यासी जहरी है
पिटारा खाली छोड़
सपेरे किस जंगल गए
शब्द फिसल गए
अरमां जल गए

देखते रहो तुम तमाशा
रात ठंडी, सुबह कुहासा
सूरज की ढली जवानी,
कौन दे इस घड़ी दिलासा
हम साथ निभाते रहे
मौसम नित बदल गए
शब्द फिसल गए
अरमां जल गए।










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