गीत : डी.के. पुरोहित
हंसना इन्हें गंवारा नहीं
वो रोने नहीं देते हैं
घुट-घुट कर रहना सीख लिया
इसी को जीवन कहते हैं
परछाइयों से डर लगता है
दीवारों के भी होते कान
तिल-तिलकर जलते हम
व्यथा न कोई पाया जान
हालातों को किसे बताएं
हम कहने से भी डरते हैं
हंसना इन्हें गंवारा नहीं
वो रोने नहीं देते हैं
जीने मरने की कसमें
जिसके साथ खाई थी
सुख की आस लगाकर
बाबुल ने परणाई थी
होम करते हाथ जल गए
आहूति इसी को कहते हैं
हंसना इन्हें गंवारा नहीं
वो रोने नहीं देते हैं
दिन जलता, रात तड़पती
सावन आग लगाता है
लपटें उठतीं ही जाती जब
पानी कोई गिराता है
बादलों का क्या दोष भला जब
वो पानी से रीते हैं
हंसना इन्हें गंवारा नहीं
वो रोने नहीं देते हैं।
हंसना इन्हें गंवारा नहीं
वो रोने नहीं देते हैं
घुट-घुट कर रहना सीख लिया
इसी को जीवन कहते हैं
परछाइयों से डर लगता है
दीवारों के भी होते कान
तिल-तिलकर जलते हम
व्यथा न कोई पाया जान
हालातों को किसे बताएं
हम कहने से भी डरते हैं
हंसना इन्हें गंवारा नहीं
वो रोने नहीं देते हैं
जीने मरने की कसमें
जिसके साथ खाई थी
सुख की आस लगाकर
बाबुल ने परणाई थी
होम करते हाथ जल गए
आहूति इसी को कहते हैं
हंसना इन्हें गंवारा नहीं
वो रोने नहीं देते हैं
दिन जलता, रात तड़पती
सावन आग लगाता है
लपटें उठतीं ही जाती जब
पानी कोई गिराता है
बादलों का क्या दोष भला जब
वो पानी से रीते हैं
हंसना इन्हें गंवारा नहीं
वो रोने नहीं देते हैं।
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