पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर व बाड़मेर में कई रोगी सामने आए, कुछ की मौत भी हो चुकी है, डायलिसिस सहित इलाज की सुविधा नहीं होने से अहमदाबाद व जोधपुर जाना पड़ता है
-डी.के. पुरोहित-
केस-एक
कमला की उम्र 30 साल है। उसके दोनों गुर्दे खराब हो गए। उसकी सास ने अपना एक गुर्दा देकर उसकी जान बचाई।
केस-दो
मुकेश भाटिया मात्र 27 साल का था। उसके गुर्दे खराब होने से मौत हो गई।
केस-तीन
पप्पसा मात्र 40 साल के थे। दोनों गुर्दे खराब हो गए। उसकी पत्नी ने अपना एक गुर्दा देकर उसकी जान बचाई। मगर साल भर बाद इन्फेक्शन से उसकी मौत हो गई।
केस-चार
सुशीला व्यास के गुर्दे खराब हो गए। जोधपुर के एक निजी अस्पताल में दस दिन भर्ती रही और बाद में उसकी मौत हो गई।
जोधपुर
पश्चिमी राजस्थान के थार में गुर्दा रोगी किस तरह बढ़ रहे हैं, उसके उदाहरण यहां दिए जा रहे हैं। उपरोक्त उदाहरण तो एक बानगी है, हकीकत में कई रोगी सामने आ रहे हैं। इंग्लैंड के डाक्टर डेविड हुक ने अपने शोध-पत्र ‘ए स्टडी आन किडनी एट डेजर्ट’ में उल्लेख किया है कि पश्चिमी राजस्थान में गुर्दा रोग बढ़ने का कारण वहां की जलवायु और परिस्थितियां हैं। कई गांवों में प्रदूषित पानी गुर्दा रोग को बढ़ावा दे रहा है।
डाक्टरों का कहना है कि पश्चिमी राजस्थान में शुष्क जलवायु व पानी प्रदूषित होने से अक्सर पथरी की शिकायत रहती है। जिसका असर गुर्दे पर पड़ता है। आउटडोर में आने वाले 100 मरीजों में से तीन मरीज क्रानिकरीनफेलियोर से पीड़ित रहते हैं। एक्यूटरिनलफेलियोर के मरीज 5 प्रतिशत और आईसीयू में 30 प्रतिशत रोगी गुर्दा रोग से पीड़ित होते हैं।
डा. शिव कुमार व्यास का कहना है कि पश्चिमी राजस्थान के थार मरुस्थल में शुष्क वातावरण, स्नेकबाइट, पतले दस्त, आंत्रशॉध व मलेरिया पीएफ होने से गुर्दे संबंधी रोगी बढ़ रहे हैं। थार तो मलेरिया का घर बनता जा रहा है। मलेरिया की परिणिति गुर्दे के रोग में हो जाती है। इसके अलावा अत्यधिक रक्तस्राव से भी गुर्दे पर असर पड़ता है। ब्लडप्रेशर व मधुमेह होने से भी गुर्दे की बीमारी होती है।
डायलिसिस सुविधा नहीं
थार के जैसलमेर में डायलिसिस की सुविधा नहीं होने से अक्सर रोगियों को जोधपुर या अहमदाबाद ले जाना पड़ता है। लंबे समय तक गुर्दा रोग रहने से शरीर में एकत्रित अव्ययों को बाहर निकालने और रक्त को शुद्ध करने के लिए डायलिसिस ही उपाय है। इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद रोगी को रिलेक्स मिलता है। ऐसा महीने में चार-पांच बार करना पड़ता है। गुर्दा रोग से पीड़ित राकेश के पैरेंट्स ने बताया कि जैसलमेर में सुविधा नहीं होने से जोधपुर जाकर डायलिसिस करवाना पड़ रहा है।
डायलिसिस सुविधा होना बहुत जरूरी
कुछ समय पहले डा. संपूर्णानंद मेडिकल कालेज जोधपुर के नेफरोलाजी विभाग के प्रमुख डा. मनीष चतुर्वेदी जैसलमेर दौरे पर आए थे। उनका मानना था कि थार की परिस्थितियों की वजह से यहां गुर्दा रोग बढ़ रहा है। यहां डायलिसिस की सुविधा होना बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि डायलिसिस को हैंडल करना आसान है। सामान्य प्रशिक्षण देने के बाद नर्स भी यह कार्य कर सकती है।
मानव गुर्दे व डायलिसिस प्रक्रिया
मानव शरीर में गुर्दे अति आवश्यक अंगों में से एक है। हमारे शरीर में पानी, अम्ल, क्षार एवं नमक की मात्रा को आवश्यकतानुसार नियमित रखने की कार्य प्रणाली में गुर्दों का विशेष महत्व है। हमारे शरीर से टाक्सीन्स एवं यूरिया सूत्र के माध्यम से बाहर निकलते हैं। मानव शरीर में दो गुर्दे होते हैं जो कि शरीर के मध्य में वक्ष के नीचे स्थित रहते हैं। प्रत्येक सामान्य गुर्दे की लंबाई करीब 12 सेंटीमीटर, चौड़ाई 6 सेंटीमीटर, मोटाई 3 सेंटीमीटर व वजन करीब 150 ग्राम होता है। सामान्यत दोनों गुर्दों का वजन शरीर के वजन का 1-200 भाग के करीब होता है। गुर्दों की वास्तविक कार्य इकाई को नेफ्रान कहते हैं। प्रत्येक गुर्दे में ऐसी 10 लाख इकाईयां होती है। ये इकाईयां मानव शरीर में प्रवाहित रक्त के मुख्य अव्यय ‘प्लाज्मा’ को फिल्टर करती है तथा पानी, क्षार, लवण व अन्य आवश्यक कणों व अव्ययों को नियंत्रित करती है। एक प्रकार से गुर्दे हमारे शरीर में फिल्टर हाउस की भूमिका निर्वाह करते हैं।
ऐसे होती है किडनी फेल
गुर्दों की कार्य क्षमता अचानक या बहुत कम समय में क्षीण हो सकती है। धीरे-धीरे लंबे समय में गुर्दे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। यह गुर्दे की बीमारियों, रक्त संचार में कमी अथवा शरीर में अन्य बीमारियों के दुष्प्रभाव पर निर्भर करता है। यदि गुर्दे की कार्य क्षमता व शक्ति अचानक या बहुत कम समय में क्षीण हो जाती है तो इसे ‘एक्यूट रीनल फेल्योर’ कहते हैं। यदि गुर्दों की कार्य क्षमता व शक्ति धीरे-धीरे व लंबे समय में क्षीण हो तो इसे क्रोनिक रीनल फेल्योर या यूरिमिया कहते हैं।
एक्यूट रीनल फेल्योर के मुख्य लक्षण
-रक्तचाप में आक्समिक गिरावट-अधिक रक्तस्राव जो कि गंभीर चोट, बड़ी शल्यक्रिया, प्रसूति में रक्तस्राव।
-शरीर में द्रव्य की कमी-उल्टी, दस्त व जलने पर द्रव्य की कमी।
- मलेरिया अवधि में दवा के सेवन, एंटीबायोटिक्स से, जहर सेवन, तीव्र संक्रमण, टोक्सीमिया व सर्पदंश ।
क्रोनिक रीनल फेल्योर के मुख्य लक्षण
डायबिटिज, उच्च रक्तचाप, पोलिसिस्टीक किडनी, पाइलो-नफ्रोइटिस, गुर्दा, पथरी व संक्रमण, लंबे समय तक दर्दनाशक दवा सेवन, एक्यूट रीनल फेल्योर का सही समय पर इलाज न होना।
डायलिसिस क्या है?
इसका मतलब है अल्ट्रेशन। इस पद्धति में एक कृत्रिम गुर्दा के माध्यम से हीमोडायलिसिस पद्धति द्वारा मरीज के रक्तद्रव्य को प्रवाहित कर रक्त को साफ किया जाता है, ताकी यूरिमिया की स्थिति कम हो और गुर्दे की कार्य क्षमता यथा स्थिति में बनी रहे। हीमोडायलिसिस एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कृत्रिम गुर्दा मशीन में एक डायलाइजर के द्वारा धमनियों से प्रवाहित रक्त को मशीन में फिल्टर किया जाता है।