Tuesday, 15 December 2015

स्वागतम् 2016, आओ हम लें देश-दुनिया के हित में 16 संकल्प

-डी.के. पुरोहित-

समय बीत रहा है। जो आज है वह कल बन रहा है और जो कल होना है वो आज बन रहा है। वक्त किसी के रुके रुकता नहीं है। समय के आइने में हर तस्वीर इतिहास बन जाती है। बेशक़, हम आगे बढ़ रहे हैं, मगर पीछे कदमों के निशान छोड़ कर जा रहे हैं। फिर कैलेंडर में एक नया साल दस्तक दे रहा है। 2015 बीत रहा है। 2016 आ रहा है। सच यही है कि हम बीते हुए समय को याद नहीं करते और नए का स्वागत करने लग जाते हैं। यदि हम बीते हुए समय से सबक लें तो नया वर्ष भी हर्ष का प्रतीक बन सकता है। हमें अपनी भूलों और कमजोरियों को दूर कर नए वर्ष का स्वागत करना चाहिए। साथ ही संकल्प लेना चाहिए-कुछ नया करने का। कुछ ऐसा करने का कि नया वर्ष हमें निराश न करे। हमारे सामने बहुत सारे क्षेत्र हैं। बहुत बड़ा मैदान है। पूरा आसमां है उड़ान भरने के लिए। अनंत अभिलाषाएं हैं। हम अपनी संकल्प शक्ति से मुकाम पा सकते हैं। तो आइए हम नए साल 2016 में 16 संकल्प लें। ये 16 संकल्प हमें नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे। हम अपने लक्ष्य में सफल होंगे। हमें इन संकल्पों के साथ आगे बढ़ना है। अपना मुकाम बनाना है। तो आएं हम इन 16 संकल्पों के साथ अपनी उड़ान शुरू करें।

1. ईमानदारी: राजनीति
 

जब यह पंक्तियां लिखी जा रही है बिहार विधानसभा के नतीजे आ चुके हैं। नीतिश-लालू महागठबंधन बाजी मार चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो उम्मीदें बिहार से लगाई थी, उसमें वे सफल नहीं हुए। फिर से नीतिश-लालू को सत्ता मिली। इससे एक बात फिर जाहिर हो गई कि बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय मुद्दे नहीं चलते। बिहार को विकास की नहीं जातिवादी राजनीति प्रभावित करती है। राजनीति में जो ईमानदारी चाहिए, उसका एक पक्ष यह भी है कि लालू जैसे लोगों की वापसी से राजनीति में स्वच्छता नहीं रही। मोदी ने हालांकि अपने शासन में कुछ अच्छा िकया है या नहीं, लेकिन बुरा भी कुछ नहीं किया। अभी तो उम्मीदों के पूरे चार साल बाकी है। लेकिन बिहार चुनाव में यह साफ हो गया है कि जनता को जो जंचता है, वही करती है। उसको न तो विकास की घोषणाओं से बहलाया जा सकता है, न ही कोई नारे प्रभावित कर सकते। वह तो अपनी मर्जी करती है। ऐसे में राजनीतिक ईमानदारी किसी कोने में दुबकी नजर आ रही है। क्योंकि यह भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। नए साल में राजनीतिक क्षेत्र में जिस ईमानदारी की अपेक्षा है, उसे अपने भीतर महसूस करने की जरूरत है। राजनीति को साफ-सुथरी बनाने और उसे जनता के लिए उपयोगी बनाने के लिए हमारे नेताओं को नववर्ष पर संकल्प लेना होगा। ऐसा संकल्प कि राजनीति के क्षेत्र में भ्रष्टाचार, अनैतिकता, चारित्रिक कमजोरियों को दूर कर जिम्मेदार लीडरशिप देना हमारी प्राथमिकता हो। जनता को भी इस दिशा में सोचना होगा।

2. संवेदना: पुलिस

नए साल में पुलिस का चेहरा भी बदलना चाहिए। हमारे आईपीएस अधिकारियों को अपने विभाग को संवेदनशील बनाने का संकल्प लेना होगा। वक्त बदला, लेकिन पुलिस नहीं बदली। आज भी संवेदनहीनता उसकी प्रवृत्ति बन चुकी हैं। आम आदमी का भरोसा पुलिस नहीं जीत पाई है। एक जिम्मेदार विभाग की साफ-सुथरी और स्वच्छ छवि बनाने की जिम्मेदारी पुलिस महकमे की है। अपराधों पर रोक लगाने और गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए पुलिस को अपना रवैया बदलना होगा। यह कैसे करना है, इस पर मंथन करना होगा। खासकर आम आदमी के साथ अच्छा व्यवहार और अपराधियों व गुनहगारों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाना होगा। संवेदनशील होकर कानून की पालना करना पुलिस का दायित्व है। आजादी के बाद से अब तक पुलिस की छवि बदल नहीं पाई है। अंग्रेजों के बनाए कानून आज भी जारी हैं। इन कानूनों की आड़ में पुलिस महकमा निरकुंश हो गया है। संवेदनाएं तो जैसे खत्म ही हो गई है। ऐसे में इस महकमे में बदलाव की जरूरत है। आम आदमी का मित्र बनकर ही पुलिस महकमा अपने उद्देश्यों में सफल हो सकता है। यदि डंडे के जोर पर ही कार्रवाई होती रही तो संवेदनाएं खत्म हो जाएंगी। इसलिए पुलिस को बदलने के लिए तैयार होना होगा।

3. नई सोच: ब्यूरोक्रेसी

संसद कानून बनाती है, लेकिन इन कानूनों को चलाने की जिम्मेदारी ब्यूरोक्रेसी की है। नौकरशाह समय के साथ निरकुंश हो रहे हैं। अधिकारी भ्रष्ट हो गए हैं। चपरासी-बाबू से लेकर कलेक्टर और कमिश्नर तक भ्रष्ट हो गए हैं। हमारी व्यवस्था में रिश्वत दाग बनकर सामने आई है। ऐसे में आम आदमी कहां जाए? किसका दरवाजा खटखटाए। छोटे-बड़े काम के लिए पैसे मांगे जाते हैं। ब्यूरोक्रेसी को अपना रवैया बदलना होगा। नया साल नई सोच का है। ब्यूरोक्रेसी को नई सोच से काम करना होगा। अगर ब्यूरोक्रेसी नई सोच के साथ काम करेगी तो देश की सूरत अवश्य बदलेगी। हमारे सामने कई क्षेत्र हैं-पर्यटन, कला, संस्कृति, समाज, रोजगार, न्याय और विभिन्न मसलों पर ब्यूरोक्रेट जागरूक होकर, राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शन कर हमारी सूरत बदल सकते हैं।

4. नव ऊर्जा: युवा

देश की असली ताकत युवा है। युवा ही भारत का भविष्य है। अब युवाओं को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। युवाओं को राजनीति में आकर इसकी शुचिता की रक्षा करनी होगी। युवा ही इस देश का भविष्य है। नई सोच। जागरण की अलख जगाने में अगर कोई सक्षम है तो वे युवा ही हैं। अब जिम्मेदारी युवाओं पर है कि वह देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं। युवा अवस्था ऐसी अवस्था होती है, जब व्यक्ति का दिमाग, व्यक्ति का विजन, बड़े-बड़े कार्य करवाने में समक्ष हो सकती है। हमारे युवाओं को केवल देश का उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए सोचना होगा। सारा दारोमदार युवाओं पर हैं। हमें पीछे नहीं हटना है। अपने दायित्वों, अपनी जिम्मेदारियों को निभाना है। युवाओं को अपने समर्पण से देश को निखारना होगा। देश के विकास में, देश को ताकतवर बनाने में युवाओं की शक्ति मायने रखती है। हर क्षेत्र में युवाओं को अपनी ऊर्जा लगानी होगी।

5. कर्मशीलता: किसान

देश की बड़ी आबादी गांवों में बसती है। किसान उनका नेतृत्व करता है। कृषि प्रधान देश में किसान भूखा सोए, यह हमारे लिए शुभ संकेत नहीं है। हमारे नेतृत्व को किसानों की ओर देखना होगा, साथ ही किसान को भी सक्षम होना होगा। किसान को समृद्ध करने से ही देश समृद्ध होगा। इस साल किसानों ने आत्महत्याएं की। लोगों को पेट भरने वाला अन्नदाता, अन्न के दाने-दाने के लिए मोहताज हो गया। जब किसान आर्थिक रूप से सक्षम होगा तभी देश विकास के डग भरेगा। हमारी भूख मिटाने के लिए किसान अन्न उपजाता है। मौसम की मार सहता है। गर्मी, सर्दी सहन करता है। दिन-रात मेहनत करता है। किसान की तपस्या से ही अन्न खेतों में लहराता है। ऐसे में कर्मशीलता के कदम भरते हुए हमें किसानों को समृद्ध बनाना होगा। यह कर्मशीलता किसानों के लिए ही नहीं हर व्यक्ति के लिए लागू होती है। गीता में भी निष्काम कर्म का संदेश दिया गया है। यदि हम कर्म को अपना धर्म बनाएंगे तो आने वाली तस्वीर अच्छी होगी। हम अपने आप पर गर्व कर सकेंगे।

6. चुनौतियां: शिक्षा, संविधान, पूंजीवाद

हमारा देश विकास की ओर अग्रसर हो रहा है। नए साल में शिक्षा, संविधान और पूंजीवाद की चुनौतियों से लड़ना होगा। पूंजीवाद की संस्कृति ने मुट्ठी भर लोगों के हाथों में ताकत दे दी है। जिनके पास पूंजी है, वे राज कर रहे हैं। गरीब और गरीब हो रहा है। आम आदमी के बच्चे शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। हाई एजुकेशन आम आदमी की पहुंच से दूर है। शिक्षा के ढांचे को बदलने की जरूरत है। यह तभी संभव होगा जब न्यायपालिका मजबूत होगी। पिछले कुछ वर्षों में न्याय पालिका ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। एक के बाद एक साफ फैसलों ने देश को आभास कराया है कि न्याय की ताकत भी होती है। हमारे सामने शिक्षा को बढ़ावा देने और संविधान के अनुसार देश चलाने की चुनौतियां हैं। यह तभी संभव है जब आम आदमी के पास शिक्षा का वास्तविक अधिकार हो और संविधान से हर आदमी को लाभ मिल सके। कुछ समय पूर्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने कहा था कि सौ करोड़ रुपए आपके पास हो तभी आप सुप्रीम कोर्ट से न्याय पाने की सोच सकते हैं। आम आदमी सुप्रीम कोर्ट तक आकर न्याय प्राप्त नहीं कर पाता। ऐसे में हमें इस दिशा में सोचना होगा।

7. राष्ट्रभक्ति: जय जवान

हर व्यक्ति को देश के प्रति वफादार होना होगा। राष्ट्रभक्ति हमारे खून में है। देश के प्रति हर आदमी के भीतर जज्बा है। हमें इस जज्बे को नए वर्ष में भी कायम रखना होगा। साथ ही देश के जवानों को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। किसान के साथ जय जवान को भी जय के लिए तैयार होना होगा। वो देश हमेशा सुरक्षित रहता है, जिस देश का बच्चा-बच्चा देश के लिए सर्वस्व लुटाने को तत्पर रहता है। हमें अपनी देशभक्ति से देश को आगे बढ़ाना होगा। देश है तो सारे सुख है। देश की आजादी के लिए जो बलिदान हमारे पूर्वजों ने दिए हैं, उसे याद रखना होगा। देश को बचाने के लिए। देश को आगे बढ़ाने के लिए हर व्यक्ति को जय जवान बनना होगा। हमारी सामरिक शक्ति बढ़ानी होगी। सामरिक शक्ति बढ़ाने के साथ ही सीमाओं की रक्षा में अपनी पूरी ताकत लगा देनी होगी। देश की सीमा अभेद होगी। सुरक्षा चक्र अभेद होगा, तभी देश विकास के बारे में सोच सकेगा। अगर देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं होंगी तो विकास के कदम डगमगा सकते हैं।

8. विजेता: जय विज्ञान, सामरिक

भारत अब पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। विजेता बनना उसकी आदत बन चुकी है। चाहे विज्ञान का क्षेत्र हो या कोई और। हर क्षेत्र में देश ने तरक्की की है। विजेता बनना हमारी आदत है। हमें नए-नए प्रयोग करने होंगे। हमारी सामरिक ताकत बढ़ानी होगी। देश को यह साबित करना होगा कि वह सोने की चिडि़या है और दुनिया को जीत सकता है। इसके लिए हमारे वैज्ञानिकों, हमारे डाॅक्टरों, हमारे इंजीनियरों, हमारे निर्माताओं को आसमां जैसा विराट बनना होगा। जो सपने पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक स्व. अब्दुल कलाम आजाद ने दिखाए, उन्हें पूरे करने होंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था-पढ़ो नहीं तो भारतीय छा जाएंगे, यह हमारी प्रतिभा का परिचायक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा था अब भारत बदल गया है। इसे कमजोर न समझें। विज्ञान के क्षेत्र में हमारे देश ने गजब की तरक्की की है। हमारे वैज्ञानिक विदेशों में प्रतिभा दिखा रहे हैं। ऐसे वैज्ञानिकों को चाहिए कि वे देश के लिए काम करे। प्रतिभा का उपयोग अपने देश के विकास और नई ताकत बनाने में करें। पैसा ही अंतिम लक्ष्य नहीं है। देश का विकास, देश की रक्षा-सुरक्षा और देश के खातिर कार्य करेंगे, यही जज्बा हमे विश्व विजेता बनाएगा।

9. प्रेम व सरलता: नारी सशक्तीकरण, पारिवारिक जिम्मेदारी

जीवन में प्रेम व सरलता भी जरूरी है। नारी सशक्तीकरण की बातें तो खूब होती हैं, मगर नारी शक्ति को महत्व देना होगा। हमारी महिलाओं को खुद सक्षम होना होगा। यह साबित करना होगा कि वे अबला नहीं है और हर क्षेत्र में सक्षम है। इसके लिए नारी को दोहरी भूमिका निभानी होगी। एक तरफ पारिवारिक जिम्मेदारी निभानी होगी, दूसरी तरफ सामाजिक क्षेत्र में। प्रेम के विभिन्न रूपों में नारी को अपना योगदान देना होगा। संतान के लिए ममत्व, पति के प्रति समर्पण और परिवार के प्रजि सहजता, सरलता व जागरूकता निभानी होगी। साथ ही दुनिया के हर क्षेत्र में उन्हें अपने आपको साबित करना होगा। हमारे देश में नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है। कहा भी गया है-यत्र नारियस्तु पूजयते, रमंते तत्रदेवता...यह बात अपनी जगह सही है। लेकिन मौजूदा दौर में नारी के साथ पूरी तरह न्याय नहीं हो पाता। अब नारी को कठपुतली बनने से बचना होगा और हर क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। देश में आए दिन नारी के साथ यौन शोषण हो रहा है। मासूम भी दरिंदगी से बच नहीं पा रहे। ऐसे में नारी शक्ति को सामर्थ्यवान होने की जरूरत है।

10 विकास: उन्नत राष्ट्र, सूचना-प्रौद्योगिकी व खेल

देश आगे बढ़ रहा है। सही मायने में विकास तब होगा जब भारत में हर तरह की तकनीक का विकास हो। सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तरक्की करनी होगी। उन्नत राष्ट्र के लिए जो जरूरी है, वह सब देश के लोगों को करना होगा। अभी हम हर क्षेत्र में विदेशों की ओर ताकते हैं। ये सारी उपलब्धियां देश में ही मौजूद रहेंगी तभी सही मायने में देश का विकास होगा। चाहे अनाज हो, चाहे चिकित्सा हो, चाहे विज्ञान हो और चाहे कोई और क्षेत्र, हर किसी में देश के लोग आगे बढ़ेंगे तभी देश के लोग गर्व कर सकेंगे। इसके लिए हर व्यक्ति को अपने तुच्छ स्वार्थ छोड़ने होंगे। हमारे देश की आबादी दुनिया में सर्वाधिक है, मगर खेल के विभिन्न क्षेत्रों में हम पिछड़े जा रहे हैं। ऐसे में देश की प्रतिभा को निखारना होगा। देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। लेकिन उन्हें मंच देने की जरूरत है। इसके लिए राजनीतिक और भाई-भतीजावाद की नीति को दूर कर प्रतिभाओं को तराशने का कार्य करना होगा।

11
 आस्था: सकारात्मक सोच

आस्था जरूरी है। भगवान में भी और अपने धर्म के प्रति। धर्म से आशय मजहब से नहीं है। जो सत्य और ईमानदारी की राह पर चले वही धर्म है। व्यक्ति को अपनी सोच बदलनी होगी। जब अपने आप पर भरोसा होगा। आत्मविश्वास होगा तभी आस्था कायम रह सकेगी। जब आस्था डगमगा जाएगी तो विकास का ढांचा ही डगमगा जाएगा। इसलिए हमेशा ऊंची सोच रखनी होगी। हमें अपने आप पर जब यह भरोसा हो जाएगा कि हम जो कर रहे हैं वह उचित है। वह देश और अपने समाज के लिए उपयोगी है, तो फिर गलत कदम नहीं उठेंगें। हमारी समस्त ऊर्जा का सदुपयोग होना चाहिए। जब हम अपनी ताकत का गलत उपयोग करेंगे या निगेटिव प्रयोग करेंगे तो देश का सही मायने में विकास नहीं हो पाएगा। समाज को भी सुखी-समृद्ध और खुशहाल बनाने के लिए आस्था के बल पर निर्णय लेने होंगे।

12 सद्व्यवहार: हर क्षेत्र में आचार संहिता

जीवन में हमें सद्व्यवहार करना होगा। अपने आप के लिए आचार संहिता बनानी होगी। जो व्यवहार हम अपने लिए पसंद नहीं करते, उसे दूसरों के लिए भी उपयोग में नहीं लेना होगा। अगर हम अपने व्यवहार को बदल लेंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। व्यवहार ही हमारे विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए हमें सद्व्यवहार की राह पर चलना होगा। अच्छा व्यवहार दुश्मन को भी मित्र बना देता है और बुरा व्यवहार दोस्त को भी दुश्मन बना देता है। हमें अपने पड़ाेसी देशों के साथ भी अच्छा व्यवहार रखना होगा। पड़ोसी दुश्मन नहीं होगा तो हमारा आंतरिक विकास भी अच्छा होगा। अगर देश की सीमाओं के पार पड़ोसी से अच्छे व्यवहार नहीं होंगे, तो देश हमेशा संशय में रहेगा और विकास कार्य नहीं हो पाएंगे। आचार्य चाणक्य ने भी कहा है व्यवहार के बल पर ही सत्ता बदल जाती है। मगध के राजा ने चाणक्य के साथ दुर्व्यवहार किया तो चाणक्य ने चंद्रगुप्त के साथ मिलकर सत्ता ही बदल दी। इसलिए अपने व्यवहार को हमेशा अच्छा रखना चाहिए।


13. अहिंसा : आतंकवाद पर नकैल

बुद्ध के देश में। महावीर के देश में। गांधी के देश में। हमें अहिंसा पर चलना होगा। अहिंसा परमोधर्म। ऐसे में देश के लोगों को आतंक से मुक्ति पाने के लिए सजग रहना होगा। जो तत्व चाहे वह राजनीतिक ही क्यों न हो, अगर माहौल बिगाड़ रहे हैं, या देश में दंगा भड़का रहे हैं, उनका बहिष्कार करना होगा। सारी दुनिया आज आतंकवाद से पीड़ित है। ऐसे में आतंकवाद से मुक्ति पाने के लिए दुनिया के साथ मिलकर संघर्ष करना होगा। हमारा देश वसुधैव कुटुंबकम की भावना रखता है। ऐसे में समस्त विश्व की मदद एवं शांति की कामना से हमें आतंकवाद से लड़ना होगा। आतंक चाहे कहीं से आ रहा हो, चाहे पड़ोस से ही आता हो, हमें कड़ा जवाब देना होगा। आतंकवाद से बचने के लिए हमारी सुरक्षा एजेंसियों और सुरक्षा तंत्र को और अधिक सजग और मजबूत होना होगा।

14. चरित्र : देश का चेहरा बदले

जब देश की बात होती है तो चरित्र पर चर्चा भी जरूरी है। मौजूदा दौर में भ्रष्टाचार इस कदर हावी है कि देश का चरित्र संदिग्ध हैं। हमें अपना चेहरा बदलना होगा। भ्रष्टाचार से लड़ना होगा। चारों तरफ अराजगता का माहौल है। आम आदमी को अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देनी होती है। आप आदमी पार्टी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सत्ता प्राप्त की। अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ रहे हैं। वे इसके लिए संघर्ष भी कर रहे हैं। लेकिन असली सफलता तभी मिलेगी, जब पूरा देश जागृत हो। लेकिन रास्ता बड़ा कठिन है। क्योंकि आम आदमी बेबस है। पैसे वाले लोग रिश्वत देकर काम करवा लेते हैं। रिश्वत देकर अपराधी पुलिस थानों से छूट जाते हैं। रिश्वत ने हमारे देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित की है। ऐसे में चेहरा बदलना ही होगा।

15. बुजुर्ग : वट वृक्ष की हमें जरूरत है

हमारे देश में बुजुर्गों के साथ न्याय नहीं हो रहा। नई पीढ़ी संयुक्त परिवार से कट रही है। बुजुर्गों का सम्मान नहीं किया जा रहा। ऐसे माहौल में वट वृक्ष के नीचे हम नहीं आने से सुरक्षित भी नहीं है। बुजुर्ग हमारे घर की रोशनी है। हमारे माथे पर जब तक उनका हाथ है, हम सुरक्षित और समृद्ध है। उनका आदर करना होगा। उनके बताए रास्ते पर चलना होगा। उनके अनुभवों का लाभ उठाना होगा। उन्हें बोझ नहीं समझना चाहिए। बुजुर्ग है तो सारे जहां की खुशियां है। बैल अगर बूढ़ा हो जाए तो उसे मरने के लिए तो नहीं छोड़ सकते। मगर यहां तो हमारे बुजुर्गों की बात हो रही है। उनके जीवन के अनुभव हमारी संपत्ति है। विरासत है। इस विरासत से जुड़ना ही होगा।

16. आत्मशक्ति : विराट की ओर सोच, विराट कदम


देश की बात हो रही है तो हमारे आत्मविश्वास को भी परखना होगा। आत्मविश्वास से ही हम जीवन के हर मोर्चे पर सफल हो सकते हैं। हमारी सोच को विराट बनानी होगी। आसमां की तरफ देखना होगा। लेकिन पैर जमीं पर ही रहने चाहिए। हमारी उन्नत आकांक्षाएं हमारी मंजिल की ओर ले जाएगी। देश के बच्चे से लेकर बड़े तक आत्मविश्वास से परिपूर्ण होंगे, तभी सही मायनों में खुशहाली आएगी। हमें हर क्षेत्र में विकास करना होगा। हम दुनिया के लिए सोच रहे हैं, मगर सबसे पहले अपने आपके बारे में सोचना होगा। अपने से ही शुरुआत करनी होगी। खुद अपना भला सोचेंगे ताे देश और दुनिया का अपने आप भला होगा। हम छोटी-छोटी बातों को समझें, भूलों से बचें और सबक लें तो आगे बढ़ते जाएंगे। हमारे पैर बिलकुल भी न डगमगाए, इसके लिए बचपन से तैयारी करनी होगी। नींव मजबूत होगी तो ईमारत भी मजबूत होगी। बस ऐसी ही बातों का ख्याल रखकर हम अपनी मंजिल प्राप्त कर सकते हैं। 

Tuesday, 24 November 2015

मीडिया माहौल बिगाड़ रहा है, उसे हर दिन बिकाऊ मुद्दा चाहिए


-देश में असहिष्णुता का माहौल है या नहीं, इस पर बहस निराधार है, क्योंकि यह मीडिया का उठाया मुद्दा है, मीडिया में वह हर चीज बिकाऊ होती है जिसे तुरंत प्रतिक्रिया मिले

-डीके पुरोहित-

देश में माहौल असहिष्णुता का है या नहीं इस पर बहस निराधार है। यह मीडिया की बनाई स्थिति है। मीडिया अपनी जिम्मेदारी समझ नहीं रहा है। अगर मीडिया का यही रवैया रहा तो देश में एक बार फिर 1947 का माहौल हो सकता है। प्रसिद्ध सिने अभिनेता आमिर खान का बयान कि-माहौल देख मेरी पत्नी देश छोड़ने की बात कहने लगी थी, पर देश में हाहाकार मचा हुआ है। इस बयान को मीडिया ने अनावश्यक तूल दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों के बीच में आमिर नायक और खलनायक बन गए। हर कोई अपनी प्रतिक्रिया दे रहा है। कोई आमिर की खिलाफत कर रहा है तो कोई बचाव।

भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज ने ताजा बयान में कहा, ‘अगर आप चर्चित हैं तो एक बयान देने से आपको लाभ हो सकता है। कवरेज मिल सकती है। लेकिन भारत के नाम पर इस तरह के बयान दाग लगा सकते हैं। यह अतुल्य भारत है। इस पर दाग लगाने का काम न करो।'' उन्होंने कहा, ‘आज सीरिया, तुर्की, जॉर्डन, ईरान, इराक में क्या हालात हैं? हिंदुस्तान में पूरे अरब देशों से ज्यादा मुस्लिम हैं और उन्हें बराबर का हक मिला हुआ है। ‘जिस तरह से राहुल गांधी बयान दे रहे हैं उससे साफ है कि यह कांग्रेस की देश को बदनाम करने की साजिश है। इस देश को छोड़कर कहां जाइएगा? जहां जाइएगा इनटॉलरेंस  पाइएगा। भारत के मुस्लिमों के लिए हिंदुस्तान से अच्छा देश और हिंदुओं से अच्छा पड़ोसी नहीं मिलेगा।'

केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, ‘सहिष्णुता इस देश के डीएनए में है। हम आमिर को कहीं नहीं जाने देंगे। वहीं केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, ‘ऐसे बयान से भारत की छवि पर धब्बा लगता है। उधर, सपा नेता आजम खान ने कहा, ‘यह देखिए कि देश छोड़ने की बात कौन कह रहा है। किरण कह रहीं हैं जो हिंदू हैं। उन्हें भी डर लग रहा है। आमिर खान को लिखी चिट्ठी में आजम ने कहा है, ‘बंटवारे के समय भारत में रुकने वाले मुसलमानों को कौम का गद्दार कहा गया। अब हिंदुस्तान में रहने वालों से भी यही सुनने को मिल रहा है। आजम ने आमिर से अपील की है कि वे लोगों के विरोध और ऐतराज के बाद भी समाज को सही रास्ता दिखाते रहें। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि आमिर खान का कहा एक-एक शब्द सही है। इस मुद्दे पर बोलने के लिए मैं उनकी प्रशंसा करता हूं।

वहीं, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, ‘मोदी जी और सरकार से सवाल पूछने वालों को गैरराष्ट्रवादी और सरकार विरोधी या प्रेरित कहा जाता है। इससे बेहतर हो कि सरकार उन लोगों से बात करे। जाने कि किस बात से वे व्यथित हैं। भारत में समस्याओं को दूर करने का यही तरीका है।'

ये बयान ऐसे दौर में सामने आए हैं जब आमिर खान के बहाने मीडिया को बड़ा मुद्दा मिल गया है। कुछ दिन बहस होगी। बयान आएंगे। फिर बहस छिड़ेगी।

और मौजूदा माहौल में देश की हकीकत:

गुजरात में हत्याओं का जो दौर चला, उसके बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की देश में जो छवि बनी, वह जग जाहिर है। यह बात अलग है कि उन्हें कोर्ट से क्लीन चिट मिल गई। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। मोदी के नाम का मीडिया ने हौवा बनाकर देश में एक अलग माहौल बनाया। मोदी मोदी का नाद सुनने को मिला। मोदी को कोई विकास का महापुरुष बताने लगा तो कोई हिंदू तारनहार नेता। इस बीच मोदी की महत्वाकांक्षा को पंख लगे। देश में मोदी-मोदी की लहर चली। ऐसी लहर जो हिंदुस्तान में इससे पहले कभी नहीं चली। वही मोदी आज क्या कर रहे हैं? सब जानते हैं। लेकिन इस बीच देश में माहौल बिगाड़ने का षड़यंत्र चल रहा है। जिसको मीडिया हवा दे रहा है। लोग उटपटांग बयान दे रहे हैं, मीडिया उसे तोड़मोड़ कर या राई का पहाड़ बना कर सामने ला रहा है। 

आमिर खान का बयान ऐसे समय में सामने आया है जब देश में फिर लोग अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। मोदी के राज में नगर निगम का बाबू से लेकर कलेक्टर-कमिश्नर-पुलिस के आला अधिकारी अपने को खुला सांड बनाकर घूम रहे हैं। आम आदमी का जीना दुश्वार हो गया है। जिस भ्रष्टाचार को मोदी ने मुद्दा बनाया। जिस यौन शोषण को रोकने की डींगें हांकी, उसका क्या हुई, दिल्ली सहित देश भर में कन्याओं और महिलाओं के साथ दुराचार हो रहा है। मोदी को विदेशों में जाने की फुरसत हैं, मगर देश की स्थिति सुधारने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। ऐसे ही माहौल में मोदी जैसे लोग सत्ता में आते हैं। इस देश की मीडिया पर पूंजीपति घरानों का कब्जा है। पूंजीपति ही इस देश को चला रहे हैं। राजनीति, नाैकरशाही, पूंजीवाद और दबाव समूह अपनी दादागिरि चला रहे हैं। कोई इस मुद्दे पर नहीं बोलता? बोले भी कैसे-मीडिया अपनी राग अलग ही हांकता है। मीडिया ने तय कर लिया है कि वह जो छापेगा, वही शास्वत सत्य है। मीडिया मुद्दों को हौवा बनाकर देश की स्थिति को खराब कर रहा है। 

मेरे एक मित्र हैं। कम्यूनिस्ट। उसका कहना है कि हम कांग्रेस के साथ इसलिए आते हैं, क्योंकि भाजपा के राज में हमारी भावनाओं की हत्या की जा सकती है। हमारे साथ भी अत्याचार हो सकता है। भाजपा से जान का खतरा बना रहता है। ऐसे में कांग्रेस के साथ जाते हैं। यह शब्द कहने वाला आकाशवाणी का जिम्मेदार उद्घोषक है और प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। यह पीड़ा हिन्दुस्तान के कई साहित्यकारों की है।

देश के विकास में कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आजादी के इतने सालों में क्या हिंदुस्तान आगे नहीं बढ़ा। आज देश की पश्चिमी सीमा तक ट्रेन पहुंची है। जिला हवाई सेवा से जुड़ गया है। देश के चारों कोनों में तेजी से विकास हुआ है। विकास की कहानी जब लिखी जाएगी तो कांग्रेस की अनदेखी नहीं की जा सकती। लेकिन भाजपा ने सांप्रदायिक और अनावश्यक मुद्दों को उठाकर देश की जनता को भ्रमित कर सत्ता हथियाई है। आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा ने भी यूटर्न लिया। अन्य दलों ने भी ऐसे बाण छोड़े, जिनका कोई तोड़ नहीं है। लेकिन भाजपा को जब हर ओर हताशा हाथ लगती है तो देश में सांप्रदायिक मुद्दों को हवा दे देती है। देश की जनता जानती है, यह सब सतही है। लेकिन जब हवा बनती है तो जनता भ्रमित हो जाती है। हम जिस जिले में रहते हैं, उसके पड़ोस में बड़ी संख्या में मुसलमान रहते हैं। वे हमारे परिवार का हिस्सा है। देश में कैसे भी हालात हो, हम प्रेम से रहते हैं। मुसलमान इस देश की शान है। इनकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

इस देश की आजादी में मुसलमानों का भी बड़ा योगदान रहा है। हिंदुस्तान की बात करेंगे तो मुसलमानों को भी साथ लेकर चलना होगा। लेकिन देश की राजनीति में अपने स्वार्थ की खातिर मुसलमानों को डरा-धमकाकर रखा जा रहा है। इन दिनों देश का माहौल कैसा है? बात इसी पर करते हैं। माहौल बिगाड़ा जा रहा है। इसका फायदा किसे हैं, उन नेताओं को जो अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जिससे तनाव बढ़े। कोई छींटे नहीं डाल रहा। बल्कि आग को हवा दे रहा है। अखबारों को विज्ञापन से मतलब है। देश के माहौल को लेकर जिम्मेदारी से मीडिया बच नहीं सकता। देश में अधिक स्थानों पर बीजेपी का शासन है। ऐसे में मीडिया भी अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है। एक पंक्ति देश में आग लगा सकती है। ऐसे में मीडिया को विवाद से बचना होगा। 

लेकिन चर्चा में रहने के लिए ऐसे मुद्दों को हवा दी जाती है। इस समय देश में अराजगता का माहौल है। मोदी बोल नहीं रहे हैं, लेकिन वे मुद्दों को भुनाना जानते हैं। मोदी ने अभी ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे उनकी सराहना की जाए। पूंजीपतियों ने मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाया और मोदी पूंजीपतियों को उपकृत कर रहे हैं। अगर विरोध करते हैं तो दूसरे मुद्दे उठा कर माहौल बिगाड़ देते हैं। गौरतलब है कि इस देश की मीडिया पर पूंजीपतियों का कब्जा है। सवर्ण जाति के लोग ही अधिकतर संपादक और संवाददाता है। वे अपने मालिकों को खुश करने के लिए उनके मुताबिक खबरें देते हैं। मीडिया का मतलब पूंजीवादी ताकतें हैं। ये वही ताकते हैं जो आजादी के बाद से अपना दांव चलती आई है, लेकिन इस देश की जनता ने कभी उसका साथ नहीं दिया। लेकिन लंबे वैचारिक युद्ध के बाद कांग्रेस को धक्का पहुंचाने में मीडिया का बड़ा रोल रहा है। मीडिया ने ही कांग्रेस को खलनायक और मोदी को नायक बनाया। मीडिया कब किसको क्या बना दे, कहा नहीं जा सकता। हम मीडिया से जिम्मेदार होने की अपेक्षा ही कर सकते हैं, आखिर पूंजीवादी शक्तियों के इशारे पर कब तक मीडिया चलेगा। क्या स्वतंत्र कलम चलेगी, या यूं ही एक विचारधारा देश पर थौंपी जाएगी।


Tuesday, 3 November 2015

मोदी राज में भय और असुरक्षा का माहौल


-विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और सहयोगी संगठन हुए बेलगाम, जुबानी हमलों के साथ ही अराजकता की स्थिति, प्रधानमंत्री विदेश यात्राओं में व्यस्त, आम आदमी दो जून की रोटी के लिए कर रहा है संघर्ष
-डीके पुरोहित-

विकास के सपने
दिखा कर चोट करना कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीखें। देश में भय और आक्रोश फैलाने वाला वातावरण हो गया है। मोदी आम आदमी का विश्वास नहीं जीत पाए। चुनाव से पहले जिस तरह आम आदमी ने मोदी को सिर-आंखों पर बिठाया, उसी आम आदमी के सीने में मोदी ने खंजर खोंप दिया है। हर दिन चुनौती लेकर आ रहा है। लोग सुबह उठते हैं और शाम को सुरक्षित घर आते हैं तब परिवार को सुकून मिलता है। हर तरफ अराजकता का राज है। मोदी विदेश यात्राओं में व्यस्त है। देश का विदेशों में नाम रोशन करने के नाम पर खुद दौरों में व्यस्त है। इधर नौकरशाही बेलगाम हो गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और अन्य संगठन खुल्ले सांड की तरह हो गए हैं। कभी जुबानी हमला हो रहा है तो कभी गरीब को पीड़ा पहुंचाई जा रही है।

 
मोदी राज में मंत्री और सांसद आए दिन ऐसे बयान देते हैं, जिससे अल्पसंख्यकों ने उनका बुरा कर दिया हो। अल्पसंख्यकों में इतना भय है कि वे घर से बाहर निकलते हैं तो उन्हें भरोसा नहीं कि घर सही-सलामत लौटेंगे। मोदी ने गुजरात दंगाें में भले ही क्लीन चिट हासिल कर ली हो, मगर उनके माथे पर जो दाग लगा है, उसे वे नहीं धो पाए। अपनी तेज तरार राजनीति और आग उगलते भाषणों से मोदी ने देश की जनता को भ्रमित किया। कभी विकास की राह के सपने दिखाए तो कभी हिंदुत्व को आगे कर बाण छोड़े। चाय वाले ने जैसे गर्म-गर्म पानी लोगों की चमड़ी पर गिरा दिया। सोनिया गांधी ने कहा कि नीच राजनीति बंद हो और मोदी ने गलत व्याख्या करते हुए कहा कि वे नीच घराने के सही…ऐसी ही बातों को गलत अर्थ देते हुए अपनी विशिष्ट भाषण शैली से जनता को भ्रमित किया। मोदी इतने आक्रामक हुए कि भाजपा के शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी तक को चुप करा दिया। वे खून के आंसू पीकर रह गए। यह राजनीति नहीं आतंकी राजनीति है। हिंदुओं को यह सोचना चाहिए कि वे इस देश में शांति चाहते हैं या हर दिन किसी गरीब के चूल्हे पर हमला हो। हम अगर बड़ी संख्या में हैं तो हमें बड़प्पन भी दिखाना होगा। हमें यह सोचना ही होगा कि इस देश को हम सबने मिलकर आगे बढ़ाया है। हमे एक-दूसरे के आंसू पोंछने होंगे। कोई कमजोर है तो उसकी मदद करनी होगी। इस देश की परंपरा, हमारी संस्कृति और हमारे संस्कार कभी इतने आक्रामक नहीं रहे। हमने सबको अपने यहां जगह दी। दिलों में बिठाया। नेपाल जैसे देश ने भी हिंदू राष्ट्र की बजाय धर्मनिरपेक्ष देश को पसंद किया। हमारा देश तो धर्मनिरपेक्ष देश की मिसाल है। हमने हमारे संविधान में सबको जीने का हक दिया। यहां गांधी, गौतम और महावीर ने अहिंसा का संदेश दिया। लेकिन हमारे नेता अगर हिंसा और आगजनी से सत्ता हथियाने का रास्ता अपनाया और हमने उनकी मदद की तो इसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे। मोदी जैसे नेता को हमें हावी नहीं होने देना है। जिसके मन में शासन के नाम पर धोखा भरा हो, उसका क्या भरोसा किया जाए। 


मोदी ने विकास की पैरवी की और अब तक कुछ नहीं किया। गरीबी, बेरोजगारी, हिंसा, आतंक और हर तरफ अराजकता है। नारी सुरक्षित नहीं है। नाबालिगों के साथ संत और ब्रह्मचारी गलत काम कर रहे हैं। देश में ऐसा माहौल जन्म ले चुका है, जिसमें हिंदुत्व पर गर्व करने की बजाय घमंड किया जा रहा है। हिंदू होकर हमें सहिष्णुता कभी नहीं भूलनी होगी। अल्पसंख्यकों को हमें साथ लेकर चलना होगा। हमारे पड़ोसी अगर अल्पसंख्यक है तो उन्हें जीने का हक होना ही चाहिए। 


इस देश को रहीम और रसखान ने सींचा है तो कबीर जैसे क्रांतिकारी ने हिंदु-मुसलमान दोनों को नई राह दिखाई है। साई बाबा ने हमें जीने का रास्ता दिखाया। यहां गाय को हिंदु भी पूजते हैं और मुसलमान भी पालते हैं। इस देश को हमें बनाना है। हमने हमेशा सचाई का साथ दिया। मोदी रेडियो पर मन की बात करते हैं और अगले दिन फिर अपनी मनमानी पर उतर आते हैं। ऐसे दोहरे चरित्र से सावधान रहने की जरूरत है। मोदी देश का विकास करे न करे, हम भाइयों को आपस में लड़वा कर हमारा जीने का मकसद खत्म कर देंगे। 

Sunday, 1 November 2015

श्रमिकों से बोनस के नाम पर छलावा

-श्रम आयुक्त कार्यालय में इंस्पेक्टरों की कमी, बिना प्रमाणिकरण के फैक्ट्री संचालक बोनस के नाम पर करते हैं बंदरबांट, निरीक्षकों को भी मिलता है पिछले रास्ते दीपावली बोनस

-डीके पुरोहित-

दीपावली पर बोनस के नाम पर जोधपुर संभाग में श्रमिकों के साथ छलावा हो रहा है। फैक्ट्री संचालक और ठेकेदार श्रमिकों को पहली बात तो बोनस देते नहीं है। इसके बावजूद यदि बोनस की बात आती है तो उपहार स्वरूप बर्तन इत्यादि की बंदरबांट कर देते हैं। इन बर्तनों व उपकरणों की कीमत बोनस के बराबर बताकर श्रमिकों के साथ छल किया जा रहा है। कई फैक्ट्री संचालक व ठेकेदार श्रमिकों को बोनस के नाम पर परात, भगोला, टिफिन, गिलास, कटोरी और ऐसे ही आइटम देते हैं। इनको बाजार से डिस्काउंट व कम राशि में खरीदा जाता है। बैलेंस शीट में दिखाने के लिए इनका अधिक बिल बना लिया जाता है। बाद में श्रमिकों को बांटा जाता है। यूनियन में दबंग श्रमिकों को उनका चेहरा देखकर उपहार बांटा जा रहा है। ऐसा कई बरसों से हो रहा है। श्रमिक हर बार छला जा रहा है, लेकिन श्रम आयुक्त कार्यालय कोई कार्रवाई करने की बजाय खुद दीपावली मना लेता है।

नियमानुसार बोनस की राशि श्रम आयुक्त कार्यालय के इंस्पेक्टर की निगरानी या प्रमाण करने के बाद ही बांटा जाना चाहिए। जोधपुर संभाग में इंस्पेक्टरों की कमी है। ऐसे में ये इंस्पेक्टर सैकड़ों फैक्ट्रियों व ठेकेदारों के यहां जाकर बोनस का प्रमाणिकरण नहीं कर पाते। होता यह है कि फैक्ट्री मालिक, ठेकेदार व संचालक बोनस की राशि बांटने की बजाय गिफ्ट खरीद लेते हैं। कम राशि में गिफ्ट खरीदकर इसे अधिक राशि का दिखाकर बोनस के नाम पर खानापूर्ति कर दी जाती है। यदि इस मामले में जांच हो तो सच्चाई सामने आ सकती है।


हालत यह है कि श्रम आयुक्त कार्यालय के इंस्पेक्टर फैक्ट्रियों का निरीक्षण करने की बजाय उपहार बांटने के बाद कागजात पर हस्ताक्षर कर लेते हैं। भौतिक रूप से सैकड़ों फैक्ट्रियों में कम इंस्पेक्टर होने की वजह से प्रमाणिकरण नहीं हो पाता। न ही इंस्पेक्टरों की रुचि ही रहती। बाद में बोनस के रूप में बांटी गई राशि या उपकरणों का वे प्रमाणिकरण कर देते हैं। इस कलाकारी में वे अपना बोनस भी बना लेते हैं। ऐसा कई बरसों से हो रहा है, मगर कोई कार्रवाई नहीं हो रही। 

दिल्ली में सरकार केजरीवाल की, मगर उनकी विडंबना यह कि वे स्वतंत्र काम नहीं कर पा रहे

-यह देश की विडंबना है कि दिल्ली में जनता द्वारा चुनी सरकार ढोली-घोड़ा है, इसका रिमोट तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास है, ऐसा नहीं है कि केजरीवाल जैसे मुख्यमंत्री सक्षम नहीं है, मगर उनको काम करने ही नहीं दिया जा रहा, एक तरफ उप राज्यपाल नजीब जंग बात-बात में उन्हें नीचा दिखा रहे हैं, वहीं चौतरफा जनता के दबाव के चलते वे अपने को असहज महसूस कर रहे हैं

-डी.के. पुरोहित-

केजरीवाल। दिल्ली की जनता के चुने मुख्यमंत्री। लेकिन जनता के लिए जब भी कोई कदम उठाते हैं, उप राज्यपाल से टकराव हो जाता है। वे जनता के प्रति वफादारी दिखाना चाहते हैं, मगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अप्रत्यक्ष रूप से उन पर दबाव बना रहे हैं। वे कोई कदम उठाते हैं कि अगले दिन उन्हें निराशा हाथ लगती है। चाहे अफसरों के स्थानांतरण हो, चाहे विभागीय फेरबदल। मुद्दा चाहे जनता के हितों से ही क्यों न जुड़ा हुआ हो, वे स्वतंत्र रूप से कुछ भी नहीं कर पा रहे। दिल्ली जो देश की राजधानी है, वहां या तो अलग मुख्यमंत्री होना नहीं चाहिए, अगर उसकी सरकार अलग चुनी गई है तो उन्हें पूरी स्वतंत्रता से काम करने देना चाहिए।

मोदी की पूरे देश में लहर थी। हर कोई मोदी-मोदी के जयकारे लगा रहा था। ऐसे दौर में जब पानी में मोदी के नाम के पत्थर तैर रहे थे, दिल्ली की जनता ने मोदी को उनकी जमीन दिखाई। केजरीवाल को भारी भरकम बहुमत देकर उन्होंने दिखा दिया कि देश की राजधानी में लहर से सरकार नहीं बनती। जनता समझदार है। जनता अपना भला-बुरा समझती है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के लिए केजरीवाल चुनौती बनकर खड़े हुए। मोदी हालांकि इस असफलता की चर्चा नहीं करते, लेकिन उनके भीतर गहरे तक केजरीवाल का डर व्याप्त है। हो भी क्यों न, जब देश की जनता मोदी को अवतार बता रही थी, उसी दौर में दिल्ली में इतना बड़ा उलटफेर हो गया। दिल्ली में हर तबके के लोग रहते हैं। केजरीवाल न तो जातिवादी समीकरण बता रहे थे और न ही उनकी पार्टी आर्थिक रूप से सक्षम है, लेकिन दिल्ली ने बता दिया कि राजनीति में पारदर्शिता और जनता की इच्छा सर्वोपरि होती है। मोदी ने देश भर की पूरी मशीनरी दिल्ली चुनाव में लगा दी, लेकिन केजरीवाल अजातशत्रु बन कर उभरे। कुछ ही दिनों में मोदी को उनकी औकात बता दी।

देश को अब यह समझ लेना चाहिए कि मोदी की लहर ही थी, जिसे मीडिया ने बनाई। मीडिया जिसने केजरीवाल को भी चढ़ाया, मगर उन्होंने मीडिया से एक निश्चित दूरी बनाए रखी। केजरीवाल ने थोड़े समय में देश-दुनिया को नई विचार एवं कार्यशैली दी। केजरीवाल ऐसा नेतृत्व है जो अपने दम पर आगे बढ़े। मोदी के साथ उनकी पार्टी थी। पूरी कार्यकर्ताओं की फौज थी, लेकिन केजरीवाल के पास था तो केवल विचार-आम आदमी पार्टी। आम आदमी की हितैषी। जनता ने उन्हें स्वीकारा। यह उनकी सफलता है। ऐसी सफलता जिसकी आमतौर पर अपेक्षा नहीं की जा सकती। कुछ ही दिनों में दिल्ली में केजरीवाल के झंडे दिखाई देने लगे। आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा और समर्थित संगठन को जनता ने नकार दिया। केजरीवाल को दिल खोलकर समर्थन किया। यह कोई भेड़चाल नहीं थी। न ही कोई लहर थी। यह समझदारी भरा जनमत था। यह देश की जनता की जीत थी।

अब गौर करें केजरीवाल सरकार पर। जब भी कोई जनहितैषी कदम उठाते हैं, मामला उप राज्यपाल नजीब जंग के सामने आ जाता है। जंग अपनी टांग अड़ाते हैं। देखा जाए तो नेपथ्य में प्रधानमंत्री मोदी सरकार चला रहे हैं। उनकी स्वीकृति बिना कुछ नहीं हो रहा। केजरीवाल ने जनता से जो वादे किए, वे उन्हें पूरा करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें हर बार निराश होना पड़ता है। केजरीवाल के पास विचार है, साहस है और वे अपने वादों के अनुसार आगे बढ़ भी सकते हैं, लेकिन उन्हें हर बार हताशा हाथ लगती है। पर्दे के पीछे कई ताकतें हैं जो उनका रास्ता रोक रही हैं।
 
मोदी सरकार केजरीवाल को कंट्राेल कर रही है। अप्रत्यक्ष रूप से। केजरीवाल कोर्ट की शरण लेते हैं, मगर वहां भी उन्हें सफलता नहीं मिल रही। आखिर केजरीवाल सरकार है या कठपुतली सरकार। वे कोई कदम उठा ही नहीं पाते। उनकी स्वतंत्रता पर कभी कोर्ट का हथोड़ा, कभी मोदी की नाराजगी तो कभी उप राज्यपाल का डंडा पीछा नहीं छोड़ते। ऐसे में दिल्ली की जनता को जागना होगा। जनता ने केजरीवाल को समर्थन दिया है तो जनता को ही दिल्ली को स्वतंत्र राज्य और ताकतवर मुख्यमंत्री के लिए पहल करनी चाहिए। अकेले केजरीवाल लड़ नहीं सकते। जिस जनता ने केजरीवाल को चुना, उन्हें ही अब आगे आगर विरोधी ताकतों से लड़ने में केजरीवाल का साथ देना होगा। केजरीवाल की नियत साफ है। वे अपनी ताकत पर घमंड भी नहीं करते। राजनीति में वे नए खिलाड़ी हैं, उनकी सेना पर चौतरफा हमला हो रहा है। उनके मंत्री अनुभव हीन है, ऐसे में उन पर आए दिन नए-नए हमले हो रहे हैं। ऐसे में केजरीवाल को हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा और अपने को बड़ा खिलाड़ी साबित करना होगा। केजरीवाल के साथ दिल्ली की पूरी जनता है। आज तो दिल्ली की जनता ने उन्हें चुना है, कल देश की जनता भी उनका साथ दे सकती है। जरूरत है मजबूत इरादों की। केजरीवाल को अपनी श्रेष्ठता साबित करनी ही होगी। केजरीवाल ही भविष्य का नेतृत्व बन सकता है। इसके लिए साफ मन की जरूरत है। फिर जनता तो है ही उनकी मदद के लिए। 

Sunday, 25 October 2015

स्वर्ण नगरी में क्रिसमस व नए साल की तैयारियां शुरू


-दीपोत्सव के दौरान गुजराती पर्यटकों का उमड़ेगा हुजूम, शहर की होटलों में अभी से नहीं मिल रही जगह
-डीके पुरोहित-

जैसलमेर। स्वर्ण नगरी जैसलमेर में क्रिसमस व नए साल की तैयारियां चल रही है। अभी से शहर की होटलों में बुकिंग शुरू हो रही है। कई होटलों में तो नो रूम की स्थिति हो गई है। बीते दिनों दुर्गा पूजन पर बंगाली पर्यटकों के आने के बाद अब दीपोत्सव पर गुजराती सैलानी बड़ी संख्या में शहर देखने आएंगे। इसके बाद क्रिसमस और नए साल का जश्न होगा।

जैसलमेर में सितंबर से सैलानियों का हुजूम आना शुरू हो जाता है। इस बार शुरुआत में सैलानी कम आए, मगर सितंबर मध्य में संख्या बढ़ने लगी। इन दिनों शहर के गली-मोहल्लों में सैलानियों की बहार है। सैलानी पटवों की हवेली, नथमल हवेली, सालमसिंह की हवेली, सोनार किला, जैन मंदिर, अमरसागर, बड़ाबाग, लौद्रवा, गजरूप सागर सहित अन्य पर्यटन स्थलों का अवलोकन कर रहे हैं। सम और खुहड़ी में रेत के धोरों पर धमाल बच रहा है। ज्यों-ज्यों सर्दी बढ़ेगी, वैसे ही सम और खुहड़ी में कैंप फायर आयोजन बढ़ने लगेंगे।
 
क्रिसमस पर विशेष पैकेज
शहर में क्रिसमस को लेकर होटलों में विशेष पैकेज दिए जा रहे हैं। सम व खुहड़ी में सूर्यास्त और केमल सफारी के लिए संबंधित एजेंसियां तरह-तरह के ऑफर दे रही हैं। कई होटलों में दो रोज और पांच रोज के भ्रमण पैकेज दिए जा रहे हैं। जितने ज्यादा पैसे, उतनी अधिक सुविधाएं। साधारण सही होटल में एक रूम के 24 घंटे के दो हजार से पांच हजार रुपए लिए जा रहे हैं। बड़ी होटलों में दो दिन के लिए चालीस हजार से लेकर चार लाख रुपए तक के पैकेज दिए जा रहे हैं। विदेशी सैलानियों के लिए इसकी कीमत और अधिक है। होटल संचालक सैलानियों को तरह-तरह के ऑफर दे रहे हैं। सोनार किले में स्थित छोटी होटल में भी बड़े रेट हैं। यहां तक कि लोग अपने घरों में सैलानियों को ठहराते हैं और मनमाना दाम वसूलते हैं।

रेस्टारेंट में रौनक बढ़ी

सैलानियों की आवक बढ़ने के साथ ही रेस्टोरेंट में चहल-पहल बढ़ने लगी है। शहर के चार किलोमीटर दायरे में स्थित रेस्टारेंट के साथ ही फार्म हाउस और पेइंग गेस्ट में भी रौनक रहने लगी है। सर्दी का असर शुरू होने के साथ ही सैलानी रेस्टारेंट में बार और भोजन का लुत्फ उठाने लगे हैं।

सूर्यास्त व ऊंट सवारी का उठा रहे आनंद

सैलानी सम और खुहड़ी में सूर्यास्त और ऊंट सवारी का लुत्फ उठा रहे हैं। शहर में रौनक देखने लायक है। विदेशी सैलानियों को सम के धोरे रास आ रहे हैं। यहां सुबह से लेकर देर शाम तक अठखेलियां करने के बाद रात को लोक संगीत का आनंद उठाते हैं। सैलानियों को लंगा व मांगणियार कलाकारों द्वारा प्रस्तुत संगीत खूब रास आता है।

कठपुतली डांस देखने उमड़ रहे सैलानी

शहर के गड़सीसर चौराहे पर स्थित मरु लोक सांस्कृतिक केंद्र में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक नंदकिशोर शर्मा के म्यूजियम में भीड़ उमड़ने लगी है। यहां म्यूजियम का अवलोकन करने के बाद शाम में दो सत्र में कठपुतली डांस दिखाया जाता है। देसी सैलानियों के साथ विदेशी सैलानी भी इसका आनंद उठाते हैं। कई अन्य राज्यों की कॉलेज और स्कूल टीम यहां कठपुतली डांस देखने आती है।
 
नए साल में होगा धमाल

शहर में नए साल में धमाल होगा। इस दौरान कई सेलिब्रिटी भी आते हैं। फिल्मी अभिनेताओं के साथ-साथ बिजनेसमैन भी स्वर्ण नगरी में नए साल का जश्न मनाते है। इसके लिए शहर की होटलों में तैयारियां चल रही हैं। ट्रेवल एंजेसियों के माध्यम से अभी से बुकिंग हो रही है।  

Wednesday, 21 October 2015

दशानन के जीवन से सीखें दस काम की बातें


-डी.के. पुरोहित-
-रावण का नाम सामने आते ही लोग राक्षस की कल्पना करते हैं और मौजूदा दौर में दशानन के रूप में भ्रष्टाचार, अत्याचार, व्यभिचार आदि का वर्णन करते हुए कहते हैं रावण आज भी जिंदा है। मगर, रावण यानी दशानन के जीवन से काम की बातों की ओर लोगों का ध्यान कम ही जाता है। यहां हम उस दशानन की चर्चा कर रहे हैं, जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। काम की वो दस बातें जो दशानन से सीखी जा सकती है, यहां प्रस्तुत है-

1. टेक्नोलॉजी : रावण के शासन में टेक्नोलॉजी गजब की थी। जिन लड़ाकू विमानों को आज हम देख रहे हैं, पुष्पक विमान के रूप में उनके कार्यकाल में मौजूद थे।
2. समृद्धि : रावण की लंका सोने की थी। समृद्धि के रूप में उनका साम्राज्य काफी समृद्ध था। वहां की स्थापत्य व वास्तुकला अद्वितीय थी।
3. भक्ति-अध्यात्म : रावण शिवजी का अटूट भक्त था। वह आध्यात्मिक प्रवृत्ति का था। उसने अपनी भक्ति से देवताओं से कई वरदान प्राप्त कर रखे थे।
4. ताकत : रावण में गजब की ताकत थी। हजार हाथियों के बराबर उनमें बल था। उसकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह कैलाश पर्वत को उठा लेता था।
5. बुद्धिमान : रावण काे बुद्धिमान बताया गया है। वह गजब का विद्वान था। उसने अपनी बुद्धि से देवताओं को भी वश में कर रखा था।
6. राजनीति : मौजूदा दौर के राजनीतिज्ञों को रावण से मैनेजमेंट के गुर सीखने चाहिए। रावण ने अपनी राजनीतिक दृढ़ता से कुशल शासन स्थापित किया।
7. सामरिक शक्ति : रावण के राज्य में सामरिक शक्ति गजब की थी। उसके भाई, पुत्र, मंत्री और सैनिक गजब की ताकत रखते थे। सामरिक शक्ति में रावण का कोई जवाब नहीं था।
8. पारिवारिक निष्ठा : रावण का अपने परिवार के प्रति विशेष लगाव था। उसकी पारिवारिक निष्ठा को सभी मानते हैं। परिवार के सदस्यों के लिए वह कुछ भी करने का तैयार था।
9. भरोसा : रावण का भाई कुंभकरण, बेटा मेघनाद और कई वीर वीरगति को प्राप्त हुए। अंत में रावण अकेला बच गया, लेकिन उसमें बिलकुल भी भय नहीं था। उसे अपनी ताकत पर पूरा भरोसा था।
10. राष्ट्रहित : रावण राष्ट्र हित के बारे में हमेशा सोचता था। उसकी लंका सोने की थी और उसने उसके विस्तार के लिए पूरे प्रयास किए। उसने हमेशा अपने राष्ट्र का हित सोचा। 

Wednesday, 7 October 2015

काटजू जी आप गौ मांस खाते हैं, दूध भी तो पीया होगा-उसी दूध की कसम देश में गौहत्या रुकवाएं

-गौ को नेपाल ने राष्ट्रीय पशु घोषित किया है, जिस देश में यह होना था वहां गौ मांस का समर्थन कर रहे हैं, वो भी न्याय के सर्वोच्च आसन पर बैठे न्यायाधीश, धिक्कार है संतों, ऐसे न्यायाधीश को सहन कर रहे हैं, हिंदुस्तान में संतों को जागना ही होगा
-डीके पुरोहित-
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस मार्कंडेय काटजू को शायद चर्चा में रहना पसंद है। वे कुछ समय पहले गांधी और बाल गंगाधर तिलक को ब्रिटिश एजेंट कह चुके हैं। अब उन्होंने तीन अक्टूबर को कहा था, ‘गाय किसी की मां नहीं हो सकती। वह सिर्फ एक जानवर है। मैं खुद बीफ खाता हूं। दुनिया में बहुत लोग खाते हैं। यदि मैं बीफ खाना पसंद करता हूं तो मुझे कौन रोक सकता है।’ उनके बयान पर चर्चा करने से पहले इतिहास की तरफ लौटें। 1857 की क्रांति पर गौर करें। सूअर व गाय की चर्बी वाले कारतूस जब ब्रिटिश सेना ने शुरू किए तो मुस्लिम और हिंदू सैनिक खिलाफत पर उतर आए। मंगल पांडे ने प्रतिरोध किया। यह घटना इतिहास में पशुओं के महत्व की ओर ध्यान खींचती है।

 गाय को नेपाल ने अपना राष्ट्रीय पशु घोषित किया है। भारत में यह सदियों से पूजनीय रही है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है।  भगवान कृष्ण को गोपाल भी कहा जाता है। गायों से उन्हें विशेष प्रेम रहा है। हिंदू शास्त्रों में गौ को माता का दर्ज है। गाय दुधारू पशु है। इसे सभी धर्म के लोग पालते हैं। क्योंकि गौ का दूध दुनिया की अर्थव्यवस्था का मूल है। दूध और उससे निर्मित पदार्थ पूरी दुनिया में उपयोग में लिए जाते हैं। लेकिन काटजू ने हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने वाला बयान देकर अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति को व्यक्त किया है।

 हमारे यहां बच्चों को जन्म के साथ ही गौ को माता कहना सिखाया जाता है। गाय का दूध ही बच्चों के पोषण का आधार होता है। दुनिया में सौ प्रतिशत लोग दूध या दूध के प्रॉडक्ट का उपयोग करते हैं। शायद ही कोई व्यक्ति दुनिया में हो जो दूध या दूध के प्रॉडक्ट का उपयोग नहीं करता हो लेकिन जस्टिस काटजू ने अपने बयान से फिर लोगों को आहत किया है। खासकर हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंची है। नेपाल जैसा देश भी गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर चुका है, जबकि भारत में गाय को अभी राष्ट्रीय पशु का दर्जा नहीं मिल पाया है। प्रधानमंत्री मोदी हिंदुओं के नेता बनना पसंद करते हैं मगर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित नहीं करवा पाए। देश में कत्लखाने चल रहे हैं। गाय का मांस निर्यात किया जा रहा है। कई अतिवादी हिंदू संगठन गाय के संरक्षण के पक्ष में है, मगर इसके पीछे भी कुत्सित राजनीति है जो गाय के वध को रोक नहीं पा रही। हिंदुस्तान में गाय घर-घर में मिल जाती है। गौ पालन में मुस्लिम भी कम नहीं है। लेकिन इसके बावजूद गाय की बात आती है तो राजनेता किनारा कर लेते हैं। अब देश के संतों को आगे आना होगा। गाय के सम्मान, गाय के अस्तित्व की लड़ाई लड़नी होगी। काटजू जैसे न्यायाधीश जो हिंसा जैसे शब्दों की शायद अनदेखी कर रहे हैं। गांधी की अहिंसा भी उन्हें दिखाई नहीं देती। बुद्ध और महावीर के देश में प्राणी मात्र की हत्या अपराध माना गया है। लेकिन काटजू को बुद्ध और महावीर से भी शायद कोई सरोकार नहीं है। वे गांधी को ब्रिटिश एजेंट कह सकते हैं तो महावीर व बुद्ध को भी कोई संज्ञा दे सकते हैं।

 जागो देश के संतों। जागो। यह देश के स्वाभिमान का सवाल है। सब एक हो जाओ। आवाज उठाओ। गाय को हिंदुस्तान का राष्ट्रीय पशु घोषित करवाओ। गाै हत्या करने वालों को फांसी की सजा दिलाई जाए। वन विभाग हिरण को मारने वालों को सख्त सजा दिलाने का पक्षधर रहा है, लेकिन गौ हत्या को लेकर कोई कुछ नहीं कर रहा। सनातन संस्कृति को मानने वाले आगे आना होगा। शंकराचार्यों को यह मुद्दा उठाना ही होगा। काटजू जी आप गाय को माता भले ही न समझा हो लेकिन उसका दूध जरूर पिया होगा। जिसका दूध पिया है वह आपकी माता नहीं हुई तो क्या हुई। लेकिन आप तो न्यायाधीश है। न्याय के आसन पर बैठकर न्याय करते रहे हैं। काश आप यह मानते कि गाय जैसा निरीह प्राणी जो हमारी ही नहीं दुनिया की अर्थव्यवस्था का मूल है, उसकी हत्या को कैसे जायज मान सकते हैं। हिंसा को तो कोर्ट भी इज़ाज़त नहीं देता। फिर आपने इसका समर्थन कैसे कर दिया? काटजू जी आपसे विनम्र अनुरोध है-गाय के बारे में लिए शब्द वापस लो। गाय को बचाना हम सबका कर्तव्य है। आपने अगर गाय का दूध पिया है तो उसकी कसम गाय को कत्लखानों से बचाने के लिए आगे आएं।

Sunday, 19 July 2015

महामुकाबला या महाबेशर्मी!

-संसद का मानसून सत्र मंगलवार से शुरू हो रहा है, कांग्रेस का कहना है कि कम से कम तीन इस्तीफे चाहिए, तभी संसद चलने देंगे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साफ कह चुके हैं कि एक भी इस्तीफा नहीं देने देंगे, हम संसद में महामुकाबला करेंगे, अब देश की जनता को कौन बताए कि यह महामुकाबला है या महाबेशर्मी

-डीके पुरोहित-

हमारे देश की संसद में उसी तरह लड़ाई होती है जैसे गली-चौराहों पर झगड़े होते हैं। अब तक का अनुभव तो यही रहा है। मंगलवार से संसद का शीतकालीन सत्र क्या रूप लेगा, कोई नहीं जानता। कांग्रेस राहुल गांधी की अगुवाई में जोरदार लड़ाई लड़ने की तैयारी कर चुकी है तो भाजपा ने इसके बचाव की रणनीति बना ली है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी, वसुंधरा राजे से मिल कर मुकाबले के तीर-तरकश तैयार कर लिए तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह देर शाम दिल्ली पहुंचे और उन्होंने भी शाह से भेंट की। शाह कह चुके हैं कि सुषमा स्वराज अपना बचाव खुद करेगी। बाकी मुख्यमंत्रियों का बचाव पार्टी करेगी। मानसून सत्र के लिए रणनीति बनाने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने रविवार को केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली, सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी, रविशंकर प्रसाद और पीयूष गोयल के साथ बैठक की। वसुंधरा को खास तौर पर बुलाया गया था। आना तो चौहान को भी था। लेकिन वे शाम को दिल्ली पहुंच सके। तब उन्होंने शाह से मुलाकात की। शाम को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू और जेटली से मुलाकात की। शाह भी बैठक में मौजूद थे। सोमवार को स्पीकर सुमित्रा महाजन और संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने सर्वदलीय बैठकें बुलाई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने घर पर एनडीए दलों के नेताओं से चर्चा करेंगे। फिर संसदीय बोर्ड की कार्यकारिणी से मिलेंगे।

राज्यसभा में कांगेस की ओर से विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद का कहना है कि पूरे देश की भावना है कि ललित मोदी कांड में फंसी वसुंधरा राजे और व्यापमं घोटाले में आरोपों के घेरे में आए शिवराज सिंह चौहान इस्तीफा दें। लेकिन ‘मोटी चमड़ी की मोदी सरकार’ किसी की भावना का आदर नहीं कर रही है। आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला है कि प्रधानमंत्री विपक्ष और जनभावना को इस कदर नजरअंदाज कर रहे हैं।
उधर, भाजपा मीडिया सेल इंचार्ज श्रीकांत शर्मा ने चेतावनी दी है कि अगर कांग्रेस ने होहुल्लड़ किया तो हम आक्रामक और प्रभावी तरीके से कांग्रेस के दुष्प्रचार का मुकाबला करेंगे। जहां तक ललित मोदी विवाद का सवाल है, कांग्रेस भ्रमित है। एक तरफ तो वह ललित मोदी के बयान के आधार पर हमारे नेताओं से इस्तीफा मांग रही है। वहीं प्रियंका गांधी और रॉबर्ट वाड्रा पर दिए ललित मोदी के बयानों पर उसके पास कोई जवाब नहीं है। हम उन पर जवाब मांगेंगे। गौरतलब है कि तीन हफ्ते के सत्र के लिए सरकार के एजेंडे में 24 विधेयक हैं। इनमें नौ राज्यसभा में और चार लोकसभा में लंबित हैं। 11 नए विधेयक लाना है। जमीन अधिग्रहण विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति की कार्यवाही पूरी नहीं हुई है। इसका टलना तय है। जीएसटी विधेयक दूसरा महत्वपूर्ण विधेयक है। कुछ क्षेत्रीय पार्टियों से सहयोग की उम्मीद है। लेकिन इसके लिए संसद में कामकाज होना जरूरी है। जो सियासी घमासान की भेंट चढ़ सकता है।

इस सबके बीच इधर स्वदेशी जागरण मंच ने जोधपुर में कहा है कि सरकार अगर जमीन अधिग्रहण विधेयक और अन्य ऐसे विधेयक जो देश के हित में नहीं हैं, लाएगी तो उसका विरोध किया जाएगा। आरएसएस के ललित शर्मा ने साफ कहा है कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार किसकी है, अगर राष्ट्र का मुद्दा होगा तो हम स्पष्ट विरोध करेंगे और आंदोलन किया जाएगा। आरएसएस द्वारा विरोध करने से साफ है कि केंद्र की मोदी सरकार पर भारी दबाव है। आरएसएस राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पसंद नहीं करती है। ऐसे में शीतकालीन सत्र में सरकार पर अतिरिक्त दबाव रहेगा।

हालत यह है कि देश में संसद का तमाशा फिर जगजाहिर होने वाला है। एक तरफ मोदी विदेशों की यात्राएं कर देश की छवि विदेशों में मजबूत बनाने का राग अलाप रहे हैं, वहीं दूसरी ओर संसद की गरिमा के लिए चिंतित नहीं है। उन्होंने बड़ी बेशर्मी से कहा कि इस महामुकाबले का डटकर मुकाबला किया जाएगा। क्या संसद मुकाबले का अखाड़ा हो गई है। कुछ साल पहले एक रिपोर्ट सामने आई थी कि संसद में हंगामा मचाने वालों में भाजपा के सांसद सबसे आगे रहे हैं। उस समय रिपोर्ट पर काफी बवाल बचा था, मगर यह साफ है सड़कों से लेकर संसद तक हुडदंग मचाने में भाजपाइयों का कोई मुकाबला नहीं है। तर्क बेतुके ही क्यों न हो, मामला कैसा भी हो, भाजपाई होहुल्लड़ करने में अपनी शान समझते हैं। भाजपा नेता गांव-शहरों में आग उगलते हैं। इस आग को अगर सकारात्मक रूप से बाहर आने दिया जाए तो देश का विकास हो सकता है, मगर इसी आग को जब नादानी से प्रज्वलित किया जाए तो देश जल भी सकता है। अगर विदेशों में देश की छवि बनानी है तो संसद को अपनी गरिमामय छवि बनानी होगी।

सरकार के एक बाद एक विधेयक ला रही है। मगर इसका जनता को क्या फायदा होगा, कोई नहीं जानता। अन्ना हजारे एक बार फिर भूमि अधिग्रहण बिल पर अनशन की चेतावनी दे चुके हैं। इसका चौतरफा हो रहा विरोध देखते हुए यह बिल संसद में शायद नहीं लाया जाएगा। लेकिन मोदी सरकार किस तरह कांग्रेस का मुकाबला करेगी, यह समझ से परे है। जिसे वे महामुकाबला कर रहे हैं, उसे संसद में शांति से भी लड़ा जा सकता है। लेकिन आजादी के बाद लोकतंत्र में लाल बहादुर शास्त्री ने जिस तरह रेल हादसे के बाद इस्तीफा दिया था, वैसा साहस आज के नेता नहीं उठा रहे हैं। कितने रेल हादसे हुए, कितने मंत्रियों ने इस्तीफा दिया। घोटालों में सिर-पैर तब दबे होने के बाद भी किसी मंत्री या मुख्यमंत्री ने त्यागपत्र नहीं दिया। यह लोकतंत्र की विडंबना है। जनता जिन्हें चुन कर भेजती है, वह जनता की भावना को ही नहीं समझते। ऐसे में लोकतंत्र की अपरिपक्वता सामने आती है। ऐसा कानून भी होना चाहिए जिसमें मंत्री, मुख्यमंत्री को वापस कॉल किया जा सके। अन्ना हजारे भी इस पर जोर दे रहे हैं, मगर राजनीति में ऐसा हो जाए तो सत्ता धूल में मिल जाएगी। यह डर भी नेताओं को सता रहा है। ऐसे में लोकतंत्र की भावनाओं को कोई नहीं समझ रहा है। चलो महामुकाबले की तैयारी करो, हम फिर दर्शक बन जाते हैं। लेकिन ध्यान रखो संसद के बाहर सड़क है, जब जनता जागेगी तो वहीं घूमते नजर आओगे। संसद से सड़क तक आने में अधिक देरी नहीं लगती।

Saturday, 18 July 2015

मारवाड़ी अश्व की दुनिया में कोई मिसाल नहीं : डाॅ. आरके भट्ट

वर्ल्ड स्ट्रीट। जोधपुर 
आॅल इंडिया मारवाड़ी हॉर्स सोसायटी के तत्वावधान में दो दिवसीय मारवाड़ी हाॅर्स जजेज क्लिनिक कार्यशाला का शनिवार को सुबह बालसमंद लेक पैलेस में शुभारंभ हुआ। कार्यशाला में दिनभर अश्व विशेषज्ञों ने मारवाड़ी हाॅर्स के गुणों व कद-काठी सहित विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श किया। उन्होंने निर्णय करने के तरीकों के बारे में भी जानकारी दी। अॉल इंडिया मारवाड़ी हाॅर्स सोसायटी के सचिव कर्नल उम्मेदसिंह राठौड़ ने बताया कि प्रथम दिन दो तकनीकी सत्र हुए। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि काजरी के निदेशक डाॅ. आरके भट्ट ने कहा कि मारवाड़ी अश्व की अपनी अलग पहचान है। इसके समान दुनिया में कोई मिसाल नहीं है। इस नस्ल को बचाए रखने के पूरे प्रयास होने चाहिए। उन्होंने मारवाड़ी हाॅर्स जजेज क्लिनिक के आयोजन को सार्थक बताया।

कार्यशाला का समापन आज
रविवार को सुबह नौ बजे रावल देवेंद्रसिंह नवलगढ़ व डॉ. महेंद्रसिंह द्वारा जजिंग मारवाड़ी हार्स प्रेक्टिकल मार्किंग व टेस्ट कन्वीनर पर व्याख्यान होगा। तीसरा तकनीकी सत्र सुबह 11.30 बजे होगा। इसकी अध्यक्षता ब्रिगेडियर नरपतसिंह राजपुरोहित करेंगे। चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता सवाईसिंह रणसी करेंगे। शाम चार बजे समापन समारोह होगा। इस सत्र के मुख्य अतिथि जोधपुर के पूर्व नरेश गजसिंह होंगे। अध्यक्षता सरदार पटेल पुलिस विवि के कुलपति एमएल कुमावत करेंगे।

मारवाड़ी अश्व के डीएनए पर भी हुई चर्चा
द्वितीय सत्र में आरडी सिंह झाला ने मारवाड़ी अश्व व काठियावाड़ी अश्वों के 22 शारीरिक गुणों की तुलनात्मक जानकारी दी। डाॅ. एके गुप्ता ने घोड़े के डीएनए के बारे में बताया। कार्यशाला में शाम को हाॅर्स शो के दौरान 7 नर व 5 मादा घोड़ों का 22 निर्णायकों के सामने प्रदर्शन किया गया। पूर्व महाराणा महिपेंद्रसिंह दाता ने कहा कि मारवाड़ी अश्व के संरक्षण के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने चाहिए। अश्व विशेषज्ञ व पूर्व राज्यसभा सदस्य डाॅ. नारायणसिंह माणकलाव ने मारवाड़ी हाॅर्स जजेज क्लिनिक के आयोजन की महत्ता पर प्रकाश डाला। प्रथम तकनीकी सत्र में कर्नल उम्मेदसिंह राठौड़ ने ‘जजिंग आॅफ हाॅर्सेज‘ विषय पर अपने व्याख्यान में बताया कि मारवाड़ हाॅर्स जजेज में क्या गुण होने चाहिए। निर्णायक अपनी पैनी निगाहों से सही निर्णय करें और बिना किसी प्रभाव के घोड़े के बारे में अपना निर्णय दें। प्रथम सत्र के द्वितीय व्याख्यान में सिद्धार्थसिंह रोहिट ने मारवाड़ अश्व के गुणों के बारे में विस्तार से बताया।

नमाज पढ़कर घर लौट रहे बाइक सवार दो किशोर की सड़क हादसे में मौत, दो की हालत गंभीर

-चारों किशोर 12 से 14 साल की उम्र के और आपस में चचेरे भाई
वर्ल्ड स्ट्रीट। जोधपुर 
 झंवर थाना क्षेत्र के  हिंगोला में चिराई की ढाणी में रहने वाले चार किशोर शनिवार सुबह क्षेत्र में स्थित एक मस्जिद में नमाज पढ़कर घर लौट रहे थे। रास्ते में मोड़ पर बाइक अनियंत्रित होकर नीचे गिर गई। हादसे में दो किशोर की मौके पर ही मौत हो गई। वहीं अन्य दो किशोर को एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया हैं। चारों की उम्र 12 से 14 साल की है और आपस में चचेरे भाई हैं।
 झंवर पुलिस ने बताया कि हिंगोला में चिराई की ढाणी निवासी आदम खां (12) पुत्र फिरोज खां, पहाड़ खां (14) पुत्र सुभान खां, धूड खां (13) पुत्र शेर खां, जागीर खां (14) पुत्र जब्बरुद्दीन शनिवार सुबह 11 बजे क्षेत्र में स्थित एक मस्जिद में नमाज अदा  कर बाइक पर घर लौट रहे थे। रास्ते में तेज रफ्तार में मोड़ पर बाइक अनियंत्रित होकर नीचे गिर गई। हादसे में आदम व पहाड़ खां की मौके पर ही मौत हो गई। वहीं गंभीर रूप से घायल धूड़  खां व जागीर खां को एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया। डॉक्टर सुनील चांडक ने बताया कि धूड खां के सिर में गंभीर चोट लगने पर उसे वेंटिलेटर पर आईसीयू वार्ड में रखा है। वही जागीर खां की जांघ की हड्डी टूट गई। इस पर उसका ऑपरेशन किया गया। 

आज जानिए दिल का हाल डाॅ. बिमल छाजेड़ के साथ

वर्ल्ड स्ट्रीट। जोधपुर 
दैनिक भास्कर नाॅलेज सीरीज के तहत हेल्थ सेमिनार का आयोजन रविवार की शाम 4:30 बजे  ए-9 फर्स्ट एक्सटेंशन कमला नेहरू नगर प्रताप नगर बस स्टैंड के पास स्थित ऐश्वर्या काॅलेज में किया जाएगा। इसमें प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ बिना आॅपरेशन हृदय को स्वस्थ रखने और आहार से जुड़ी जानकारी देने के लिए जोधपुर की जनता से रूबरू होंगे।  आजकल दिल की बीमारी आम हो गई है तथा लोगों को इस बारे में अवेयर करना आज की आवश्यकता है। इस सेमिनार में बिना आॅपरेशन हृदय को स्वस्थ रखने और आहार से जुड़ी विशेष जानकारियां दी जाएगी। आज की भागदौड़ की जिंदगी में लोगों के पास समय की कमी के चलते वे अपने आहार पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं। वे अनजाने में दिल की बीमारी मोल ले लेते हैं। कार्यक्रम में ऐश्वर्या काॅलेज तथा होटल चंद्रा इंपीरियल का सहयोग रहेगा।



Friday, 17 July 2015

नरेंद्र मोदी करना क्या चाहते हैं कोई नहीं जानता

-जनता ने मोदीमैव जयते का उद्घोष करते हुए नरेंद्र मोदी की ताजपोशी की। मोदी ने मुड़ कर भी जनता की ओर नहीं देखा... वे क्या कर रहे हैं, क्या करना चाहते हैं और उनका क्या एजेंडा है? उसे कोई नहीं जानता। वे कुछ करेंगे भी या बस ऐसे ही नारों से देश को भरमाते रहेंगे?
डीके पुरोहित 

एक साल बीता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या करना चाहते हैं कोई नहीं जानता। फिलहाल करने के नाम पर सिर्फ विदेश यात्राएं की है। आम जनता को उन्होंने जो सपने दिखाए थे, उनमें से किसी पर कोई काम नहीं हुआ। विदेशों से कालाधन वापस लाने के मामले में अभी कुछ नहीं हुआ। हो भी कैसे जब पूंजीपतियों की ही सरकार हो। जिन पूंजीपतियों के सपोर्ट से मोदी ने देश में माहौल बनाया उसका असर अब दिखाई देने लगा है। आम आदमी अब मोदी से ऊब चुका है। हालांकि अभी तक उन्हें तारणहार नेता नहीं मिला है। केजरीवाल विकल्प बन सकते थे, मगर उनके पास न तो इतने संसाधन है, न कार्यकर्ताओं की लंबीचौड़ी फौज है और न ही त्वरित अवसर भी। अब पांच साल बाद चुनाव होंगे तब कौन नेता जनता के करीब होगा, यह कहना फिलहाल संभव नहीं है। जनता पुरानी बातें याद नहीं रखती। उन्हें वर्तमान में जो अच्छा लगता है, वही करती है। अगर ऐसा नहीं होता तो राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार वापस सत्ता में आती। चूंकि गहलोत ने जनता के लिए बहुत कुछ किया था, मगर जैसा की जनता वर्तमान पर अधिक ध्यान देती है। मोदी लहर में वसुंधरा के पाप धुल गए। वह वर्षों से विदेश में डेरा डाले बैठी थी और अचानक प्रकटी और सत्ता भी मिल गई। इसे वसुंधरा की गलती नहीं जनता की गलती माना जाना ही ठीक रहेगा। जनता कब क्या कर दे कोई नहीं जानता। आज भी अगर हम यह कहें कि हिन्दुस्तान की जनता लहरों के थपेड़ों पर चलती है तो गलत नहीं होगा।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव प्रधानमंत्री बने। राजीव की हत्या हुई तो फिर कांग्रेस सत्ता में आई। यह सब लहर का ही परिणाम था। पिछले चुनाव में मोदी की लहर देश भर में थी। इस लहर में कई दिग्गज हार गए। जनता ने बिना कुछ जाने-सोचे मोदी मैव जयते का नारा आत्मसात कर लिया। ऐसे लोग जीत कर आए जिन्हें जनता जानती तक नहीं थी। मोदी मोदी का जो नारा मीडिया ने हिंदुस्तान के घर-घर में उछाला, उसका असर यह रहा कि चाय की दुकानों, पानी की थडिय़ों, ढाबों से लेकर गली-गली तक मोदी मोदी हो गया। मोदी नाम की ऐसी लहर तो आज तक किसी और नेता की नहीं चली। कांग्रेस चित्त। अन्य पार्टियां धराशायी हो गई। जिस जनता ने मोदी को सत्ता सौंपी उन्होंने गादी संभालते ही कहा- अब कड़े निर्णय लेने पड़ेंगे। जनता समझ नहीं पाई कड़े निर्णय का अर्थ क्या है? आज तक कोई नहीं समझ पाया है मोदी क्या करना चाहते हैं? मोदी ने अब तक विदेशों की यात्राएं कर ली। अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को न्यौता दिया। वे आए भी। मगर पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। आज जब यह संवाददाता यह लेख लिख रहा है कश्मीर में मोदी भाषण दे रहे थे और उधर प्रदर्शनकारी अपनी अलग ही राग अलाप रहे थे। पुलिस ने कार्रवाई की तो प्रदर्शनकारियों ने तीन पुलिसकर्मी घायल कर दिए। मोदी ने कोई टिप्पणी नहीं की। मोदी कश्मीर में क्या कार्रवाई करना चाहते हैं? इस संबंध में उनकी कोई मंशा सामने नहीं आ रही। एक बार फिर वे नवाज शरीफ से मिलने की तैयारी कर रहे हैं। आखिर वे करना क्या चाहते हैं। न तो मोदी की वजह से महंगाई कम हुई। बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिला। युवा पीढ़ी के सपने टूट रहे हैं। महिलाओं पर अत्याचार कम नहीं हुए। दलितों का उत्पीड़न जारी है। हर तरफ निराशा है। ऐसे में पता ही नहीं चल रहा कि साल भर से मोदी सत्ता में है। हर सरकारी विभागों को निजीकरण किया जा रहा है। आखिर मोदी देश में क्या करना चाहते हैं कोई समझ क्यों नहीं रहा। उनकी बातें देश की जनता के समझ में नहीं आ रही। ऐसा उलझा हुआ नेतृत्व आखिर कब चमत्कार दिखाएगा। दिखाएगा भी या हवाई भाषण ही देता रहेगा। रेडियो पर मन की बात। बात कुछ और करते हैं और फैसले कुछ और। जो सपने उन्होंने दिखाए थे उनका जनता पूरा होने का इंतजार ही कर रही है। आखिर सुख की हवा कब आएगी। न तो बलात्कारियों में भय है, न दलितों पर अत्याचार रुक रहे।...मुसलमान आशंकित है। स्कूलों में सूर्य नमस्कार और योग अनिवार्य करने की कार्रवाई की जा रही है। क्या ऐसे निर्णय लेने से बच्चों का भला होगा।...देश में लोकतंत्र है। ऐसा नहीं हो इसकी मूल भावनाओं का गला घोंट दिया जाए।

साल भर बीत गया। मोदी अभी भी मुदित है। देश को भाषणों से चला रहे हैं। कहते हैं कि मोदी ने विदेशों में देश का सम्मान बचाया है। यह वही मोदी है जिनका अमेरिका ने वीजा नहीं दिया था। अब कह रहे हैं मोदी को अमेरिका ने जख मार कर बुलाया। अमेरिका पूंजीपतियों का देश है। पूंजीपतियों का यानी पैसों का पैरोकार। भारत में सस्ता श्रम है, सस्ती उपज है और यहां के युवा प्रतिभा संपन्न है...ऐसे में अमेरिका हर उस प्रधानमंत्री को अपने देश में आने का न्यौता देगा जो उनकी पूंजीपति नीतियों को सह देगा। अमेरिका ने मोदी को नहीं अपने स्वार्थ को अमेरिका बुलाया। मोदी इसमें अपनी विजय मानते हैं तो उचित नहीं है। अब देश की जनता को समझ लेना चाहिए कि अपनी बातों और भाषणों से देश का भला नहीं होगा। कुछ करो या मैदान से हट जाओ। नहीं तो जनता को संकल्प लेना चाहिए ऐसे नेताओं को उनकी जमीन दिखाएं।


इन दिनों राहुल गांधी राजस्थान दौरे पर है। शुक्रवार को जयपुर में कार्यकर्ताओं की बैठक में उन्होंने कहा कि मोदी का 56 इंच का सीना जनता 5.6 इंच का कर देगी। राहुल युवाओं में अपनी पैठ जमा नहीं पाए हैं। उन्हें इतना समय भी नहीं मिला। कांग्रेस ने 10 साल लगातार शासन किया। इस बीच सुस्त मनमोहन सरकार से ऊबी जनता में राहुल जोश नहीं भर पाए। वे जब तक आए बहुत देर हो गई। अब भी वक्त है अगले चार साल में कांग्रेस की जमीन तैयार करें। राहुल ने ठीक ही कहा कि देश में मंत्री कोई है तो प्रधानमंत्री मोदी है, बाकी 60-65 मंत्री तो नाम के हैं। मोदी ने आडवाणी को भी चुप करा दिया है। ...अब भला कौन बाेले....जनता को ही बोलना होगा। जल्दी ही अपने लिए नहीं तो अपने सपनों के लिए...।

Wednesday, 15 July 2015

कुर्सी का मोह छोड़ेंगे तभी तो राष्ट्र के बारे में सोचेंगे

-इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति ने देश में नई बहस छेड़ी है, उनका कहना है कि नेहरू के बाद साठ साल में देश में ऐसा नेता नहीं हुआ है  जिसकी वजह से देश में कोई नया आविष्कार या खोज हुई हो, होगी भी कैसे आजादी के बाद नेहरू की पीढ़ियां ही शासन करती रही, कांग्रेस ने ही अधिक समय राज किया, बाकी दलों ने देश को बढ़ाने की बजाय तोड़ने वाली ही राजनीति की, प्रस्तुत है विश्लेषण:-
-डीके पुरोहित-
इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति चर्चा में है। खास कर उनका यह बयान की बीते 60 साल में एक भी ऐसी खोज नहीं हुई जो दुनिया भर में लोगों की जुबान पर हो। उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी है। उन्होंने नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि जवाहरलाल नेहरू के बाद किसी भी प्रधानमंत्री ने प्रभावशाली रिसर्च पर ध्यान नहीं दिया। वे बुधवार को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे। हालांकि यह उनकी व्यक्तिगत राय है, मगर जब बात राष्ट्र के विकास और स्वाभिमान की आती है तो कोई बात व्यक्तिगत कैसे हो सकती है। नेहरू ने आजादी को प्राप्त होते देखा है। वे खुद आजादी के आंदोलन के सिपाही रहे हैं। लेकिन उनके बाद देश में कोई ऐसा नेता नहीं हुआ, जिसने देश का हित देखा हो। यह बात भी अपनी जगह सही है कि कांग्रेस ने ही लंबे समय तक देश पर राज किया। ऐसे में कांग्रेस की ही जिम्मेदारी रही कि वह रिसर्च और आविष्कार के प्रति वैज्ञानिकों को माहौल उत्पन्न कराए।

जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने तब देश के हालात विकट थे। विभाजन की आग लगी हुई थी। चारों तरफ हिंसा से घिरा माहौल था। वे हालांकि वैज्ञानिक और विकासपरक सोच के प्रधानमंत्री रहे और अपने कार्यकाल में उन्होंने देश की बेहतरी के लिए बहुत कुछ किया। विदेशों में देश की साख बढ़ाई। लेकिन आजादी के बाद की समस्याओं से वे इतना घिरे हुए थे कि अधिक ध्यान नहीं दे पाए। बाद के नेताओं ने उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने की बजाय कुर्सी से चिपके रहना ही पसंद किया। सच तो यह है कि कांग्रेस की बिरादरी ने अपनी परंपरागत और वंशानुगत राजनीति को ही बढ़ावा दिया। पहले जवाहरलाल नेहरू, फिर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और इस बीच कुछ अन्य नेता भी सत्ता में आए, मगर उन पर भी नेहरू परिवार की छाप रही। ऐसे में देश के बारे में सोचने की किसी ने जरूरत महसूस नहीं की।

आजादी के बाद अगर कोई महान नेता सामने आया तो वह नेहरू के बाद अटलबिहारी वाजपेयी ही थे। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में देश को मजबूती प्रदान की। उन्होंने विदेश नीति के आधार पर देश को दुनिया में नई पहचान दिलाई। अटलबिहारी को भारत रत्न दिया गया, मगर इससे पहले राजीव गांधी जैसे नेता को भी भारत रत्न दिया गया, जिन्होंने 21वीं सदी का सपना जरूर दिखाया, मगर वे भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहे। ऐसे में कांग्रेस संस्कृति ने अपने ही अपने बारे में सोचा। देश के प्रति उनकी सोच कभी नहीं उभरी। इंदिरा गांधी जैसी नेत्री ने तो आपातकाल लगा कर लोकतंत्र की ही हत्या कर दी। अब यह बात साफ है कि एनआर नारायणमूर्ति किसको दोष दे रहे हैं। अधिकतर राज तो नेहरू के वंशजों ने ही किया। फिर अन्य पार्टियों को किस हद तक जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। वे मिस्टर क्लीन थे, मगर बोफोर्स दलाली में कलंक लगा तो ऐसा लगा कि वे संभल नहीं पाए। बाद में उनकी हत्या के बाद कांग्रेस की वंशानुगत राजनीति कुछ समय के लिए ठहर गई, मगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी प्रत्यक्ष रूप से सत्ता से बाहर ही रहे। कहा तो यही जाता रहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी ही संचालित करते थे। ये अपनी जगह अलग बात है। देखा जाए तो कांग्रेस ने इतने वर्षों तक राज करने के बाद भी देश के वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित नहीं किया।
देश में गैर कांग्रेसी सरकार बनने का दौर शुरू हुआ। खास कर अटलबिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के बाद भाजपा की ताकत बढ़ी। हालांकि उनके बाद फिर कांग्रेस सत्ता में आई, लेकिन राजनीतिक कुर्सी की लड़ाई की ओर क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा रहा। ऐसे में देश में मजबूत सरकारें नहीं बनी। दिल्ली में कांग्रेस तो अन्य राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां हावी रही। इस वजह से देश का प्रधानमंत्री अपने बलबूते पर निर्णय लेने में सफल नहीं रहे। बात अटलबिहारी वाजपेयी के शासनकाल की करें तो उन्होंने परमाणु परीक्षण कर देश को नई पहचान दिलाई। हालांकि इंदिरा गांधी के काल भी पहला परमाणु परीक्षण हो चुका था। मगर नेतृत्व ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे देश में कोई नई रिसर्च या खोज हुई हो। आविष्कार के लिए वैज्ञानिक पैसों को तरसते रहे। इन वर्षों में नेता घोटाले करते रहे। देश काे आर्थिक नुकसान पहुंचाते रहे। भाई, भतीजों, रिश्तेदारों और परिजनों का कारोबार बढ़ता रहा। देश में राजनीतिक छवि दूषित होती गई। रक्षा और रिसर्च पर खर्चा बढ़ाने की बजाय नेता तिजोरियां भरते रहे। आज भी राजनीतिक छवि विदेशों में साफ नहीं है।


मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करें तो उनकी छवि सांप्रदायिक प्रधानमंत्री की है। क्योंकि उन्होंने गुजरात में जो कारनामे दिखाए उससे अल्पसंख्यकों के मन में भय व्याप्त हो गया। आज भी मोदी की छवि में कहीं न कहीं वह दाग है। गोधरा कांड के बाद गुजरात में जो नरसंहार हुआ उससे मोदी बेशक साफ निकल आए हों, मगर वो दाग अभी भी धुला नहीं है। न मोदी मुसलमानों को पसंद करते हैं और न ही मुसलमान मोदी को। ऐसे में अल्पसंख्यक वैज्ञानिक भी डरे हुए हैं। मोदी की छवि आतंक फैलाने वाले नेता के रूप में रही है। हालांकि भारतीय राजनीति में मोदी दो-तीन साल में राष्ट्रीय छवि बनाने में सफल रहे, इसके पीछे उनकी योग्यता नहीं भाजपा नेतृत्व का अभाव रहा। आडवानी की वजह से भाजपा आगे बढ़ी, मगर इस दौर में उन्हें ही किनारा कर दिया गया। आरएसएस और हिंदू संगठन देश का बंटाढार करने में लगे हैं। उन्हें राम मंदिर के आगे कुछ दिखता ही नहीं है। ऐसे में देश में शांतिपूर्ण माहौल नहीं है। फिर कैसे आविष्कार हो, कैसे रिसर्च हो। आरक्षण का भूत इस देश की प्रतिभाओं का भक्षण कर रहा है। भला विदेशों में जातिगत आरक्षण है? आरक्षण के नाम पर देश की प्रतिभाओं ने आत्मदाह किया। इस आग पर राजनेता रोटियां सेंकते रहे। आरक्षण जब तक देश में जिंदा रहेगा, प्रतिभाएं आगे कैसे बढ़ेंगी। भला जो युवक 40 प्रतिशत अंक प्राप्त कर आरक्षण का फायदा उठा कर टीचर बन जाए या डॉक्टर बन जाए वो भला अपने शिष्यों को कैसे 100 प्रतिशत दिलाएगा। ऐसा कोटे से आने वाला डॉक्टर कैसे अच्छी चिकित्सा कर पाएगा। बहुत सी बाते हैं। बहुत से कारण है। कुल मिला कर कुर्सी से चिपके रहने वाली राजनीतिक परिस्थितियों के चलते देश में कैसे आविष्कार होंगे, कैसे रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा। अब विनम्र निवेदन नरेंद्र मोदी से हैं। जो सपना उन्होंने सवा सौ करोड़ देश की जनता को दिखाया है, वो सपना मरने नहीं दे। काश ऐसा हो पाएं...हम तो यही दुआ करेंगे।

Friday, 10 July 2015

अच्छे दिन का सपना दिखाने वाले नेता कहां है? कभी गरीबों के आशियाने उजाड़े जा रहे है, कभी घंटाघर के नाम पर दिखा रहे हिटलरशाही

-चुनाव के दौरान अच्छे दिनों का सपने दिखाने वाले मोदी कहां है? उनकी लहर में सत्ता हथियाने वाली वसुंधरा राजे की खुमारी अभी उतरी नहीं है...जोधपुर में अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरीबों के आशियाने उजाड़ दिए, घंटाघर के सौंदर्यीकरण के नाम पर गरीबों की रोजी रोटी छीन ली...जब गरीब नींद में सो रहे थे, हिटलरशाही की तर्ज पर गरीबों के ठेले तोड़ दिए, बेदर्दी से उनकी रोजी-रोटी पर बुलडोजर चला दिया...फिर भी जोधपुर की जनता अलाप रही है जय मोदी, जय मोदी....


-डी.के. पुरोहित-

घंटाघर में गरीबों के ठेले और रोजी-रोटी पर बुलडोजर चलाने पर कोर्ट की टिप्पणी सामने आई-शहर सड़ रहा है, सौंदर्यीकरण के नाम पर गरीबों की रोजी-रोटी छीन ली।...अब बस कोर्ट से ही आस। गरीब रो सकता है...गिड़गिड़ा सकता है...विनती कर सकता है...और अधिक दबाव पड़ा तो क्रांति के पथ पर अग्रसर भी हो सकता है...इस अंतिम पंक्ति की अनदेखी नहीं की जा सकती...कोर्ट ने भी माना कि उनके साथ अन्याय हुआ है...बिना उनकी रोजी-रोटी और पुनर्वास के रोजी-रोटी के सामन हटा दिए...अब यह भरपाई कब और कैसे होगी? कोई नहीं जानता?...

घंटाघर में आजादी के पहले से लोग रोजी-रोटी के लिए जूझ रहे हैं.. दिल्ली की चांदनी चौक की तर्ज पर घंटाघर का अपना अलग अंदाज है...यहां दूर-दूर से लोग खरीदारी करने आते हैं...जोधपुर के बाहर से भी लोग यहां खरीदारी करना पसंद करते हैं...लेकिन दो दिन पहले यहां जिस हिटलरशाही से अतिक्रमण हटाए गए, उससे भाजपा सरकार का चेहरा सामने आ गया...भाजपा के राज में खुले सांड की तरह अफसर काम कर रहे हैं...यह भी नहीं सोचते कि जनता जब जागेगी तो सत्ताएं मिट्टी में मिल जाएगी।...

बहरहाल बात घंटाघर की हो रही है...लोग अपने घरों में आराम की नींद सो रहे थे, सुबह जल्दी निगम प्रशासन ने बुलडोजर चलवा दिए। यही नहीं दरवाजे भी बंद कर दिए। जो लोग आस-पास रहते थे वे भी संवेदनहीन निकले...। एक तरफ निगम का दस्ता मौके से ठेले और सामग्री तोड़ रहे थे, लोग आए और उठा-उठा कर ले गए...ये सामान किसी की जिंदगी का हिस्सा थे...दिन भर मेहनत कर शाम को रोजी-रोटी का जुगाड़ करने वाले मेहनतकश का सामान ऐसे कोई उठा कर ले जाते हैं क्या?....किसी ने नहीं सोचा। मगर कोर्ट ने यह पीड़ा समझी...अब कोर्ट को नगर निगम से इन गरीबों की सामग्री का नुकसान भरने के लिए कहना चाहिए...। चाहे नगर निगम का आयुक्त हरिसिंह जैसा पूंछ हिलाऊ अफसर हो या महापौर घनश्याम ओझा जैसे संवेदनहीन नेता...ऐसे अफसरों और नेताओं को हमने ही सिर चढ़ाया...किसी प्याऊ का उद्घाटन हो तो हरिसिंह और घनश्याम ओझा को बुलाते...एक तरफ अखबार उनके कशीदे छापता रहा...दूसरी तरफ गरीब खून के आंसू रोते रहे...ऐसे आंसू जो उनकी पीड़ा को शब्द नहीं दे रहे थे...हिटलरशाहों से बचने के लिए अब जनता को जागना होगा...हमें नहीं चाहिए अच्छे दिन...हमें तो चैन से दो-जून की रोटी चाहिए...आप बेशक विदेशों में घूमे...बेशक ललित मोदी के बगल में बैठें...लेकिन हमें जीने का हक दे दें...।

घंटाघर की कहानी तो एक दृष्टांत है...। पूंछ हिलाऊ अफसरों ने तो काली बेरी और भूरि बेरी से अतिक्रमण हटाने के नाम पर नादिरशाही मचा दी...ऐसा हमला बोलो जैसे-आतंकवादी शहर में घुस आए हैं...। हत् ऐसी हठधर्मिता कहीं नहीं देखी...कभी नहीं देखी...एक समय था जब डायर ने बिना चेतावनी दिए लोगों पर बंदूक चला दी। ऐसा ही कुछ इन गरीबों की बस्तियों में हुआ। गरीबों का वोट लेकर नेता पैर पसारते रहे और इन्ही नेताओं ने उनके पैर की चादर ही छीन ली...। 

कितने लोगों का आशियाना उजड़ गया...कितने लोग बेघर हो गए...कांग्रेस विरोध कर रही है। आरसीटू भी विरोध कर रहा है...लेकिन इन आंदोलनों में जनता कहीं नजर नहीं आ रही...गरीब तो रो रो कर अपनी पीड़ा जता रहा है...लेकिन आम जनता भी उनके साथ खड़ी नजर नहीं आ रही है...जिन नेताओं को हमने राज सौंपा...वे चैन की नींद सो रहे हैं...विदेशों में नाम रोशन कर रहे हैं...किसका अपना या देश का, वे ही जाने?...लेकिन जोधपुर की जनता ने भी आम गरीब का साथ छोड़ दिया...पूंजीपतियों की ये सरकारें....इन सरकारों को अब जवाब देना होगा...अगर जोधपुर की जनता जाग गई तो ये महापौर...ये आयुक्त राठौड़....कहीं ऐसा तांडव नृत्य नहीं मचा सकते। गरीबों की बर्बादी पर जश्न मनाने वाले कभी बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों को तो नहीं गिराते...खुद हरिसिंह राठौड़ की संपत्ति की जांच कराने का कोई कष्ट उठाएगा...कोई महापौर की कहानी जानना चाहेगा...पूंजीपतियों की ओर आंख उठाना तो दूर उधर से गुजरते ही नहीं...कोर्ट ने भी ठीक ही कहा कि बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें उन्हें नजर नहीं आ रही....अब कोर्ट से ही आस है...जनता कब जागेगी, कब आंदोलन होगा...यह देर की बात है, तुरंत राहत तो कोर्ट ही दे सकता है...हे देश के न्यायाधीशों न्याय की मशाल थामे रखो...इस जोधपुर में ही नहीं देश में भी बस आपसे आस है.. । हे महोदय, बस आप ही हमारे हैं...नेता-अफसरों से जरा भी आस नहीं हैं....। 

मध्यप्रदेश से तस्करी कर लाया जा रहा है मारवाड़ में अफीम

-नीमच सहित आसपास के इलाकों से की जा रही है तस्करी, मारवाड़ में अफीम का उपयोग अधिक होता है, अफीम के लिहाज से बन रहा है बड़ा मार्केट
-डी.के. पुरोहित-
अफीम की तस्करी के तार मध्यप्रदेश से मारवाड़ के साथ जुड़े हैं। मध्यप्रदेश के नीमच सहित आस-पास के क्षेत्रों से बड़ी मात्रा में अफीम की सप्लाई मारवाड़ में हो रही है। मारवाड़ परंपरागत रूप से अफीम का बड़ा बाजार है। यहां गमी, खुशी, चुनाव और कई अवसरों पर इसका जम कर उपयोग होता है। पूर्व रक्षा मंत्री जसवंत सिंह जसोल भी अफीम की रियाण मामले में फंस चुके हैं। यहां पर शादी-विवाह में अफीम का हेला होता है। रियाण में अफीम की मनुहार आम बात है। ऐसे में बड़ा बाजार होने की वजह से मध्यप्रदेश अफीम का बड़ा सप्लायर बना हुआ है।

मध्यप्रदेश के नीमच में परंपरागत रूप से अफीम का उत्पादन होता रहा है। शुक्रवार को रोडवेज बस में एक तस्कर की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर अफीम की तस्करी का काला कारोबार सामने आया है। यह तो संयोग मात्र है, इससे पहले कभी रोडवेज की जांच नहीं की गई। अचानक जांच में जिस प्रकार से तस्करी का अफीम का दूध बरामद हुआ है, ऐसे मामले पहले सामने नहीं आए। हां, कुछ समय पहले ट्रेन से अफीम बरामद हो चुका है। एक बार फिर अफीम का दूध बरामद होने से जाहिर हो गया है कि अफीम की तस्करी का कारोबार अभी थमा नहीं है। पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियां नियमित जांच नहीं करती। जांच और सुरक्षा व्यवस्था लचर होने की वजह से अफीम तस्कर पुलिस की पकड़ में नहीं आते।

मध्यप्रदेश के नीमच से रोडवेज बस में जोधपुर अफीम की सप्लाई करने आए एक तस्कर को पुलिस ने शुक्रवार को 820 ग्राम अफीम के दूध के साथ पकड़ा। पुलिस आरोपी से पूछताछ कर अफीम खरीदार के बारे में पड़ताल कर रही है। उदयमंदिर थानाधिकारी राजूराम चौधरी ने बताया कि मध्यप्रदेश के नीमच में नानाखेड़ा निवासी मांगीलाल (50) पुत्र हीरालाल बंजारा शुक्रवार को रोडवेज बस में एमपी से जोधपुर आया था। पुलिस ने रोडवेज बस स्टेंड पर तलाशी अभियान के तहत मांगीलाल के रोडवेज बस से देर शाम उतरते ही बैग की तलाशी ली तो उसमें 820 ग्राम अफीम का दूध मिला। पूछताछ में आरोपी ने बताया कि वह अफीम के दूध की सप्लाई बीजेएस में रहने वाले एक युवक को करने वाला था। आरोपी एमपी से अफीम 70 हजार रुपए किलोग्राम के हिसाब से खरीद जोधपुर में 1 लाख रुपए किलोग्राम के भाव से बेचता था। पुलिस आरोपी से पूछताछ कर अफीम लेने वाले युवक की तलाश में लगी रही।

इधर, एक बार फिर अफीम की तस्करी की आशंका से मध्यप्रदेश के खिलाफ तार जुड़ते नजर आ रहे हैं। अगर पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां नियमित जांच करती है तो ऐसे कई मामले सामने आ सकते हैं। गौरतलब है कि जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर और प्रदेश के अन्य स्थानों पर भी अफीम का हाका होता है। इस हेले में स्थानीय लोग शामिल होते हैं। अफीम का उत्पादन मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर होता रहा है। पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की सख्ती से इसके उत्पादन पर रोक जरूर लगी थी, लेकिन हाल ही में पकड़ में आए मामले के बाद फिर हफीम की तस्करी में मध्यप्रदेश का नाम सुर्खियों में आया है। 

Monday, 29 June 2015

दूसरे राज्यों से बच्चे खरीद कर जोधपुर में करवा रहे हैं बंधुआ मजदूरी

-इसी  महीने में कई मामले सामने आए, एनजीओ की मदद से पुलिस ने छुड़ाए बच्चे


-डी.के. पुरोहित-

केस वन: 
मंडोर थाना क्षेत्र में लालसागर के पास नरसिंह विहार में 16 जून को मानव तस्करी विंग व पुलिस ने एक मकान में दबिश देकर 10 साल की बच्ची को छुड़ाया। बच्ची को राजकुमार व्यास के मकान पर दबिश देकर छुड़ाया गया। इसे राजकुमार कहीं से खरीद लाया था।

केस टू: 
जयभीम विकास संस्थान की चाइल्ड हेल्पलाइन व जोधपुर पुलिस की मानव तस्करी विरोधी विंग ने 27 जून को दो जगह कार्रवाई कर कशीदाकारी और चूड़ियों की फैक्ट्री से नौ बाल श्रमिकों को मुक्त करवाया। इस मामले में ठेकेदार सहित चार जनों को गिरफ्तार किया। इन बच्चों को बिहार के बेगुसराय से खरीद कर लाया गया था।

जोधपुर। दूसरे राज्यों से बच्चे खरीद कर जोधपुर में संभ्रांत घरों के लोग मजदूरी करवा रहे हैं। पिछले एक महीने में कई मामलों में पुलिस ने एनजीओ के साथ मिलकर ऐसे बच्चों को छुड़ाया जिनकी आयु आठ से 15 साल है। अभी भी पुलिस को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। कई बच्चे ढाबों, रेस्टोरेंट, होटलों और दुकानों पर बाल मजदूरी कर रहे हैं। छोटी उम्र के इन बच्चों के साथ अनैतिक कार्य भी किया जाता है। ये बच्चे कई ढाबों और रेस्टारेंट में सड़क पर ही सोते हैं और इनके साथ आए दिन मारपीट होती है।

बिहार, उत्तरप्रदेश के साथ ही नेपाल से भी बच्चों की तस्करी हो रही है। जोधपुर शहर के कई व्यापारी भी इन्हें खरीदकर ला रहे हैं। यह धंधा वर्षों से चल रहा है। शहर की तमाम होटलों में बाल मजदूर काम कर रहे हैं। इन्हें आस-पास के राज्यों से खरीद कर लाया जा रहा है। यही नहीं पश्चिमी राजस्थान में आए साल पड़ने वाले अकाल और बेरोजगारी की वजह से मां-बाप बच्चों को बेच देते हैं या फिर धंधे में लगाने की गरज से व्यापारियों को सौंप देते हैं। इन दिनों पकड़े गए प्रकरणों में बच्चों से जबरन मजदूरी करवाई जा रही थी।

जोधपुर में शास्त्री नगर, सरदारपुरा, जालोरी गेट, चौपासनी हाउसिंग बोर्ड, कुड़ी भगतासनी, सोजती गेट, नई सड़क और घंटाघर सहित कई इलाकों में दुकानों में बाल मजदूर कार्य कर रहे हैं। पुलिस को शिकायत मिलती है तभी कार्रवाई की जाती है। जब वर्षों से यह गोरखधंधा चल रहा है। शहर में कुछ एनजीओ सक्रिय है जो इस दिशा में कार्रवाई कर रहे हैं। मगर यह कार्रवाई छोटे स्तर पर ही है। शहर में बाल मजदूरों की बड़ी तादाद है।

रात में अनैतिक कार्य और मारपीट की जाती है
एनजीआे की रिपोर्ट है कि इन बच्चों के साथ अनैतिक कार्य किए जाते हैं। इनसे दिन भर मजदूरी करवाई जाती है और काम नहीं करने पर उनके साथ मारपीट की जाती है। एक बाल श्रमिक भोले ने बताया कि उसके घर में माता-पिता की मौत हो चुकी है। चाचा ने उसे ढाबे पर लगा रखा है। वह वर्षों से अपने घर राजमथाई नहीं गया। उसने बताया कि ढाबे मालिक का बेटा उसके साथ खोटा काम करता है। ऐसे कई प्रकरण है। पुलिस को इसके खिलाफ अभियान चलाने की जरूरत है। 

Sunday, 28 June 2015

वसुंधरा राजे को सत्ता देने की भूल सुधारें, आओ फिर नए नेतृत्व की ओर बढ़ें .....

-अब समय आ गया है कि हम अपना नया नेता चुने, अभी चुनाव होने में देरी है, मगर लोक आंदोलन शुरू कर महारानी को सत्ता से हटाने की पहल कर गरीबों के लिए आम आदमी के लिए नेतृत्व की तलाश करें, मोदी की माया से निकलें और उजले सूरज को रास्ता दें....

-डीके पुरोहित-

कुछ दिन पहले समाचार पढ़ने को मिले कि राजस्थान में जल संकट को लेकर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कमरे में रोई। अब समाचार है कि भगोड़े ललित मोदी को वह मदद कर रही है। राजस्थान में वसुंधरा सरकार ने अब तक नौटंकी के अलावा कुछ नहीं किया। खुद सरकार के पास अपने किए काम गिनाने को कुछ नहीं है। लोकतंत्र की यह विडंबना है कि यहां जनता भेड़ चाल चलती है। या फिर लोकतंत्र लहर के भरोसे चलता है। विदेशों में डेरा डाले बैठी महारानी मोदी लहर में फिर से सत्ता में आ गई। कांग्रेस शासन काल में वह कहीं कभी जनता के साथ नहीं दिखी। अब वही राजे फिर से मुख्यमंत्री है। है ही नहीं बेशर्मी से शासन चला रही है।

पिछले कुछ दिनों से ललित मोदी के साथ राजे सुर्खियों में है। कांग्रेस राजे से इस्तीफा मांग रही है। महारानी इस्तीफा नहीं दे रही है। मोदी भी चुप है। मोदी जैसे मौकापरस्त लोग नौटंकी करने में अपनी सफलता समझते हैं। अब तक के कार्यकाल में मोदी ने देश भर को झाड़ू थमा दिया। सबसे पहले भ्रष्टाचार, अराजकता, चरित्रहीनता की गंदगी साफ करने की जरूरत है। चुनाव के दौरान मोदी कहा करते थे कि उनका शासन आते ही अच्छे दिन आएंगे। बलात्कार जैसे शब्द से उन्हें चिढ़ थी और कहते थे कि वे सत्ता में आकर नारी के सम्मान की रक्षा करेंगे। लेकिन खुद उनके शासन में कितने ही बलात्कार हो चुके हैं। मोदी को वरदान है कि वे अच्छे वक्ता है। वे मौके को भुनाना जानते हैं। शब्दों के बाजीगर है। वे अपने अब तक के कार्यकाल में विदेशों में ही दौरे करते रहे। लोग कहते हैं मोदी ने देश का सम्मान विदेश में बढ़ाया है। सम्मान बढ़ाने से देश की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।

मोदी चाहते हैं देश विकास करें। तो फिर अब तक उन्होंने क्या किया? वादे। वादे और सिर्फ वादे। युवा वर्ग में उन्होंने एक नई उम्मीद जगाई थी। वे युवाओं के चहेते बन गए। थोड़े से समय में मोदी देश में बड़े नेता के रूप में उभरे। लोकतंत्र में जिस तरह मेले कई होते हैं, उसी तरह यहां लोगों को जल्दी ही सिर पर चढ़ा दिया जाता है। सब जानते हैं गुजरात में मोदी किस वजह से सत्ता में बने रहे। विकास के नाम पर हो सकता है, उनके पास दिखाने को कई काम होंगे, तो फिर देश की राजधानी में आ कर देश को कैसे अनदेखा कर रहे हैं। बहरहाल बात वसुंधरा राजे की हो रही है। वसुंधरा ने अब तक कार्यकाल में कुछ नहीं किया। वे भी मोदी के नाम काे भुनाती रही। खुद उनकी उपलब्धियां कुछ नहीं है।

कांग्रेस कह रही है कि वसुंधरा इस्तीफा दे। मगर वसुंधरा नहीं दे रही है। आलाकमान खामोश है। भाजपा की क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति मोदी से इस बार शुरू हुई और मोदी पर आकर खत्म हो गई। लोग मोदी की ओर देख रहे हैं। मगर मोदी कलाकार तगड़े हैं, वसुंधरा के खिलाफ कुछ नहीं कर रहे। हो सकता है वे वसुंधरा को कुसुरवार नहीं मानते हो। शायद सच भी हो। या नहीं भी हो। लेकिन उन्हें इस मामले में बोलना चाहिए।

वसुंधरा शुरू से ही तानाशाह शासक रही है। गुर्जर आंदोलन के दौरान पिछले कार्यकाल में उन्होंने गोलियां बरसाई। पानी मांग रहे किसानों को खून से रंग दिया। कोई आवाज नहीं उठा सकता था। अब दूसरे कार्यकाल में वह फिर तानाशाह बनी हुई है। राज्य में सरकारी सेवाओं का निजीकरण कर वह पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। सरकार से अगर सरकारी महकमे नहीं संभलते हैं तो उसका हल निजीकरण करना तो नहीं है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का निजीकरण करने का फैसला भी कुछ ऐसा ही है। निजी होते ही लूट शुरू हो जाएगी। आम और गरीब आदमी पिसेगा। पैसे वालों को इलाज मिलेगा और आम आदमी लाचार हो जाएगा। कांग्रेस सरकार में अशोक गहलोत ने गरीबों में नई उम्मीद जगाई थी, मगर खुद जनता ने मोदी की माया का शिकार होकर महारानी को ताज सौंप दिया। अब भुगते। भुगत ही रहे हैं। अभी तक पीएचसी का निजीकरण हो रहा है। आगे-आगे देखिए और क्या होता है। अब भी जनता को चाहिए कि मोदी और महारानी के खिलाफ अभियान शुरू करे। जिस तरह उदारभाव से इन्हें हमने सत्ता साैंपी थी, उतनी ही सख्ती से इनका विरोध होना चाहिए। 

अब हमें मोदी और महारानी नहीं नायक चाहिए। सही मायने में नायक, जो आम जनता से सीधा जुड़े। महारानी जिस तरह से निर्णय कर रही है, उससे राज्य का सत्यानाश होना तय है। वह चाहे पानी के मुद्दे पर आंसू बहाए या महिलाओं को गले से लगाए। यह नौटंकी अब खत्म होनी चाहिए। राज्य की जनता को चाहिए कि वसुंधरा के खिलाफ आंदोलन शुरू करे। राज्य को क्या चाहिए-रोटी, मकान, कपड़ा, स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ प्राथमिक जरूरत की चीजें। मगर इन सबसे राज्य की जनता वंचित है। बिजली का भी जल्द निजीकरण करने जा रही है महारानी। जिस पवित्र उद्देश्य से केजरीवाल ने दिल्ली में शासन करना शुरू किया है, उसी की अब देश के साथ राज्य को भी जरूरत है। हमें फिर से अपने नेता की तलाश करनी होगी। मौकापरस्त लोगों से बचना होगा। इन मौकापरस्त नेताओं ने हमें हर बार भरमाया है। कोई तो सुकून का निर्णय हो। राज्य की जनता राजे को कोस रही है। अब समय आ गया है कि एक बार फिर से राज्य जगे। अपनी भूल पर प्रायश्चित करे और महारानी के खिलाफ तेज आंदोलन शुरू करे। हमें नेता नहीं काम करने वाले नेतृत्व की जरूरत है। राज्य में शराब माफिया शासन चला रहे हैं। अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरीबों के आशियाने ढहाए जा रहे हैं। हर तरफ अराजकता है। अब चलो एक बार फिर सुकून के लिए शांति के लिए राजे को हटाएं। एक आंदोलन चलाएं। शुरुआत जल्दी होनी चाहिए।

Monday, 22 June 2015

आर्मी कैंट में जोधपुर पॉलीक्लीनिक का जीर्णोद्धार के बाद लोकार्पण

वर्ल्ड स्ट्रीट।  जोधपुर 

जोधपुर एवं पश्चिमी राजस्थान के गौरव सैनिकों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने के लिए पॉलीक्लीनिक का जीर्णोद्धार करने के बाद सोमवार को लोकार्पण किया गया। सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल धन्नाराम ने इसका उद्घाटन किया। 

इस मौके पर कोणार्क कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बॉबी मेथ्यू भी मौजूद थे। इस महत्वपूर्ण पूर्व अंशदायी स्वास्थ्य योजना के तहत पॉलीक्लीनिक के पुनरुद्धार कार्य में कोणार्क कोर की ओर से आधुनिक सुविधाएं दी गई हैं। इस पॉलीक्लीनिक से जोधपुर व आसपास के इलाकों से करीब पचास हजार गौरव सैनिक व उनके परिजन लाभान्वित होंगे। बाड़मेर, जैसलमेर, पाली, नागौर, डीडवाना व जालोर आदि क्षेत्रों से भी मरीजों को सुविधा मिलेगी। 

यहीं दंत चिकित्सा की सुविधा भी नए भवन में स्थानांतरित की गई है। अतिरिक्त भूमि का उपयोग अतिरिक्त चिकित्सा सुविधाओं के लिए किया जाएगा। पूर्व सैनिकों ने कोणार्क कोर कमांडर तथा सब एरिया के जीओसी मेजर जनरल एएस चौधरी का आभार जताया।



फिजूलखर्च रोकने के लिए सामूहिक विवाह जरूरी: कंसारा

वर्ल्ड स्ट्रीट। जोधपुर

कंसारा समाज का दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन विश्वकर्मा जांगिड़ पंचायत भवन शास्त्री नगर में संपन्न हुआ। इस मौके समाज के मुख्य संरक्षक बाबूलाल कंसारा उर्फ बाबा ने कहा कि फिजूलखर्च रोकने के लिए सामूहिक विवाह जैसे आयोजन करना जरूरी हो गया है। युवक-युवती परिचय सम्मेलन भी जरूरी है।  समाज के विकास के लिए बहुत चुनौतियां हैं। ऐसे में समाज के लोगों को अपने सुझाव देकर योजनाएं शुरू करने के प्रयास करने चाहिए।

युवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण

कंसारा ने कहा कि बालिका शिक्षा आज की जरूरत है। खासकर युवा अपनी शक्ति पहचाने और समाज के विकास में अपना योगदान दें। समाज के विकास के लिए एकजुट होना होगा। संस्थान के अध्यक्ष नंदकिशोर कंसारा ने कहा कि समाज के विकास में सभी लोगों की भागीदारी जरूरी है। पूर्व अध्यक्ष नवरतन कंसारा ने लिंगानुपात गड़बड़ाने पर चिंता जताई। आनंदप्रकाश कंसारा, बालकिशन कंसारा ने इस प्रकार के आयोजन समय-समय पर करने की आवश्यकता जताई।

इन्होंने निभाई भागीदारी

राजनारायण, दामोदरलाल, मनोहरलाल, रंजन कंसारा, पुरुषोत्तम कंसारा, कैलाश कंसारा, राजेश कंसारा, मघराज, इंद्रमल कंसारा, मोहनलाल कंसारा, शिवप्रकाश, नटवरलाल, डॉ. मदनलाल कंसारा, किशनलाल, चौथमल, अचलदास, भीकमचंद कंसारा, दिनेश कुमार सहित देश भर से चौदह खेड़ों से समाज के लोगों ने भाग लिया।

राजनीतिक नहीं सामाजिक बदलाव से तरक्की करेगा देश : गडकरी

-स्व. सुंदरसिंह भंडारी व्याख्यानमाला में 14 वरिष्ठजनों का किया सम्मान

वर्ल्ड स्ट्रीट . जोधपुर

केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि केवल राजनीतिक बदलाव से परिर्वतन नहीं आएगा। इसके लिए सामाजिक बदलाव लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमारे पास ताकत की कमी नहीं है, लेकिन उसका सही समय व सही जगह इस्तेमाल करने की आवश्यकता है। वे सोमवार को जयनारायण व्यास टाउन हॉल में स्व. सुंदरसिंह भंडारी की 10वीं पुण्यतिथि पर आयोजित व्याख्यानमाला में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि इकोनॉमिक, इथिक्स और एनवायरमेंट को बदलने के कार्य करने के प्रयास तेज करने होंगे। गडकरी ने कहा कि व्यवस्थाओं में परिर्वतन होना चाहिए, जिसमें  टेक्नोलॉजी का भी एक मजबूत पक्ष रहेगा। 

राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में बड़ा फर्क

गडकरी ने कहा कि लंबे समय तक समाज में सेवा का कार्य करते अपनी पहचान बनाने वाले बुजुर्ग अपने काम में इतने तल्लीन रहते हैं कि उन्हें सौ साल तक भी सोचने की जरूरत नहीं। लेकिन राजनीतिक व्यक्ति को हर पांच साल में सोचना पड़ता है कि अब आगे कैसे करेंगे, क्या प्लान बनाएंगे? उन्होंने कहा कि राष्ट्र को सुखमय बनाने के लिए सामाजिक ढांचे को मजबूत करने में हमें बुजर्गों से प्रेरणा लेनी होगी। 

ग्रांउड लेवल पर अच्छा काम करेंगे तो फल मिलेगा

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में आने पर लोगों को मालाएं नहीं पहनाईं और न ही स्वार्थ से जुड़ा रहा। ग्राउंड लेवल पर अच्छा कार्य किया, जिसका फल उन्हें मिला। उन्होंने कार्यकर्ताओं को भी सीख दी कि ग्राउंड लेवल पर अच्छा काम करें, वक्त आने पर जरूर अच्छा फल मिलेगा। इसका उदाहरण है कि पार्टी में कई नए लोग अच्छे ओहदे पर आए हैं।

कई जिलों के वरिष्ठजनों काे किया सम्मानित

कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री गडकरी व राज्य के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने राजनीतिक क्षेत्र के साथ समाज उत्थान के अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करने वाले 14 वरिष्ठजनों का सम्मान किया। इसमें जोधपुर, बाड़मेर, उदयपुर, बांसवाड़ा एवं अन्य जिलों से आए वरिष्ठजनों को साफा एवं माला पहनाकर व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम आयोजक प्रसन्नचंद मेहता का भी स्वागत किया गया। कार्यक्रम में आरएसएस के अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख गुणवंतसिंह कोठारी व महापौर घनश्याम ओझा ने स्व. भंडारी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला।