Friday, 17 July 2015

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नरेंद्र मोदी करना क्या चाहते हैं कोई नहीं जानता

-जनता ने मोदीमैव जयते का उद्घोष करते हुए नरेंद्र मोदी की ताजपोशी की। मोदी ने मुड़ कर भी जनता की ओर नहीं देखा... वे क्या कर रहे हैं, क्या करना चाहते हैं और उनका क्या एजेंडा है? उसे कोई नहीं जानता। वे कुछ करेंगे भी या बस ऐसे ही नारों से देश को भरमाते रहेंगे?
डीके पुरोहित 

एक साल बीता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या करना चाहते हैं कोई नहीं जानता। फिलहाल करने के नाम पर सिर्फ विदेश यात्राएं की है। आम जनता को उन्होंने जो सपने दिखाए थे, उनमें से किसी पर कोई काम नहीं हुआ। विदेशों से कालाधन वापस लाने के मामले में अभी कुछ नहीं हुआ। हो भी कैसे जब पूंजीपतियों की ही सरकार हो। जिन पूंजीपतियों के सपोर्ट से मोदी ने देश में माहौल बनाया उसका असर अब दिखाई देने लगा है। आम आदमी अब मोदी से ऊब चुका है। हालांकि अभी तक उन्हें तारणहार नेता नहीं मिला है। केजरीवाल विकल्प बन सकते थे, मगर उनके पास न तो इतने संसाधन है, न कार्यकर्ताओं की लंबीचौड़ी फौज है और न ही त्वरित अवसर भी। अब पांच साल बाद चुनाव होंगे तब कौन नेता जनता के करीब होगा, यह कहना फिलहाल संभव नहीं है। जनता पुरानी बातें याद नहीं रखती। उन्हें वर्तमान में जो अच्छा लगता है, वही करती है। अगर ऐसा नहीं होता तो राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार वापस सत्ता में आती। चूंकि गहलोत ने जनता के लिए बहुत कुछ किया था, मगर जैसा की जनता वर्तमान पर अधिक ध्यान देती है। मोदी लहर में वसुंधरा के पाप धुल गए। वह वर्षों से विदेश में डेरा डाले बैठी थी और अचानक प्रकटी और सत्ता भी मिल गई। इसे वसुंधरा की गलती नहीं जनता की गलती माना जाना ही ठीक रहेगा। जनता कब क्या कर दे कोई नहीं जानता। आज भी अगर हम यह कहें कि हिन्दुस्तान की जनता लहरों के थपेड़ों पर चलती है तो गलत नहीं होगा।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव प्रधानमंत्री बने। राजीव की हत्या हुई तो फिर कांग्रेस सत्ता में आई। यह सब लहर का ही परिणाम था। पिछले चुनाव में मोदी की लहर देश भर में थी। इस लहर में कई दिग्गज हार गए। जनता ने बिना कुछ जाने-सोचे मोदी मैव जयते का नारा आत्मसात कर लिया। ऐसे लोग जीत कर आए जिन्हें जनता जानती तक नहीं थी। मोदी मोदी का जो नारा मीडिया ने हिंदुस्तान के घर-घर में उछाला, उसका असर यह रहा कि चाय की दुकानों, पानी की थडिय़ों, ढाबों से लेकर गली-गली तक मोदी मोदी हो गया। मोदी नाम की ऐसी लहर तो आज तक किसी और नेता की नहीं चली। कांग्रेस चित्त। अन्य पार्टियां धराशायी हो गई। जिस जनता ने मोदी को सत्ता सौंपी उन्होंने गादी संभालते ही कहा- अब कड़े निर्णय लेने पड़ेंगे। जनता समझ नहीं पाई कड़े निर्णय का अर्थ क्या है? आज तक कोई नहीं समझ पाया है मोदी क्या करना चाहते हैं? मोदी ने अब तक विदेशों की यात्राएं कर ली। अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को न्यौता दिया। वे आए भी। मगर पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। आज जब यह संवाददाता यह लेख लिख रहा है कश्मीर में मोदी भाषण दे रहे थे और उधर प्रदर्शनकारी अपनी अलग ही राग अलाप रहे थे। पुलिस ने कार्रवाई की तो प्रदर्शनकारियों ने तीन पुलिसकर्मी घायल कर दिए। मोदी ने कोई टिप्पणी नहीं की। मोदी कश्मीर में क्या कार्रवाई करना चाहते हैं? इस संबंध में उनकी कोई मंशा सामने नहीं आ रही। एक बार फिर वे नवाज शरीफ से मिलने की तैयारी कर रहे हैं। आखिर वे करना क्या चाहते हैं। न तो मोदी की वजह से महंगाई कम हुई। बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिला। युवा पीढ़ी के सपने टूट रहे हैं। महिलाओं पर अत्याचार कम नहीं हुए। दलितों का उत्पीड़न जारी है। हर तरफ निराशा है। ऐसे में पता ही नहीं चल रहा कि साल भर से मोदी सत्ता में है। हर सरकारी विभागों को निजीकरण किया जा रहा है। आखिर मोदी देश में क्या करना चाहते हैं कोई समझ क्यों नहीं रहा। उनकी बातें देश की जनता के समझ में नहीं आ रही। ऐसा उलझा हुआ नेतृत्व आखिर कब चमत्कार दिखाएगा। दिखाएगा भी या हवाई भाषण ही देता रहेगा। रेडियो पर मन की बात। बात कुछ और करते हैं और फैसले कुछ और। जो सपने उन्होंने दिखाए थे उनका जनता पूरा होने का इंतजार ही कर रही है। आखिर सुख की हवा कब आएगी। न तो बलात्कारियों में भय है, न दलितों पर अत्याचार रुक रहे।...मुसलमान आशंकित है। स्कूलों में सूर्य नमस्कार और योग अनिवार्य करने की कार्रवाई की जा रही है। क्या ऐसे निर्णय लेने से बच्चों का भला होगा।...देश में लोकतंत्र है। ऐसा नहीं हो इसकी मूल भावनाओं का गला घोंट दिया जाए।

साल भर बीत गया। मोदी अभी भी मुदित है। देश को भाषणों से चला रहे हैं। कहते हैं कि मोदी ने विदेशों में देश का सम्मान बचाया है। यह वही मोदी है जिनका अमेरिका ने वीजा नहीं दिया था। अब कह रहे हैं मोदी को अमेरिका ने जख मार कर बुलाया। अमेरिका पूंजीपतियों का देश है। पूंजीपतियों का यानी पैसों का पैरोकार। भारत में सस्ता श्रम है, सस्ती उपज है और यहां के युवा प्रतिभा संपन्न है...ऐसे में अमेरिका हर उस प्रधानमंत्री को अपने देश में आने का न्यौता देगा जो उनकी पूंजीपति नीतियों को सह देगा। अमेरिका ने मोदी को नहीं अपने स्वार्थ को अमेरिका बुलाया। मोदी इसमें अपनी विजय मानते हैं तो उचित नहीं है। अब देश की जनता को समझ लेना चाहिए कि अपनी बातों और भाषणों से देश का भला नहीं होगा। कुछ करो या मैदान से हट जाओ। नहीं तो जनता को संकल्प लेना चाहिए ऐसे नेताओं को उनकी जमीन दिखाएं।


इन दिनों राहुल गांधी राजस्थान दौरे पर है। शुक्रवार को जयपुर में कार्यकर्ताओं की बैठक में उन्होंने कहा कि मोदी का 56 इंच का सीना जनता 5.6 इंच का कर देगी। राहुल युवाओं में अपनी पैठ जमा नहीं पाए हैं। उन्हें इतना समय भी नहीं मिला। कांग्रेस ने 10 साल लगातार शासन किया। इस बीच सुस्त मनमोहन सरकार से ऊबी जनता में राहुल जोश नहीं भर पाए। वे जब तक आए बहुत देर हो गई। अब भी वक्त है अगले चार साल में कांग्रेस की जमीन तैयार करें। राहुल ने ठीक ही कहा कि देश में मंत्री कोई है तो प्रधानमंत्री मोदी है, बाकी 60-65 मंत्री तो नाम के हैं। मोदी ने आडवाणी को भी चुप करा दिया है। ...अब भला कौन बाेले....जनता को ही बोलना होगा। जल्दी ही अपने लिए नहीं तो अपने सपनों के लिए...।

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