-चुनाव के दौरान अच्छे दिनों का सपने दिखाने वाले मोदी कहां है? उनकी लहर में सत्ता हथियाने वाली वसुंधरा राजे की खुमारी अभी उतरी नहीं है...जोधपुर में अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरीबों के आशियाने उजाड़ दिए, घंटाघर के सौंदर्यीकरण के नाम पर गरीबों की रोजी रोटी छीन ली...जब गरीब नींद में सो रहे थे, हिटलरशाही की तर्ज पर गरीबों के ठेले तोड़ दिए, बेदर्दी से उनकी रोजी-रोटी पर बुलडोजर चला दिया...फिर भी जोधपुर की जनता अलाप रही है जय मोदी, जय मोदी....
-डी.के. पुरोहित-
घंटाघर में गरीबों के ठेले और रोजी-रोटी पर बुलडोजर चलाने पर कोर्ट की टिप्पणी सामने आई-शहर सड़ रहा है, सौंदर्यीकरण के नाम पर गरीबों की रोजी-रोटी छीन ली।...अब बस कोर्ट से ही आस। गरीब रो सकता है...गिड़गिड़ा सकता है...विनती कर सकता है...और अधिक दबाव पड़ा तो क्रांति के पथ पर अग्रसर भी हो सकता है...इस अंतिम पंक्ति की अनदेखी नहीं की जा सकती...कोर्ट ने भी माना कि उनके साथ अन्याय हुआ है...बिना उनकी रोजी-रोटी और पुनर्वास के रोजी-रोटी के सामन हटा दिए...अब यह भरपाई कब और कैसे होगी? कोई नहीं जानता?...
घंटाघर में आजादी के पहले से लोग रोजी-रोटी के लिए जूझ रहे हैं.. दिल्ली की चांदनी चौक की तर्ज पर घंटाघर का अपना अलग अंदाज है...यहां दूर-दूर से लोग खरीदारी करने आते हैं...जोधपुर के बाहर से भी लोग यहां खरीदारी करना पसंद करते हैं...लेकिन दो दिन पहले यहां जिस हिटलरशाही से अतिक्रमण हटाए गए, उससे भाजपा सरकार का चेहरा सामने आ गया...भाजपा के राज में खुले सांड की तरह अफसर काम कर रहे हैं...यह भी नहीं सोचते कि जनता जब जागेगी तो सत्ताएं मिट्टी में मिल जाएगी।...
बहरहाल बात घंटाघर की हो रही है...लोग अपने घरों में आराम की नींद सो रहे थे, सुबह जल्दी निगम प्रशासन ने बुलडोजर चलवा दिए। यही नहीं दरवाजे भी बंद कर दिए। जो लोग आस-पास रहते थे वे भी संवेदनहीन निकले...। एक तरफ निगम का दस्ता मौके से ठेले और सामग्री तोड़ रहे थे, लोग आए और उठा-उठा कर ले गए...ये सामान किसी की जिंदगी का हिस्सा थे...दिन भर मेहनत कर शाम को रोजी-रोटी का जुगाड़ करने वाले मेहनतकश का सामान ऐसे कोई उठा कर ले जाते हैं क्या?....किसी ने नहीं सोचा। मगर कोर्ट ने यह पीड़ा समझी...अब कोर्ट को नगर निगम से इन गरीबों की सामग्री का नुकसान भरने के लिए कहना चाहिए...। चाहे नगर निगम का आयुक्त हरिसिंह जैसा पूंछ हिलाऊ अफसर हो या महापौर घनश्याम ओझा जैसे संवेदनहीन नेता...ऐसे अफसरों और नेताओं को हमने ही सिर चढ़ाया...किसी प्याऊ का उद्घाटन हो तो हरिसिंह और घनश्याम ओझा को बुलाते...एक तरफ अखबार उनके कशीदे छापता रहा...दूसरी तरफ गरीब खून के आंसू रोते रहे...ऐसे आंसू जो उनकी पीड़ा को शब्द नहीं दे रहे थे...हिटलरशाहों से बचने के लिए अब जनता को जागना होगा...हमें नहीं चाहिए अच्छे दिन...हमें तो चैन से दो-जून की रोटी चाहिए...आप बेशक विदेशों में घूमे...बेशक ललित मोदी के बगल में बैठें...लेकिन हमें जीने का हक दे दें...।
घंटाघर की कहानी तो एक दृष्टांत है...। पूंछ हिलाऊ अफसरों ने तो काली बेरी और भूरि बेरी से अतिक्रमण हटाने के नाम पर नादिरशाही मचा दी...ऐसा हमला बोलो जैसे-आतंकवादी शहर में घुस आए हैं...। हत् ऐसी हठधर्मिता कहीं नहीं देखी...कभी नहीं देखी...एक समय था जब डायर ने बिना चेतावनी दिए लोगों पर बंदूक चला दी। ऐसा ही कुछ इन गरीबों की बस्तियों में हुआ। गरीबों का वोट लेकर नेता पैर पसारते रहे और इन्ही नेताओं ने उनके पैर की चादर ही छीन ली...।
कितने लोगों का आशियाना उजड़ गया...कितने लोग बेघर हो गए...कांग्रेस विरोध कर रही है। आरसीटू भी विरोध कर रहा है...लेकिन इन आंदोलनों में जनता कहीं नजर नहीं आ रही...गरीब तो रो रो कर अपनी पीड़ा जता रहा है...लेकिन आम जनता भी उनके साथ खड़ी नजर नहीं आ रही है...जिन नेताओं को हमने राज सौंपा...वे चैन की नींद सो रहे हैं...विदेशों में नाम रोशन कर रहे हैं...किसका अपना या देश का, वे ही जाने?...लेकिन जोधपुर की जनता ने भी आम गरीब का साथ छोड़ दिया...पूंजीपतियों की ये सरकारें....इन सरकारों को अब जवाब देना होगा...अगर जोधपुर की जनता जाग गई तो ये महापौर...ये आयुक्त राठौड़....कहीं ऐसा तांडव नृत्य नहीं मचा सकते। गरीबों की बर्बादी पर जश्न मनाने वाले कभी बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों को तो नहीं गिराते...खुद हरिसिंह राठौड़ की संपत्ति की जांच कराने का कोई कष्ट उठाएगा...कोई महापौर की कहानी जानना चाहेगा...पूंजीपतियों की ओर आंख उठाना तो दूर उधर से गुजरते ही नहीं...कोर्ट ने भी ठीक ही कहा कि बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें उन्हें नजर नहीं आ रही....अब कोर्ट से ही आस है...जनता कब जागेगी, कब आंदोलन होगा...यह देर की बात है, तुरंत राहत तो कोर्ट ही दे सकता है...हे देश के न्यायाधीशों न्याय की मशाल थामे रखो...इस जोधपुर में ही नहीं देश में भी बस आपसे आस है.. । हे महोदय, बस आप ही हमारे हैं...नेता-अफसरों से जरा भी आस नहीं हैं....।
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