Wednesday, 7 October 2015

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काटजू जी आप गौ मांस खाते हैं, दूध भी तो पीया होगा-उसी दूध की कसम देश में गौहत्या रुकवाएं

-गौ को नेपाल ने राष्ट्रीय पशु घोषित किया है, जिस देश में यह होना था वहां गौ मांस का समर्थन कर रहे हैं, वो भी न्याय के सर्वोच्च आसन पर बैठे न्यायाधीश, धिक्कार है संतों, ऐसे न्यायाधीश को सहन कर रहे हैं, हिंदुस्तान में संतों को जागना ही होगा
-डीके पुरोहित-
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस मार्कंडेय काटजू को शायद चर्चा में रहना पसंद है। वे कुछ समय पहले गांधी और बाल गंगाधर तिलक को ब्रिटिश एजेंट कह चुके हैं। अब उन्होंने तीन अक्टूबर को कहा था, ‘गाय किसी की मां नहीं हो सकती। वह सिर्फ एक जानवर है। मैं खुद बीफ खाता हूं। दुनिया में बहुत लोग खाते हैं। यदि मैं बीफ खाना पसंद करता हूं तो मुझे कौन रोक सकता है।’ उनके बयान पर चर्चा करने से पहले इतिहास की तरफ लौटें। 1857 की क्रांति पर गौर करें। सूअर व गाय की चर्बी वाले कारतूस जब ब्रिटिश सेना ने शुरू किए तो मुस्लिम और हिंदू सैनिक खिलाफत पर उतर आए। मंगल पांडे ने प्रतिरोध किया। यह घटना इतिहास में पशुओं के महत्व की ओर ध्यान खींचती है।

 गाय को नेपाल ने अपना राष्ट्रीय पशु घोषित किया है। भारत में यह सदियों से पूजनीय रही है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है।  भगवान कृष्ण को गोपाल भी कहा जाता है। गायों से उन्हें विशेष प्रेम रहा है। हिंदू शास्त्रों में गौ को माता का दर्ज है। गाय दुधारू पशु है। इसे सभी धर्म के लोग पालते हैं। क्योंकि गौ का दूध दुनिया की अर्थव्यवस्था का मूल है। दूध और उससे निर्मित पदार्थ पूरी दुनिया में उपयोग में लिए जाते हैं। लेकिन काटजू ने हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने वाला बयान देकर अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति को व्यक्त किया है।

 हमारे यहां बच्चों को जन्म के साथ ही गौ को माता कहना सिखाया जाता है। गाय का दूध ही बच्चों के पोषण का आधार होता है। दुनिया में सौ प्रतिशत लोग दूध या दूध के प्रॉडक्ट का उपयोग करते हैं। शायद ही कोई व्यक्ति दुनिया में हो जो दूध या दूध के प्रॉडक्ट का उपयोग नहीं करता हो लेकिन जस्टिस काटजू ने अपने बयान से फिर लोगों को आहत किया है। खासकर हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंची है। नेपाल जैसा देश भी गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर चुका है, जबकि भारत में गाय को अभी राष्ट्रीय पशु का दर्जा नहीं मिल पाया है। प्रधानमंत्री मोदी हिंदुओं के नेता बनना पसंद करते हैं मगर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित नहीं करवा पाए। देश में कत्लखाने चल रहे हैं। गाय का मांस निर्यात किया जा रहा है। कई अतिवादी हिंदू संगठन गाय के संरक्षण के पक्ष में है, मगर इसके पीछे भी कुत्सित राजनीति है जो गाय के वध को रोक नहीं पा रही। हिंदुस्तान में गाय घर-घर में मिल जाती है। गौ पालन में मुस्लिम भी कम नहीं है। लेकिन इसके बावजूद गाय की बात आती है तो राजनेता किनारा कर लेते हैं। अब देश के संतों को आगे आना होगा। गाय के सम्मान, गाय के अस्तित्व की लड़ाई लड़नी होगी। काटजू जैसे न्यायाधीश जो हिंसा जैसे शब्दों की शायद अनदेखी कर रहे हैं। गांधी की अहिंसा भी उन्हें दिखाई नहीं देती। बुद्ध और महावीर के देश में प्राणी मात्र की हत्या अपराध माना गया है। लेकिन काटजू को बुद्ध और महावीर से भी शायद कोई सरोकार नहीं है। वे गांधी को ब्रिटिश एजेंट कह सकते हैं तो महावीर व बुद्ध को भी कोई संज्ञा दे सकते हैं।

 जागो देश के संतों। जागो। यह देश के स्वाभिमान का सवाल है। सब एक हो जाओ। आवाज उठाओ। गाय को हिंदुस्तान का राष्ट्रीय पशु घोषित करवाओ। गाै हत्या करने वालों को फांसी की सजा दिलाई जाए। वन विभाग हिरण को मारने वालों को सख्त सजा दिलाने का पक्षधर रहा है, लेकिन गौ हत्या को लेकर कोई कुछ नहीं कर रहा। सनातन संस्कृति को मानने वाले आगे आना होगा। शंकराचार्यों को यह मुद्दा उठाना ही होगा। काटजू जी आप गाय को माता भले ही न समझा हो लेकिन उसका दूध जरूर पिया होगा। जिसका दूध पिया है वह आपकी माता नहीं हुई तो क्या हुई। लेकिन आप तो न्यायाधीश है। न्याय के आसन पर बैठकर न्याय करते रहे हैं। काश आप यह मानते कि गाय जैसा निरीह प्राणी जो हमारी ही नहीं दुनिया की अर्थव्यवस्था का मूल है, उसकी हत्या को कैसे जायज मान सकते हैं। हिंसा को तो कोर्ट भी इज़ाज़त नहीं देता। फिर आपने इसका समर्थन कैसे कर दिया? काटजू जी आपसे विनम्र अनुरोध है-गाय के बारे में लिए शब्द वापस लो। गाय को बचाना हम सबका कर्तव्य है। आपने अगर गाय का दूध पिया है तो उसकी कसम गाय को कत्लखानों से बचाने के लिए आगे आएं।

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