Friday, 1 August 2014

Filled Under:

राखी पुरोहित की प्रतिनिधि कविताएं


कोशिश 

करीब से जानने की करते रहे कोशिश 
उतना ही वो हमसे दूर हो गए
सोचा था पा लिया मंजिल को
ख्वाब क्यों सारे चकनाचूर हो गए
पुकारते रहे हम खामोश निगाहों से
ये लब न खुले आखिर क्यों मजबूर हो गए
उनकी बेरुखी हमें रास न आई
इतना क्यों वो मगरूर हो गए
ऐ खुदा दौलत का नशा ऐसा चढ़ा
जज्बात दिल से उनके काफूर हो गए
अपनी पाक चाहत को दागदार न होने देंगे
फासले दरमिया जरूर हो गए।

इनायत

खुदा की इनायत हो गई
हमें भी मोहब्बत हो गई
हमसफर मिला काबिले इबादत
रुसवाइयां जमाने से रुखसत हो गई।

साथ

तन्हाइयों में साथ तेरी यादों का
ख्यालों में इकरार तेरे वादों का
भूलना चाहें भी तो भूलने न देगा
दिल में सुकून तेरी बातों को।

दुआ

उस रब की दुआ है
तेरी सांसों ने छुआ है
एहसास तेरे दिल को भी हुआ है
दूरियां नजरों की क्या रखे मायने
जब करीब से दिल का रिश्ता हुआ है। 

जज्बात

पल-पल तड़प रहे हैं
मेरे दिल के जज्बात
कुछ-कुछ खलने लगा है
मुझको सारी रात
जब-जब तेरे ख्वाब आते हैं
पूछते हैं बस एक ही बात
आखिर क्यूं छुड़ा के चले गए
मझधार में मेरा साथ।

आज का दिन

आज का दिन न होता
शायद हम न होते
ये नैन जो पत्थर बन गए
कभी इस तरह न रोते
छुपा के दर्द सारा
चेहरे पर लिए मीठी मुस्कान
यूं जिंदगी का भार न ढोते
काश इस दुनिया में हम न होते
जज्बात से खेलने वालों की कमी कहां
इस तरह हंसी के पात्र तो न होते
आज का दिन न होता
शायद हम न होते
इक मां की ममता को
क्या जाना किसी ने
हर वक्त उलहानों को यूं न सहते
दिल को सालती रही चोट
अपनों की भीड़ में अजनबी होके
जाने-अनजाने खा गए बस धोखे
आज का दिन न होता
शायद हम न होते। 

मुकद्दर 

मुकद्दर बन गया कोई
दुखती रग छेड़ गया कोई
सोचा था मरहम मिल जाए
करोड़ों घाव दे गया कोई
न अपना है, न अजनबी है
खुशियों की दौलत लूट ले गया कोई
गम का खजाना मिला बदले में 
इस तरह अपना फर्ज अदा कर गया कोई। 

दुनिया अधूरी

दुनिया अधूरी, अधूरा जहां
लगता सब खाली-खाली है
उस रब ने न जाने क्यूं
इक मां की दुआ टाली है
आंसू बन सैलाब उमड़े
पर खाली कोख की प्याली है
सब कुछ पाना आसां हैं 
पर औलाद नहीं
तेरी ये रीत निराली है। 

अधूरी औरत

क्या बीतती होगी
इक औरत पर
जब वो खुद को
इतना तन्हा, मजबूर देखती है
वो औरत जिनके पास
हर खुशी है, नाम है, शोहरत है
लेकिन वो नहीं
जिसकी वो हकदार है
क्यूं खुदा इतना
बेबस और लाचार बना देता है
इक चिराग पाने को
आंगन में किलकारी सुनने को
क्या उसे हक नहीं
खुश रहने का
उसपै भी पाबंदी है
क्यों उसे अधूरा होने का
हर पल अहसास सताता है। 

0 comments:

Post a Comment