-राखी पुरोहित युवा पीढ़ी की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपने छोटी-छोटी क्षणिकाओं को नई दिशा दी है। कम शब्दों में गंभीर बात कहने की विशेषता ने मंचीय कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में राखी को विशेष पहचान दिलाई है। आप युवा पत्रकार भी हैं।
एक
मोहब्बत
गिरे फूलों पै शबनम के मोती
पत्ती नम नहीं होती
जुदाई लाख हो चाहे
मोहब्बत कम नहीं होती।
दो
पल
पल-पल तुझको याद किया
पल-पल आंसू बरसाए
इक पल भी ऐसा न बीता
जब आप हमें न याद आए।
तीन
खुशी
पल भर की खुशी जब आती है
चेहरे पै मुस्कान तो लाती है
गम की दोस्ती तो ऐसी है यारों
जो आंसुओं से दामन भर जाती है।
चार
ठोकर
शाम सूरज को ढलना सिखाती है
शमा परवाने को जलना सिखाती है
गिरने वाले को क्यों कोसते हो
ठोकरें ही तो इंसान को चलना सिखाती है।
पांच
सूनापन
सूनापन जीवन का
मिट न पाएगा उम्रदराज
यह जीना भी क्या जीना
जब साथ नहीं मेरा हमराज
कर्त्तव्य के बोझ तले दबे न होते
इस दुनिया में न होते आज।
छह
वादा
रूठकर आप से कहां जाएंगे
बात किए बिना कैसे रह पाएंगे
आपकी हर मुस्कान
खुशी है हमारी
वादा कीजिए आप हमेशा
यूं ही मुस्कराएंगे।
सात
चाहत
कलियों को चाहत फूलों की
फूलों को चाहत झूलों की
हमारी चाहत बनाया जिसे
वो करते बात उसूलों की
सारी जिंदगी वारी उन पर
सांसे जिस नाम से चलती है
कहना चाहे तो भी न कहने दे
कहते हैं दुनिया जलती है
खता कर बैठे जो नादानी में
याद आई बात उन भूलों की
कलियों को चाहत फूलों की।
आठ
ख्याल
दिल से आपका ख्याल
न जाए तो क्या करुं
आप ही बताएं
आप याद आए तो क्या करुं
हसरत ये है कि
एक नजर आपको देखूं
किस्मत वो लम्हा
न लाए तो क्या करुं?
नौ
हकदार
आपको चाहने वाले
कम न होंगे
पर वक्त के साथ हम न होंगे
चाहे किसी को
कितना भी प्यार देना
लेकिन तेरी यादों के हकदार
सिर्फ हम ही होंगे।
दस
आसानी
बड़ी आसानी से
दिल लगाए जाते हैं
बड़ी मुश्किल से
वादे निभाए जाते हैं
ले जाती है मोहब्बत उन राहों में
जहां दिए नहीं दिल
जलाए जाते हैं।
ग्यारह
खबर
मुझे तो नहीं
पर तुझे खबर हो शायद
लोग कहते हैं कि
आते हो तुम मुझे बहुत याद
बारह
पसंद
बागों में फूल तो बहुत है
मगर हमें गुलाब पसंद है
दुनिया में और भी बहुत है
मगर हमें आप पसंद है।
तेरह
नजर
किस-किसकी नजर लगेगी
किस-किसके जिगर चाक होंगे
इक हुआ हमारा अरमां पूरा
न जाने कितनों के अरमां खाक होंगे।
चौदह
बदनाम
रात आती है मगर
तेरी याद में कट जाती है
आंख सितारों में भी टपटपाती है
दोस्ती के नाम पर
इतने बदनाम हो गए
अब तो नींद भी आते हुए शरमाती है।
पंद्रह
फर्क
नजर-नजर में फर्क होता है
नजारा देखकर क्या करें
हर वक्त नजर में रहते हो
तेरी तस्वीर देखकर क्या करें?
सोलह
तकदीर
देखें अब तकदीर में
किसको क्या मिले
पलकें बिछाये बैठे हैं
तेरे घर के सामने।
सत्रह
दम
मेरे मेहबूब तेरे दम से है
जमाने में बहार
वरना इस गम से भरी दुनिया में
क्या रखा है।
अठारह
मिलन
आप मिले तो यूं मिले
जैसे पतझड़ में फूल खिले
बहुत शिकवा था तुमसे
बाहों में लिया सब दूर हुए गिले।
0 comments:
Post a Comment