-राखी पुरोहित महादेवी वर्मा पुरस्कार से सम्मानित युवा रचनाकार हैं। आपकी कविताएं मधुमति, शुक्रवार सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होती रही हैं। इनकी कहानियों में नारी मन की व्यथा, समाज की विसंगतियां और समय का सच है। इन दिनों आप थार न्यूज और जनता का सच में बतौर सीनियर सब एडिटर कार्यरत हैं।

- 1 -
मन
खुले आसमां में उड़ने का मन
अरमानों को लब्जों से
बयां करने को होता मन
कहां हो पाते हैं पूरे नारी के ख्वाब
उनको टूटते देखकर
रोता है ये मन।
-2-
शिकायत

आंसुओं की स्याही भरी
दिल की कलम में
लिख लिया किस्मत में
गम इस जनम में
खुशी का पन्ना रह गया कोरा
किससे करें शिकायत
मिल ही जाएगी खुशी शायद
जी लेंगे इसी भरम में।
-3-
मिलन
मिलने के इंतजार में
सदियां बिता दी

दुनिया भुला दी
झुक गया खुदा का सिर भी
हमारी देख मोहब्बत
तड़प गया वो
तब ही उसने हमारी
मेहबूबा मिला दी।
4
अटूट रिश्ता
भाई-बहन का रिश्ता
होता है सबसे पाक
रक्षा के सूत्र में बांधकर

खून के रिश्ते न भी हों
मिल जाते हैं दिल से
दिल के जज्बात
देख एक की आंख में आंसू
रोए दूसरे का मन
ऐसा होता है यारों
भाई-बहन का प्यार।
-5-
मन की डोर
हमें कोई आज
जवाब दे जाता
उनके साथ हमारा

रिश्ता नहीं कुछ भी
फिर क्यों अटूट बंधन
बांधा है मन की डोर से
भाई-बहन का नाता।
-6-
जवाब
हर सवाल का जवाब
हो नहीं सकता
हर बात को जुबां से
कोई कह नहीं सकता
कुछ सवाल नजरों से पढ़ लिए जाते हैं
उन्हीं से बातों के जवाब मिल जाते हैं।
-7-
खता
खता न दिल की थी
न मेरी
मिलने में हो गई देरी
अब तो ले जाने वाला भी
आ गया
तूने ही आने में कर दी देरी।
-8-
दाद
इतनी दाद देना
मेरी उल्फत को ए सनम
जब याद मेरी आए
तो अपने आपको प्यार कर लेना।
-9-
कौन
कौन किसका हबीब होता है
कौन किसका रकीब होता है
बन जाते हैं रिश्ते वहीं
जहां जिसका नसीब होता है।
-10-
लब
ये लब न खुल सकेंगे
उल्फत में ए सनम
तुम ही कुछ सुना दो
तो सिलसिला चले।
-11-
खता
खता तो दिल की है
जो चाहे सजा देना
ऐसा न हो तेरे दीद को
आंखें ही तरस जाएं।
-12-
चाहत
चाहते रहेंगे उम्रभर
तुझको ए सनम
पर अब न तुझको ये कभी
एहसास हो पाए।
-13-
दिन है अनमोल
दिन है ये अनमोल
अनमोल ही ये पैगाम है
जिंदगी का हर लम्हा अब
तेरे ही नाम है
बेशक गुजार दें आप
जिंदगी हमारे बिना, पर
हमारी हर सांस पै अब
तेरा ही नाम है।
-14-
फूल
फूल खिला, खिला के न खिला
तू ही मुस्कुरा दे
कि बहार हो जाए।
-15-
सिलसिला
मैं चाहती भी थी कि
वो बेवफा निकले
कम से कम उनको समझने का
सिलसिला तो चले।
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