Friday, 1 August 2014

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बाल कविता: डी.के. पुरोहित

पंछी बनाम आजादी

आसमान में पंछी उड़ता

करता बात हवाओं से

आजादी उसको प्यारी

लड़ता किरणों के दांवों से

मुक्त गगन की सीमाएं

छोटी तब पड़ जाती

पंख पसारे फुर्र से जब

चिड़िया चादर फैलाती

मिल जाये जहां दाना-पानी

बना लेती अपना घर

सोने का पिंजरा ठकुराती,

नहीं छोड़ती आजादी पर।

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