Friday, 15 August 2014

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राखी पुरोहित की 20 रचनाएं



-राखी पुरोहित युवा रचनाकार हैं। आपने हिन्दी व राजस्थानी में कहानियां, कविताएं, क्षणिकाएं व लघु कथाएं लिखी है। चंद शब्दों में गंभीर विचार और भाव राखी की विशेषता है। आप ‘जनता का सच’ और ‘थार न्यूज’ समाचार पत्र में सीनियर सब एडिटर के रूप में पत्रकारिता से जुड़ी हुई हैं। 

एक

चाहत

चाहते थे तुमको तुमको ही चाहते हैं
और चाहते भी रहेंगे
आज जुदाई का दिन है तो क्या
कल फिर मिलेंगे।


दो

जुदाई

ये जुदाई भी कितनी अजीब होती है
जाते वक्त अलविदा भी 
न कह सकेंगे
तुझसे मिलने का जिक्र क्या करें जब
तेरे शहर में नहीं रहेंगे। 


तीन

याद आएंगे

हम चाहकर भी तुमको
न भूल पाएंगे
तेरी वफा के किस्से हमें
याद आएंगे।


चार

पल-पल

पल-पल तुझको याद किया
पल-पल आंसू बरसाए
इक पल भी ऐसा न बीता
जब आप हमें न याद आए।


पांच

वक्त 

वक्त गुजारे हैं जमाने में
दो ही कठिन
इक तेरे आने से पहले
इक तेरे जाने के बाद।

छह

जिंदगी

जिंदगी की तन्हाई होने लगी थी कम
जिस दिन हम तुमको मिले थे सनम 
अब तुम भी जुदा हो जाओगे
देके अपनी यादों का आलम। 

सात

उम्र

उम्र दराज मांग के 
लाए थे चार दिन
दो आरजू में कट गए
दो इंतजार में। 

आठ

ख़बर 

एक साल इक दिन सा गुजरे
इक दिन जैसे इक पल
हंसी खुशी की खबर सुनाए
आपको आने वाला कल। 

नौ

आँच 

इश्क का नगमा
जुनूं के साज पै गाते हैं
अपने गमों की आंच से
हम पत्थर को पिघलाते हैं
जाग पड़ते हैं तो 
सेज पर भी नींद नहीं आती
वक्त पड़ने पर 
अंगारों पै सो जाते हैं। 

दस

काश !

काश ! मुझे कोई आज
ये जवाब दे जाता
मेरा उनके साथ क्या है नाता
जो मुझे दुनिया में सबसे ज्यादा लुभाता
पर न जाने दुनिया को ये
अंदाज क्यों नहीं सुहाता। 

ग्यारह

खुली किताब

दिल की खुली किताब रही
पन्ने पलटते गए
पढ़ते रहे जज्बात कि
दिल में कितने राज
वो सबकुछ लूट के ले गए
हम खाली रह गए आज। 

बारह

प्यार

हमने किसी गरज से
नहीं किया था प्यार
छलकता है हमारी 
आंखों से खुशी का खुमार
एक तेरे दीद की 
दिल ने की थी हसरत
ये हसरत भी हमारी हो गई बेकार
तुम जो मिल जाते तो आ जाता
मेरे दिल को चैन
प्यास बुझ जाती
बरसों के तृप्त हो जाते नैन। 

तेरह

नसीब

खुशी तो उनको नसीब होती है
जो जमाने से बेखबर है
हम तो तेरे प्यार के गम में तरोतर हैं
कोई कोना मेरे दिल का गम से खाली नहीं
जाम तो बहुत है भरने की प्याली नहीं
आंखों से बरसते हैं आंसू
कभी लब थरथराते हैं
आज भी तेरी वफा के किस्से याद आते हैं। 

चौदह

उम्मीद

इक उम्मीद की शमा जली थी
उसके शहर में आने से
शायद मिल जाएगा वो हमारे बुलाने से
पर हाय रे किस्मत ने यहां भी दगा दिया
शहर में आके भी वो हमसे मिले बिना गया। 

पंद्रह

बात

कोई आंखों से बात कर गया
दिल के फूलों से बरसात कर गया
बड़ी कयामत थी उसकी मुस्कान में
वीराने को मेरे वो गुलजार कर गया। 

सोलह

प्यार

जिससे किया है प्यार
खुदा उनसे दूर न करना
जो सजाये सपने इस दिल ने
उन्हें चूर-चूर न करना।

सत्रह

महक

फूलों की खुशबू दे गया
सांसों को अजीब सी महक दे गया
उसके छूने में थी एक कसक सी
मेरे दिल को खुशियां हजार दे गया। 

अठारह

नाम

हथेली पै तेरा नाम लिखकर
मिटा दिया
तेरे इस एक खेल ने 
मुझे खाक में मिला दिया। 

उन्नीस

जब से आए दुनिया में

जब से आए दुनिया में तो
जननी को हुआ गम
एक और लड़की ने
फिर लिया जनम
ऐ खुदा तुझको भी क्या सूजी थी
जो आए हम दुनिया में
लेकर मनहूस कदम
कुछ बचपन बीता रोने में
कुछ बिताया सोने में
यू सोते-रोते रखा जवानी में कदम
जवानी में भी किसी का प्यार 
हासिल न हो सका
जिसको भी समझा अपना
उसी ने दिए गम
काश ! मुझे खुदा 
अच्छी सूरत देता
देता अच्छे नसीब
दिल इस तरह तो न रोता
अब तक तो मिला है
सिर्फ बेवफाई का आलम
काश ! न होता मिलने वाला इतना बेरहम
जब से आए दुनिया में
जननी को हुआ गम। 

बीस

अपनी नहीं

जो चीज अपनी नहीं
उसका कैसा गम
क्यों पराई आस से
होती आंखें नम
अपना है अगर कोई ऐ दिल
मिल जाता है हो भी जाए गर सहर
जोडि़यां बनती है ऊपर ही कहीं
लाखों की भीड़ में भी 
मिल जाता है हमदम।  

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