Thursday, 28 August 2014

अनीता जांगिड़ की क्षणिकाएं



-अनीता जांगिड़ युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने जो जिया उसी को काव्य में व्यक्त किया है। आपकी कविताओं में जीवन की हकीकत है। प्यार और भावनाओं को उन्होंने शब्द दिए हैं। यहां प्रस्तुत है कुछ रचनाएं। आशा है आपको पसंद आएगी।

एक 

राहें

मुहब्बत की राहें
इतनी आसान कब थी
जो फूल दिखते हैं
असल में वे अंगारे होते हैं
जलने में जो मजा है
वो इन फूलों की महक में कहां?
तन्हाई में तो उनसे बात
कर लिया करते हैं
या रुसवाइयों में अपने आप को
सजा दिया करते हैं
क्यों इतनी जल्दी 
कोई अपना दामन छुड़ा लेता है
बरसों की दुहाई देने वाला
इक पल में बैगाना हो जाता है। 

दो

ख्वाब

मैं एक टूटा हुआ
ख्वाब तो नहीं
मैं तेरे पैरों में बंधी
जंजीर तो नहीं
क्यों मुझसे दूर भाग रहे हो तुम
ऐ सनम क्या तुम्हें यह मालूम नहीं
परछाई तो अंधेरे में भी 
साथ देती है
और मैं तुमसे अलग तो नहीं।

तीन

जीना

मुहब्बत में जीना
तुम्ही ने सिखाया
अपने से ज्यादा प्यार करना
किसी को तुमने ही बताया
क्यों हम सबकी नजरों में आ गए
क्यों एक-दूसरे के लिए
खुद ही मर गए।

चार

वादा

क्या हुआ उन वादों का
जो तुमने हमसे किए थे
हर पल साथ निभाऊंगा तेरा
दामन खुशियों से
भर जाऊंगा
इस इंतजार में हम
आज भी वहीं खड़े हैं
देखकर हमें 
तुम्हें कुछ याद आ जाए। 

पांच

फरियाद

बाद मरने के क्यों
तुम उसे याद करते हो
फिर क्यों खुदा से
उससे मिलने की फरियाद करते हो
वक्त रहते
उसकी कद्र कर लेते
तो आज तन्हा न रहते। 

छह

वक्त

यादों में कब वक्त निकलता है
पता ही नहीं चलता
इस जिंदगी से तो अच्छी
तो तुम्हारी यादें ही हैं। 

सात

दफ़न

आज की रात 
बड़ी अजीब सी थी
बदलने वाली मेरी तकदीर थी
क्यों मैंने खुद ही
यह फरमान लिख दिया
अपने हाथों अपने प्यार को
दफन कर दिया।

आठ

अंदाजा

बीती क्या इस दिल पे
इसका अंदाजा लगाना तो
मुमकिन नहीं
पर यह अहसास तुझसे
जुदा होने का मेरे लिए मौत से
ज्यादा था। 

नौ

हसरत

तेरी निगाहों में जो बात है
वो बात किसी और में कहां?
तेरी जुल्फों से
हुई जो रात
वो बात काली घटाओं में कहां?
तुझे देखूं जी भरके
मेरी इतनी-सी हसरत
अगर तुझे पा लूं
तो जन्नत पाने की 
ख्वाइश किसे यहां?

दस

सितम

तेरा हर बात में रूठना
और फिर मान जाना
यह अदा किसी सितम से कम तो नहीं
तुझसे ये दूरियां
मेरी मजबूरी हो सकती है
पर मैं सदा मजबूर रहूं
ये जरूरी तो नहीं। 

Tuesday, 19 August 2014

दस कविताएं अनीता जांगिड़




-अनीता जांगिड़ युवा कवयित्री हैं। आपने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कविता की अंगुली पकड़ी। गंभीर रचनाएं और कम शब्दों में अपनी बात कहना आपकी विशेषता है। अनीता की कहानियां और कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होती रही है। यहां प्रस्तुत है आपकी कुछ रचनाएं।

एक

वजह 

दुख मेरी जिंदगी में
कम कब हुए थे
फर्क सिर्फ इतना है 
कल इसकी वजह कोई और था
और आज कोई और है।

दो

पहरा

नजदीक सवेरा है
कुछ पल का अंधेरा है
छंट जाएंगे काले बादल
सूरज की किरणों पर
किसका पहरा है।

तीन

सजा

आज मेरी आंख का आंसू भी
सूख गया है
तेरे बिना जीना कितनी बड़ी सजा है
यह मैंने सीख लिया है
तू क्यूं नहीं मानता
मोहब्बत में दो लोग नहीं होते
अगर हम एक हैं
तो तू मुझसे कटा हुआ क्यूं है।

चार

मौत

तू जो मुझे
प्यार से जहर भी पिला दे
कोई गम नहीं
पर तेरी वजह से
गर मेरी आंख नम हुई
तो मेरी जिंदगी
मौत से कम नहीं।

पांच

तड़प

तू भी तड़पता है मेरे लिए
मगर कह नहीं पाता
क्यूं तू अपने दर्द को
इतना छिपाता है
कहीं यह दर्द तेरा
मेरी जान न ले जाए
फिर से लौट आ मेरी जिंदगी में
कहीं ऐसा न हो, 
तू बहुत देर कर दे
और मेरी जान चली जाए। 

छह

अंदाज

वो तेरा अंदाज मुझे पसंद आया
वो तेरे प्यार में
खुद को भुलाना पसंद आया
जानती थी इश्क में
दर्द के सिवाय कुछ न मिलेगा
पर तेरे साथ
मदहोश होना मुझे पसंद आया।

सात

दर्द

हंसता हुआ चेहरा
देखकर मेरा
कोई मेरे दर्द का एहसास नहीं कर पाता
बेबसी पर मेरी
कोई हंस जाता है
क्या मुझे तकलीफ नहीं होती
क्या दिल नहीं है सीने में
क्यूं पल-पल याद आता है
क्यूं रोकना चाहूं मैं अपने आप को
फिर भी दिल उसे चाहता है
वो कहता है
सिवाय बदनामी के हमें कुछ न मिलेगा
पर मुझे एक बार तो पूछता
मुझे क्या चाहिए। 

आठ

डर

डर बदनामी का उसे होता है
जो प्यार नहीं करता
हम तो उसी पल मर गए थे
जब से आपसे प्यार हुआ
मैंने नहीं सोचा था-
क्या प्यार सोचकर होता है
आप प्यार का दम भरते हो
हमने तो आपकी खुशी की खातिर
सब कुछ छोड़ दिया
और इल्जाम अपने सिर लिया। 

नौ

पास

मेरी तन्हाई में भी तुम हो
मेरे हर एहसास में तुम हो
कितना पास कितना दूर
यह मैं नहीं समझती
मेरी हर सांस में तुम हो।

दस

खुश 

क्या खुश हो तुम जुदा होके
या यह सोच रहे हो कि
पास आ जाऊं मैं तेरे
क्यूं खुद को सजा देते हो
एक बार तो अपने दिल से पूछते
धड़कते किसके लिए हो। 

Monday, 18 August 2014

राखी पुरोहित की 18 रचनाएं



-राखी पुरोहित युवा पीढ़ी की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपने छोटी-छोटी क्षणिकाओं को नई दिशा  दी है। कम शब्दों में गंभीर बात कहने की विशेषता ने मंचीय कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में राखी को विशेष पहचान दिलाई है। आप युवा पत्रकार भी हैं।

एक

मोहब्बत

गिरे फूलों पै शबनम के मोती
पत्ती नम नहीं होती
जुदाई लाख हो चाहे
मोहब्बत कम नहीं होती।

दो

पल

पल-पल तुझको याद किया
पल-पल आंसू बरसाए
इक पल भी ऐसा न बीता
जब आप हमें न याद आए।

तीन

खुशी 

पल भर की खुशी जब आती है
चेहरे पै मुस्कान तो लाती है
गम की दोस्ती तो ऐसी है यारों
जो आंसुओं से दामन भर जाती है।

चार

ठोकर

शाम सूरज को ढलना सिखाती है
शमा परवाने को जलना सिखाती है
गिरने वाले को क्यों कोसते हो
ठोकरें ही तो इंसान को चलना सिखाती है।

पांच

सूनापन

सूनापन जीवन का
मिट न पाएगा उम्रदराज
यह जीना भी क्या जीना
जब साथ नहीं मेरा हमराज
कर्त्तव्य के बोझ तले दबे न होते
इस दुनिया में न होते आज।

छह

वादा

रूठकर आप से कहां जाएंगे
बात किए बिना कैसे रह पाएंगे
आपकी हर मुस्कान
खुशी है हमारी
वादा कीजिए आप हमेशा 
यूं ही मुस्कराएंगे।

सात

चाहत

कलियों को चाहत फूलों की
फूलों को चाहत झूलों की
हमारी चाहत बनाया जिसे
वो करते बात उसूलों की
सारी जिंदगी वारी उन पर
सांसे जिस नाम से चलती है
कहना चाहे तो भी न कहने दे
कहते हैं दुनिया जलती है
खता कर बैठे जो नादानी में
याद आई बात उन भूलों की
कलियों को चाहत फूलों की।

आठ

ख्याल

दिल से आपका ख्याल
न जाए तो क्या करुं
आप ही बताएं
आप याद आए तो क्या करुं
हसरत ये है कि
एक नजर आपको देखूं
किस्मत वो लम्हा
न लाए तो क्या करुं?

नौ

हकदार

आपको चाहने वाले
कम न होंगे
पर वक्त के साथ हम न होंगे
चाहे किसी को
कितना भी प्यार देना
लेकिन तेरी यादों के हकदार
सिर्फ हम ही होंगे।

दस

आसानी

बड़ी आसानी से
दिल लगाए जाते हैं
बड़ी मुश्किल से
वादे निभाए जाते हैं
ले जाती है मोहब्बत उन राहों में
जहां दिए नहीं दिल
जलाए जाते हैं।

ग्यारह

खबर

मुझे तो नहीं
पर तुझे खबर हो शायद
लोग कहते हैं कि
आते हो तुम मुझे बहुत याद

बारह

पसंद

बागों में फूल तो बहुत है
मगर हमें गुलाब पसंद है
दुनिया में और भी बहुत है
मगर हमें आप पसंद है।

तेरह

नजर

किस-किसकी नजर लगेगी
किस-किसके जिगर चाक होंगे
इक हुआ हमारा अरमां पूरा
न जाने कितनों के अरमां खाक होंगे।

चौदह

बदनाम

रात आती है मगर
तेरी याद में कट जाती है
आंख सितारों में भी टपटपाती है
दोस्ती के नाम पर
इतने बदनाम हो गए
अब तो नींद भी आते हुए शरमाती है।

पंद्रह

फर्क

नजर-नजर में फर्क होता है
नजारा देखकर क्या करें
हर वक्त नजर में रहते हो
तेरी तस्वीर देखकर क्या करें?

सोलह

तकदीर

देखें अब तकदीर में
किसको क्या मिले
पलकें बिछाये बैठे हैं
तेरे घर के सामने।

सत्रह

दम

मेरे मेहबूब तेरे दम से है
जमाने में बहार
वरना इस गम से भरी दुनिया में
क्या रखा है।

अठारह

मिलन

आप मिले तो यूं मिले
जैसे पतझड़ में फूल खिले
बहुत शिकवा था तुमसे
बाहों में लिया सब दूर हुए गिले।

Friday, 15 August 2014

राखी पुरोहित की 20 रचनाएं



-राखी पुरोहित युवा रचनाकार हैं। आपने हिन्दी व राजस्थानी में कहानियां, कविताएं, क्षणिकाएं व लघु कथाएं लिखी है। चंद शब्दों में गंभीर विचार और भाव राखी की विशेषता है। आप ‘जनता का सच’ और ‘थार न्यूज’ समाचार पत्र में सीनियर सब एडिटर के रूप में पत्रकारिता से जुड़ी हुई हैं। 

एक

चाहत

चाहते थे तुमको तुमको ही चाहते हैं
और चाहते भी रहेंगे
आज जुदाई का दिन है तो क्या
कल फिर मिलेंगे।


दो

जुदाई

ये जुदाई भी कितनी अजीब होती है
जाते वक्त अलविदा भी 
न कह सकेंगे
तुझसे मिलने का जिक्र क्या करें जब
तेरे शहर में नहीं रहेंगे। 


तीन

याद आएंगे

हम चाहकर भी तुमको
न भूल पाएंगे
तेरी वफा के किस्से हमें
याद आएंगे।


चार

पल-पल

पल-पल तुझको याद किया
पल-पल आंसू बरसाए
इक पल भी ऐसा न बीता
जब आप हमें न याद आए।


पांच

वक्त 

वक्त गुजारे हैं जमाने में
दो ही कठिन
इक तेरे आने से पहले
इक तेरे जाने के बाद।

छह

जिंदगी

जिंदगी की तन्हाई होने लगी थी कम
जिस दिन हम तुमको मिले थे सनम 
अब तुम भी जुदा हो जाओगे
देके अपनी यादों का आलम। 

सात

उम्र

उम्र दराज मांग के 
लाए थे चार दिन
दो आरजू में कट गए
दो इंतजार में। 

आठ

ख़बर 

एक साल इक दिन सा गुजरे
इक दिन जैसे इक पल
हंसी खुशी की खबर सुनाए
आपको आने वाला कल। 

नौ

आँच 

इश्क का नगमा
जुनूं के साज पै गाते हैं
अपने गमों की आंच से
हम पत्थर को पिघलाते हैं
जाग पड़ते हैं तो 
सेज पर भी नींद नहीं आती
वक्त पड़ने पर 
अंगारों पै सो जाते हैं। 

दस

काश !

काश ! मुझे कोई आज
ये जवाब दे जाता
मेरा उनके साथ क्या है नाता
जो मुझे दुनिया में सबसे ज्यादा लुभाता
पर न जाने दुनिया को ये
अंदाज क्यों नहीं सुहाता। 

ग्यारह

खुली किताब

दिल की खुली किताब रही
पन्ने पलटते गए
पढ़ते रहे जज्बात कि
दिल में कितने राज
वो सबकुछ लूट के ले गए
हम खाली रह गए आज। 

बारह

प्यार

हमने किसी गरज से
नहीं किया था प्यार
छलकता है हमारी 
आंखों से खुशी का खुमार
एक तेरे दीद की 
दिल ने की थी हसरत
ये हसरत भी हमारी हो गई बेकार
तुम जो मिल जाते तो आ जाता
मेरे दिल को चैन
प्यास बुझ जाती
बरसों के तृप्त हो जाते नैन। 

तेरह

नसीब

खुशी तो उनको नसीब होती है
जो जमाने से बेखबर है
हम तो तेरे प्यार के गम में तरोतर हैं
कोई कोना मेरे दिल का गम से खाली नहीं
जाम तो बहुत है भरने की प्याली नहीं
आंखों से बरसते हैं आंसू
कभी लब थरथराते हैं
आज भी तेरी वफा के किस्से याद आते हैं। 

चौदह

उम्मीद

इक उम्मीद की शमा जली थी
उसके शहर में आने से
शायद मिल जाएगा वो हमारे बुलाने से
पर हाय रे किस्मत ने यहां भी दगा दिया
शहर में आके भी वो हमसे मिले बिना गया। 

पंद्रह

बात

कोई आंखों से बात कर गया
दिल के फूलों से बरसात कर गया
बड़ी कयामत थी उसकी मुस्कान में
वीराने को मेरे वो गुलजार कर गया। 

सोलह

प्यार

जिससे किया है प्यार
खुदा उनसे दूर न करना
जो सजाये सपने इस दिल ने
उन्हें चूर-चूर न करना।

सत्रह

महक

फूलों की खुशबू दे गया
सांसों को अजीब सी महक दे गया
उसके छूने में थी एक कसक सी
मेरे दिल को खुशियां हजार दे गया। 

अठारह

नाम

हथेली पै तेरा नाम लिखकर
मिटा दिया
तेरे इस एक खेल ने 
मुझे खाक में मिला दिया। 

उन्नीस

जब से आए दुनिया में

जब से आए दुनिया में तो
जननी को हुआ गम
एक और लड़की ने
फिर लिया जनम
ऐ खुदा तुझको भी क्या सूजी थी
जो आए हम दुनिया में
लेकर मनहूस कदम
कुछ बचपन बीता रोने में
कुछ बिताया सोने में
यू सोते-रोते रखा जवानी में कदम
जवानी में भी किसी का प्यार 
हासिल न हो सका
जिसको भी समझा अपना
उसी ने दिए गम
काश ! मुझे खुदा 
अच्छी सूरत देता
देता अच्छे नसीब
दिल इस तरह तो न रोता
अब तक तो मिला है
सिर्फ बेवफाई का आलम
काश ! न होता मिलने वाला इतना बेरहम
जब से आए दुनिया में
जननी को हुआ गम। 

बीस

अपनी नहीं

जो चीज अपनी नहीं
उसका कैसा गम
क्यों पराई आस से
होती आंखें नम
अपना है अगर कोई ऐ दिल
मिल जाता है हो भी जाए गर सहर
जोडि़यां बनती है ऊपर ही कहीं
लाखों की भीड़ में भी 
मिल जाता है हमदम।  

संक्षिप्त वास्तु शास्त्र: पंडित अमृतलाल वैष्णव


-पंडित अमृतलाल वैष्णव सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। आपको राज्य स्तरीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रपति से पुरस्कार मिल चुका है। आप प्रख्यात ज्योतिर्विद, हस्तरेखा विशेषज्ञ एवं वास्तुकार हैं। प्रस्तुत अंश आपकी पुस्तक संक्षिप्त वास्तु शास्त्र से लिए गए हैं-

भाग-पांच

दक्षिण से उत्तर में खुला ज्यादा,
स्त्री को सुख दौलत का फायदा।
पश्चिम से ज्यादा पूर्व खाली, 
पुरुषों ने यश गाथा पाली।
उत्तर से दक्षिण में खुला स्थान,
सब प्रकार से अनर्थक परिणाम।
पूर्व से पश्चिम में खुला ज्यादा,
विफल होंगे पुरुष क्या फायदा।
दक्षिण हद पर यदि करें निर्माण,
भाग्य भोग का नित्य कल्याण।
पश्चिमी हद पर बनाएं आवास,
पुरुषों की कीर्ति बढ़े खास।
पूर्व से सटा होगा निर्माण,
सर्व सुख हो जाएं वीरान।
उत्तरी हद पर यदि निर्माण हो,
स्त्री व धन हेतु विष बाण हो।
दक्षिण बढ़ा हुआ हो गृहवास,
हर ओर से जीत का ह्रास ।
पश्चिम बढ़े हुए गृह में वास,
सर्व अनर्थ होगा सत्यानाश।
पूर्व में अग्रेत (बढ़ा हुआ) वाला हो,
उस गलियान में बोलबाला हो।
ईशान बढ़ा हुआ मकान लो,
धनी से टक्कर लें, जान लो।
पूर्व की ओर ढला बरामदा,
पुरुषों का स्वास्थ्य रहे उमदा।
ढला बरामदा यदि उत्तर छोर, 
स्त्री सुख, यश धन का जोर।
बरामदा ढला यदि दक्षण हो,
गले में फांस स्त्री धन हो।
पश्चिम में बंराडे की ढाल हो,
पुरुषों के स्वास्थ्य मुहाल हो।
पूर्व में बरामदा आग्नेय कक्ष वाला,
सर्व सुख फुहार वाला।
दक्षिण बरामदा आग्नेय कक्ष वाला,
स्त्री विपदा के तीर तरकश वाला।
दक्षिण बरामदे का नैर्ऋत्य कमरा,
महिला जन पर क्षेम का पहरा।
पश्चिम बरामदे में पश्चिम नैर्ऋत्य कक्ष,
जीवन निधि है मर्द के पक्ष।
पश्चिम बरामदे में वायव्य का कक्ष,
बढ़ते मर्द को रोके, खतरे प्रत्यक्ष।
उत्तर बरामदे में वायव्य बसेरा,
तरुणी जन का सुखद सवेरा।
उत्तर बरामदे में ईशान बसेरा,
श्री शुभ लाभ स्त्री का उठे डेरा।
पूर्व बरामदे में ईशान कक्ष बने,
पुरुष की वृद्धि में अड़चन बने।
आग्नेय में टांका बनाएंगे,
प्रथम संतान की उन्नति गवाएंगे।
वायव्य खुला व ब्रह्म स्थल खाली,
उस घर की राम करें रखवाली।
जिस घर में उत्तर धोबी सोवे,
उस घर का मालिक फूट-फूट रोवे। 

Monday, 11 August 2014

लिंग मजबूत करने का लेप-1


फार्मूला नंबर एक: किशनलाल व्यास वैद्य, बीसीएम

सामग्रीः मीठी अफीम, जायफल व धतूरे का बीज समान भाग।

विधिः तीनों को घिसकर लेप तैयार कर लें। लिंग पर लेप करने से लिंग मजबूत होता है। 


लिंग मजबूत करने का तेल-2

फार्मूला नंबर दो: किशनलाल व्यास वैद्य, बीसीएम

सामग्री: चमेली के पत्ते। सुहागा, मैनसिल सम भाग। मीठा तेल।

विधि: चमेली के पत्तों का रस निकाल कर सुहागा और मैनसिल समभाग मिलाएं। इन तीनों के बराबर मीठा तेल मिलावें। आग पर पकाएं। सब पानी जला दें। तेल बाकी रहे तो छानकर शीशी में भर लें। इंद्री पर मालिश करें तो लिंग मजबूत बनता है। 

प्रस्तुतकर्त्ता : आनंद एम. वासु 

व्यास दंत संस्कार चूर्ण

स्वच्छ व मजबूत दांतों के लिए मंजन

फार्मूलाः किशनलाल व्यास वैद्य, बीसीएम

आवश्यक सामग्रीः लोध पठाणी, फिटकरी, कालीमिर्च, लोंग, अकलकरा व तंबाकू सभी एक-एक तोला। पोदीना 6 ग्राम, अनारदाना 8 ग्राम, इलायची छोटी 4 ग्राम, पीपल 4 ग्राम, चित्रक 4 चार ग्राम, अमलवेत 6 ग्राम, सेंधानोन 3 ग्राम, काला नमक 3 ग्राम, सफेद जीरा 4 ग्राम, स्याह जीरा 4 ग्राम, शंखभस्म 4 ग्राम व मुनकादाख 3 ग्राम। 

विधिः सबको अलग-अलग कूट कर मिला लेंवे। सुबह शाम मंजन करें। दांतों को स्वच्छ करता है और मजबूत बनाना है। हिलते हुए दांत भी स्थिर हो जाते हैं।

प्रस्तुतकर्त्ता : आनंद एम. वासु 

आयु वृद्धि का फार्मूलाः

खोजीः किशनलाल व्यास वैद्य, बीसीएम

आवश्यक सामग्रीः 100 पल त्रिफला चूर्ण, आवश्यकता अनुसार भांगरे का रस, 25 पल गंधक, साढ़े बारह पल शुद्ध पारा।

बनाने की विधिः 100 पल त्रिफले के चूर्ण को भांगरे के रस में सात बार भावना देकर छाया में सुख लें। बाद में 25 पल गंधक और साढ़े बारह पल पारा मिला देें।

सेवन विधिः इस आयु वृद्धि औषधि को प्रतिदिन सहत और घी में मिलाकर सेवन करें। इससे आंखों की ज्योति बढ़ती है। संपूर्ण रोगों का नाश कर आयु वृद्धि करता है।

प्रस्तुतकर्त्ता : आनंद एम वासु 

चांदी बनाने का फार्मूला

खोजी: किशनलाल व्यास वैद्य, बीसीएम


आवश्यक सामग्रीः सेर भर सांभर का शुद्ध नमक। पांच मण प्याज का रस।

विधिः सेर भर सांभर के शुद्ध नमक को पांच मण प्याज के रस में अच्छी तरह घोट लें। घोटने के बाद जो सामग्री बने उसे एक डिबिया में डाल दें। इस डिबिया को चावलों के पराल में डाल दें। जब यह जम जाएगा तो चांदी बन जाएगा।

प्रस्तुतकर्त्ता : आनन्द एम. वासु

Wednesday, 6 August 2014

राखी पुरोहित की 15 रचनाएं


-राखी पुरोहित महादेवी वर्मा पुरस्कार से सम्मानित युवा रचनाकार हैं। आपकी कविताएं मधुमति, शुक्रवार सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होती रही हैं। इनकी कहानियों में नारी मन की व्यथा, समाज की विसंगतियां और समय का सच है। इन दिनों आप थार न्यूज और जनता का सच में बतौर सीनियर सब एडिटर कार्यरत हैं। 

- 1 -

मन

खुले आसमां में उड़ने का मन
अरमानों को लब्जों से
बयां करने को होता मन
कहां हो पाते हैं पूरे नारी के ख्वाब
उनको टूटते देखकर
रोता है ये मन।

-2-

शिकायत

आंसुओं की स्याही भरी
दिल की कलम में
लिख लिया किस्मत में 
गम इस जनम में
खुशी का पन्ना रह गया कोरा
किससे करें शिकायत
मिल ही जाएगी खुशी शायद 
जी लेंगे इसी भरम में।

-3-

मिलन

मिलने के इंतजार में 
सदियां बिता दी
हमने उनकी याद में
दुनिया भुला दी
झुक गया खुदा का सिर भी
हमारी देख मोहब्बत
तड़प गया वो
तब ही उसने हमारी 
मेहबूबा मिला दी। 

4

अटूट रिश्ता 

भाई-बहन का रिश्ता 
होता है सबसे पाक
रक्षा के सूत्र में बांधकर
पाते इक दूजे का साथ
खून के रिश्ते न भी हों
मिल जाते हैं दिल से
दिल के जज्बात
देख एक की आंख में आंसू
रोए दूसरे का मन
ऐसा होता है यारों 
भाई-बहन का प्यार। 

-5-

मन की डोर

हमें कोई आज 
जवाब दे जाता
उनके साथ हमारा
क्या है नाता
रिश्ता नहीं कुछ भी
फिर क्यों अटूट बंधन
बांधा है मन की डोर से
भाई-बहन का नाता। 

-6-

जवाब

हर सवाल का जवाब
हो नहीं सकता
हर बात को जुबां से
कोई कह नहीं सकता
कुछ सवाल नजरों से पढ़ लिए जाते हैं
उन्हीं से बातों के जवाब मिल जाते हैं। 

-7-

खता

खता न दिल की थी
न मेरी
मिलने में हो गई देरी
अब तो ले जाने वाला भी 
आ गया
तूने ही आने में कर दी देरी। 

-8-

दाद

इतनी दाद देना
मेरी उल्फत को ए सनम
जब याद मेरी आए
तो अपने आपको प्यार कर लेना। 

-9-

कौन

कौन किसका हबीब होता है
कौन किसका रकीब होता है
बन जाते हैं रिश्ते वहीं
जहां जिसका नसीब होता है। 

-10-

लब

ये लब न खुल सकेंगे
उल्फत में ए सनम
तुम ही कुछ सुना दो
तो सिलसिला चले। 

-11-

खता

खता तो दिल की है
जो चाहे सजा देना
ऐसा न हो तेरे दीद को
आंखें ही तरस जाएं। 

-12-

चाहत

चाहते रहेंगे उम्रभर
तुझको ए सनम
पर अब न तुझको ये कभी
एहसास हो पाए। 

-13-

दिन है अनमोल

दिन है ये अनमोल
अनमोल ही ये पैगाम है
जिंदगी का हर लम्हा अब
तेरे ही नाम है
बेशक गुजार दें आप
जिंदगी हमारे बिना, पर
हमारी हर सांस पै अब
तेरा ही नाम है। 

-14-

फूल

फूल खिला, खिला के न खिला
तू ही मुस्कुरा दे
कि बहार हो जाए। 

-15-

सिलसिला

मैं चाहती भी थी कि
वो बेवफा निकले
कम से कम उनको समझने का
सिलसिला तो चले।