-गांधी को रास्ते से हटाने पर 13 जून 1945 में अहमद नगर किले में ही सहमति हो गई थी, मगर उसे मूर्त रूप 30 जनवरी 1948 को दिया गया।
डीके पुरोहित
जोधपुर। महात्मा गांधी की हत्या की साजिश देश आजाद होने के दो साल पहले ही रची जा रही थी। रिपोर्ट है कि मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना और कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरू ने सोच लिया था कि जब तक गांधीजी जिंदा है देश का विभाजन नहीं हो सकेगा और वे दोनों प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे। 13 जून 1945 को अहमद नगर के किले में मोहम्मद अली जिन्ना नेहरू से मिले और इस बीच सात मिनट तक दोनों में बातचीत हुई थी।
रिपोर्ट के अनुसार बातचीत में जिन्ना ने बताया कि ब्रिटिश सरकार भारत को जल्द ही स्वतंत्र कर देगी, मगर दो राज्यों के आधार पर आजादी मिलेगी। तब जिन्ना ने पहली बार पाकिस्तान के निर्माण पर नेहरू से चर्चा की। नेहरू ने कहा-'जब तक बापू जिंदा है, दो अधिराज्यों की कल्पना ही नहीं की जा सकती। तब जिन्ना बोले-'ठहर जाओ। अभी तो बूढ़े की जरूरत है। बाद में कुछ बंदोबश्त करेंगे। समय आने पर सब ठीक कर देंगे। यह बात तब की है जब अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन को ब्रिटिश सरकार ने दमनपूर्वक कुचल दिया। मगर इस दौर में जो आगजनी और हिंसा हुई उससे ब्रिटिश सरकार घबरा गई । आंदोलन के दौरान कांग्रेस के सभी बड़े लीडर जेल में थे।
अमेरिका और चीन भारत के पुराने मित्र
अमेरिका व चीन भारत के पुराने दोस्त हैं। कहने को यह बात अजीब लगे, लेकिन सच यह है कि महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट व चीन के मार्शल चांग काई शेक को पत्र लिखा था और कहा कि भारत को स्वतंत्र करने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालें। इसके बाद चांग काई शेक ने 25 जुलाई 1942 को अमेरिका के राष्ट्रपति रुजवेलट को पत्र लिखा कि अंग्रेजों के लिए सर्वश्रेष्ठ नीति यह है कि भारत को पूर्ण स्वतंत्र कर दें। बाद में रुजवेल्ट ने ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर कहा कि चांग काई शेक जो चाहते हैं उस पर अमल करें। बाद में ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी ने चीन को धमकी दी कि यदि वह भारत के आंतरिक मामलों में दखल देगा तो यह उसके खुद के लिए ठीक नहीं होगा।
अंबेडकर ने गांधी के आंदोलन में साथ नहीं दिया
9 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने वाला था। इसका दलित नेता डा. भीमराव अंबेडकर ने विरोध किया और इस आंदोलन से खुद को और दलितों को अलग रखा।
जिन्ना भी आंदोलन से दूर रहे
मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना ने भी अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से किनारा कर लिया और मुसलमानों से कहा कि इस आंदोलन का साथ न दें। इस वजह से मुस्लिम लीग और डा. अंबेडकर अंग्रेजों के नजदीक हो गए।
ये नेता थे जेल में
अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने से पहले ही ब्रिटिश सरकार ने सुबह जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, आसफ अली, जीबी पंत, डा. पटटाभि सीतारमैया, डा. सैयद महमूद, आचार्य कृपलानी व प्रफुल्ल घोष को गिरफतार कर अहमद नगर के किले में कैद रखा। डा. राजेंद्र प्रसाद को गिरफतार कर पटना में रखा गया। महात्मा गांधी को आगा खां महल पूना में रखा गया।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947
लार्ड माउंट बेटन के प्रस्तावों की स्वीकृति के बाद ब्रिटिश सरकार ने संवैधानिक औपचारिता को पूरा करने की ओर ध्यान दिया। यह अधिनियम हाउस आफ कामन्स में पेश किया गया जो 15 जुलाई को पास हो गया। 16 जुलाई को हाउस आफ लाडर्स ने इस बिल को पास कर दिया तथा 18 जुलाई को बिल अंतिम रूप से स्वीकृत हो गया। ऐसे में जन्म हुआ पाकिस्तान व भारत का। भारत में बंबई, मद्रास, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रांत, बिहार, पूर्वी पंजाब,पश्चिमी बंगाल, देहली, अजमेर, मारवाड़ और कुर्ग थे। पाकिस्तान में सिंध, उत्तर ,पश्चिमी सीमा प्रांत,,पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल, आसाम में सिलहट जिले के क्षेत्र समिमलित किए गए। पंजाब और बंगाल का विभाजन रेडकिलफ के निर्णय से हुआ। गांधीजी विभाजन के पक्ष में नहीं थे। नेहरू और जिन्ना ने गांधीजी की उपेक्षा कर अपने स्तर पर ही दो राज्यों के निर्माण को स्वीकार किया। गांधी ने नेहरू और जिन्ना से कहा कि तुम लोग अपनी मनमानी कर रहे हो, मैं विभाजन के पक्ष में नहीं हूं। मैं अनशन कर देश को टुकड़े नहीं होने दूंगा। यह कहकर गांधीजी भारी मन से चले गए। बाद में विभाजन हुआ और उसके गददर में कई लोग मारे गए। गांधीजी ने फिर उपवास किया। शांति होने लगी।
नेहरू और जिन्ना ने फिर रचा षड़यंत्र
दिल्ली (देहली) में राजनीतिक उठापटक जोरों पर थी। गांधीजी दुखी थे। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों से लगभग किनारा कर लिया। इस बीच उन्होंने नेहरू और जिन्ना को समझाने की कोशिश की, मगर उन दिनों वे उपेक्षित कर दिए गए। नेहरू जिन्ना ने एक मुलाकात में फिर अहमद नगर के किले की बातें याद की और कहा कि अब समय आ गया है इस बूढ़े का बंदोबश्त करें। उस समय हिंदू महासभा अतिवादी संगठन था। नेहरू जिन्ना ने 'शिवसंदेश नाम के एक व्यकित को हिंदू महासभा से संपर्क करने को कहा गया और इस तरह रची गई गांधी की हत्या की साजिश । 30 जनवरी 1948 को गांधीजी नई दिल्ली के बिड़ला भवन के मैदान में शाम के समय टहल रहे थे कि उन पर गोलियां चलाई गई । इस मामले में नाथूराम गौडसे और सहयोगी नारायण आप्टे को गिरफतार किया गया। जबकि शिवसंदेश और नेहरू व जिन्ना की भूमिका कभी सामने नहीं आ पाई ।
(नोट यह स्टोरी मुझे हिली ग्रह के लोगों ने मानसिक संदेश देकर लिखवाई है)
डीके पुरोहित
जोधपुर। महात्मा गांधी की हत्या की साजिश देश आजाद होने के दो साल पहले ही रची जा रही थी। रिपोर्ट है कि मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना और कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरू ने सोच लिया था कि जब तक गांधीजी जिंदा है देश का विभाजन नहीं हो सकेगा और वे दोनों प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे। 13 जून 1945 को अहमद नगर के किले में मोहम्मद अली जिन्ना नेहरू से मिले और इस बीच सात मिनट तक दोनों में बातचीत हुई थी।
रिपोर्ट के अनुसार बातचीत में जिन्ना ने बताया कि ब्रिटिश सरकार भारत को जल्द ही स्वतंत्र कर देगी, मगर दो राज्यों के आधार पर आजादी मिलेगी। तब जिन्ना ने पहली बार पाकिस्तान के निर्माण पर नेहरू से चर्चा की। नेहरू ने कहा-'जब तक बापू जिंदा है, दो अधिराज्यों की कल्पना ही नहीं की जा सकती। तब जिन्ना बोले-'ठहर जाओ। अभी तो बूढ़े की जरूरत है। बाद में कुछ बंदोबश्त करेंगे। समय आने पर सब ठीक कर देंगे। यह बात तब की है जब अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन को ब्रिटिश सरकार ने दमनपूर्वक कुचल दिया। मगर इस दौर में जो आगजनी और हिंसा हुई उससे ब्रिटिश सरकार घबरा गई । आंदोलन के दौरान कांग्रेस के सभी बड़े लीडर जेल में थे।
अमेरिका और चीन भारत के पुराने मित्र
अमेरिका व चीन भारत के पुराने दोस्त हैं। कहने को यह बात अजीब लगे, लेकिन सच यह है कि महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट व चीन के मार्शल चांग काई शेक को पत्र लिखा था और कहा कि भारत को स्वतंत्र करने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालें। इसके बाद चांग काई शेक ने 25 जुलाई 1942 को अमेरिका के राष्ट्रपति रुजवेलट को पत्र लिखा कि अंग्रेजों के लिए सर्वश्रेष्ठ नीति यह है कि भारत को पूर्ण स्वतंत्र कर दें। बाद में रुजवेल्ट ने ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर कहा कि चांग काई शेक जो चाहते हैं उस पर अमल करें। बाद में ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी ने चीन को धमकी दी कि यदि वह भारत के आंतरिक मामलों में दखल देगा तो यह उसके खुद के लिए ठीक नहीं होगा।
अंबेडकर ने गांधी के आंदोलन में साथ नहीं दिया
9 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने वाला था। इसका दलित नेता डा. भीमराव अंबेडकर ने विरोध किया और इस आंदोलन से खुद को और दलितों को अलग रखा।
जिन्ना भी आंदोलन से दूर रहे
मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना ने भी अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से किनारा कर लिया और मुसलमानों से कहा कि इस आंदोलन का साथ न दें। इस वजह से मुस्लिम लीग और डा. अंबेडकर अंग्रेजों के नजदीक हो गए।
ये नेता थे जेल में
अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने से पहले ही ब्रिटिश सरकार ने सुबह जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, आसफ अली, जीबी पंत, डा. पटटाभि सीतारमैया, डा. सैयद महमूद, आचार्य कृपलानी व प्रफुल्ल घोष को गिरफतार कर अहमद नगर के किले में कैद रखा। डा. राजेंद्र प्रसाद को गिरफतार कर पटना में रखा गया। महात्मा गांधी को आगा खां महल पूना में रखा गया।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947
लार्ड माउंट बेटन के प्रस्तावों की स्वीकृति के बाद ब्रिटिश सरकार ने संवैधानिक औपचारिता को पूरा करने की ओर ध्यान दिया। यह अधिनियम हाउस आफ कामन्स में पेश किया गया जो 15 जुलाई को पास हो गया। 16 जुलाई को हाउस आफ लाडर्स ने इस बिल को पास कर दिया तथा 18 जुलाई को बिल अंतिम रूप से स्वीकृत हो गया। ऐसे में जन्म हुआ पाकिस्तान व भारत का। भारत में बंबई, मद्रास, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रांत, बिहार, पूर्वी पंजाब,पश्चिमी बंगाल, देहली, अजमेर, मारवाड़ और कुर्ग थे। पाकिस्तान में सिंध, उत्तर ,पश्चिमी सीमा प्रांत,,पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल, आसाम में सिलहट जिले के क्षेत्र समिमलित किए गए। पंजाब और बंगाल का विभाजन रेडकिलफ के निर्णय से हुआ। गांधीजी विभाजन के पक्ष में नहीं थे। नेहरू और जिन्ना ने गांधीजी की उपेक्षा कर अपने स्तर पर ही दो राज्यों के निर्माण को स्वीकार किया। गांधी ने नेहरू और जिन्ना से कहा कि तुम लोग अपनी मनमानी कर रहे हो, मैं विभाजन के पक्ष में नहीं हूं। मैं अनशन कर देश को टुकड़े नहीं होने दूंगा। यह कहकर गांधीजी भारी मन से चले गए। बाद में विभाजन हुआ और उसके गददर में कई लोग मारे गए। गांधीजी ने फिर उपवास किया। शांति होने लगी।
नेहरू और जिन्ना ने फिर रचा षड़यंत्र
दिल्ली (देहली) में राजनीतिक उठापटक जोरों पर थी। गांधीजी दुखी थे। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों से लगभग किनारा कर लिया। इस बीच उन्होंने नेहरू और जिन्ना को समझाने की कोशिश की, मगर उन दिनों वे उपेक्षित कर दिए गए। नेहरू जिन्ना ने एक मुलाकात में फिर अहमद नगर के किले की बातें याद की और कहा कि अब समय आ गया है इस बूढ़े का बंदोबश्त करें। उस समय हिंदू महासभा अतिवादी संगठन था। नेहरू जिन्ना ने 'शिवसंदेश नाम के एक व्यकित को हिंदू महासभा से संपर्क करने को कहा गया और इस तरह रची गई गांधी की हत्या की साजिश । 30 जनवरी 1948 को गांधीजी नई दिल्ली के बिड़ला भवन के मैदान में शाम के समय टहल रहे थे कि उन पर गोलियां चलाई गई । इस मामले में नाथूराम गौडसे और सहयोगी नारायण आप्टे को गिरफतार किया गया। जबकि शिवसंदेश और नेहरू व जिन्ना की भूमिका कभी सामने नहीं आ पाई ।
(नोट यह स्टोरी मुझे हिली ग्रह के लोगों ने मानसिक संदेश देकर लिखवाई है)
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