Tuesday, 11 February 2014

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सांस टूटी तो अकेले चले जाना है

गीत : डी.के. पुरोहित

रुठे गीतों को आज मनाना है
नाराज शब्दों को गले लगाना है
अकेले आए हैं इस जहां में
सांस टूटी तो अकेले चले जाना है

जिंदगी एक फसाना है
प्रेम कोई मीठा बहाना है
नफरत के बदले यारों
हर पल प्यार लुटाना है
सफर में जो छूट गए हैं पीछे
उनको ढाढस बंधाना है
अकेले आए हैं इस जहां में
सांस टूटी तो अकेले चले जाना है

मंजिल पास हमारे है
कदम बढ़ाने की देरी है
झूठ-सच का कैसे अंतर जानें
जब हर तरफ रात अंधेरी है
विश्वास का इक दीप जला
रोशनी का दामन बचाना है
अकेले आए हैं इस जहां में
सांस टूटी तो अकेले चले जाना है

आसमां के आंगन में अनगिनत तारे
एक चांद फिर भी भारी है
धर्म की महाभारत में
अकेले कृष्ण, सामने दुनिया सारी है
युद्ध जीतना पहले से तय है
गीता सुन पार्थ को गांडीव उठाना है
अकेले आएं हैं इस जहां में
सांस टूटी तो अकेले चले जाना है

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