गीत : डी.के. पुरोहित
आओ मिलो मेरे गीतों से
इनसे आंखें चार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
मेरे गीत धवल चांदनी
रातों का शृंगार है
प्यासी धरती पर जैसे
बादल की मल्हार है
मंद पवन का झोंका बन
उनका तुम दीदार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
सौ सौ फूल गुलाबों के
यह बाहों का गलहार है
हर मौसम में मुस्काते
यह तो सदा बहार है
दिल जजबातों को समझे
इनसे तुम इकरार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
यह गीता, यह रामायण
वेदों का यह सार है
गुरुग्रंथ की वाणी इसमें
दीनधर्म संसार है
इन्हें बसाओ आंखों में
फसल नई तैयार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
इन्हें न देखो बुरी नजर से
यह तो पाक पुनीता है
जैसे रावण की लंका में
वनवास भोगती सीता है
राम बने चले आओ
पत्थर का उद्धार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
शब्दों का जीसस जिस दिन
सूली पर चढ़ जाएगा
मरियम का बेटा उस दिन
रीत नई गढ़ पाएगा
कांटों का तुम ताज सजा कर
गीतों पर उपकार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
मेरा गीत निराकार है
छंद ने दे पाया आकार
सृष्टि का यह बीज रूप तो
हर युग में होगा साकार
भावों की सह प्रसव वेदना
रचना का सत्कार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो।
आओ मिलो मेरे गीतों से
इनसे आंखें चार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
मेरे गीत धवल चांदनी
रातों का शृंगार है
प्यासी धरती पर जैसे
बादल की मल्हार है
मंद पवन का झोंका बन
उनका तुम दीदार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
सौ सौ फूल गुलाबों के
यह बाहों का गलहार है
हर मौसम में मुस्काते
यह तो सदा बहार है
दिल जजबातों को समझे
इनसे तुम इकरार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
यह गीता, यह रामायण
वेदों का यह सार है
गुरुग्रंथ की वाणी इसमें
दीनधर्म संसार है
इन्हें बसाओ आंखों में
फसल नई तैयार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
इन्हें न देखो बुरी नजर से
यह तो पाक पुनीता है
जैसे रावण की लंका में
वनवास भोगती सीता है
राम बने चले आओ
पत्थर का उद्धार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
शब्दों का जीसस जिस दिन
सूली पर चढ़ जाएगा
मरियम का बेटा उस दिन
रीत नई गढ़ पाएगा
कांटों का तुम ताज सजा कर
गीतों पर उपकार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो
मेरा गीत निराकार है
छंद ने दे पाया आकार
सृष्टि का यह बीज रूप तो
हर युग में होगा साकार
भावों की सह प्रसव वेदना
रचना का सत्कार करो
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो।
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