गीत : डी.के. पुरोहित
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
प्यार की वो मंजिलें
फिर कभी मिलेगी नहीं
रास्तों को ढूंढ़ते
बढ़ चले जो कदम
मन मरीचिका हुआ
मिट न पाया भरम
प्यासी रतियां कभी
नींद को सहेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
नासमझ नहीं थे हम
साफ था हमारा मन
समझाने उन्हें भला
क्या कम किए जतन
बेरहम हवा ने कहा-
वो अब बहेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
दो किनारे हम हुए
नादां लहर मचलती रही
सागर की खामोशियां
बादलों को छलती रही
कैसे अमरित गिरे
जब भाप उठेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
प्यार की वो मंजिलें
फिर कभी मिलेगी नहीं
रास्तों को ढूंढ़ते
बढ़ चले जो कदम
मन मरीचिका हुआ
मिट न पाया भरम
प्यासी रतियां कभी
नींद को सहेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
नासमझ नहीं थे हम
साफ था हमारा मन
समझाने उन्हें भला
क्या कम किए जतन
बेरहम हवा ने कहा-
वो अब बहेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
दो किनारे हम हुए
नादां लहर मचलती रही
सागर की खामोशियां
बादलों को छलती रही
कैसे अमरित गिरे
जब भाप उठेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं
0 comments:
Post a Comment