-पुस्तक स्टेशनरी विक्रेता एवं व्यापारी सहयोग समिति ने निजी स्कूलों के खिलाफ खोला मोर्चा, बोले-मनमानी फीस, राज्य व केंद्र के पाठयक्रम से इतर पुस्तकें पढ़ा रहें हैं, स्कूल से ही पाठयपुस्तकें और स्टेशनरी खरीदना व यूनिफार्म खरीद के लिए किसी दुकान विशेष को अधिकृत करना, निजी स्कूलों की आदत बन गई है, जिला शिक्षा अधिकारी से शिकायत कर कार्रवाई करने की मांग की
-डी.के. पुरोहित
जोधपुर. निजी स्कूलों के खिलाफ व्यापारियों ने मोर्चा खोल दिया है। निजी स्कूलों की लूट-खसौट, अभिभावकों को हो रही परेशानी के मुददों को उठाते हुए व्यापारियों ने एडीएम, जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक शिक्षा गजरा चौधरी, सूरसागर विधायक सूर्यकांता व्यास को पत्र लिखकर निजी स्कूलों पर लगाम लगाने की मांग की है।
पुस्तक, स्टेशनरी विक्रेता एवं व्यापारी सहयोग समिति के अध्यक्ष ओमप्रकाश जालानी, उपाध्यक्ष मदन मोहन अग्रवाल, सचिव चंद्रशेखर चौहान, कन्हैयालाल जाजड़ा ने अपने पत्र में लिखा कि निजी स्कूलें राजस्थान शिक्षा बोर्ड व केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के पाठयक्रम के इतर जाकर पुस्तकें स्टूडेंटस को पढ़ा रहे हैं।
कमीशन के लिए पढ़ाते हैं अलग पुस्तकें
जालानी ने बताया कि निजी स्कूल पाठयक्रम से इतर पुस्तकें इसलिए विद्यार्थियो को पढ़ाते हैं कि उन्हें अच्छा कमीशन मिल सके। स्कूल अपने स्तर पर ही विद्यार्थियों को पुस्तकें बेचते हैं। जो व्यापारी कमीशन नहीं देते उनके यहां से पुस्तकें नहीं खरीदी जाती। साथ ही पाठयक्रम से बाहर जाकर पुस्तकें इसलिए स्टूडेंटृस को पढ़ाई जाती है, ताकि अधिक कमीशन बन सके। ये पुस्तकें बहुत महंगी होती है, जिससे अभिभावकों को परेशानी उठानी पड़ती है। अभिभावक लुट रहे हैं और जिला शिक्षा अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते।
दुकान विषेष से यूनिफार्म खरीदने को बाध्य करते हैं
निजी स्कूलों की मनमानी से अभिभावक परेशान है, मगर कुछ बोल नहीं पाते। कई स्कूल ऐसे हैं जो अपने यहां पर ही कपड़ा बेचते हैं और कई स्कूल किसी दुकान विशेष के यहां से यूनिफार्म खरीदने को बाध्य करते हैं। इससे भी स्कूलों को कमीशन मिलता है।
मनमानी फीस, किसे सुनाएं टीस
अभिभावक राधाकृष्ण ने बताया कि निजी स्कूल मनमानी फीस वसूल रहे हैं। सरकार ने अभी तक फीस का निर्धारण नहीं किया है। कई स्कूलों ने तो जिला शिक्षा अधिकारी को रिपोर्ट भी नहीं सौंपी है। ऐसे में सरकार भी फीस का निर्धारण नहीं कर पा रही है। हर साल फीस बढा लेते हैं, इससे गरीब व मध्यम वर्ग के लोग तो अपने बच्चों को अच्छी स्कूल में पढ़ा भी नहीं पाते। जिन अभिभावकों के तीन-चार बच्चे होते हैं उसकी जेब से साल भर में डेढ लाख से 5 लाख रुपए खर्चा आ जाता है। यही नहीं स्टेशनरी, ड्रेस, बैग और अन्य सामग्री को मिलाकर खर्चा बहुत अधिक हो जाता है, जबकि आम आदमी की आय भी इतनी नहीं होती।
आरटीई की पालना नहीं
राइट टू एजुकेशन यानी आरटीई की निजी स्कूल पालना नहीं कर रहे हैं। इससे अभिभावक परेशान है। गरीब व मध्यमवर्ग के लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हो रहा। निजी स्कूल तो डीईओ को रिपोर्ट भी नहीं भेजते।
निजी स्कूल शिक्षा विभाग के बाबुओं से करवाते हैं बीमे
हालत यह है कि निजी स्कूलों के टीचर शिक्षा विभाग के बाबुओं से बीमा करवाते हैं। अगर बीमा नहीं करवाते हैं तो उन्हें उपहार और रकम देते हैं। यानी प्रलोभन देते हैं, जिससे निजी स्कूलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।
अभिभावकों ने भी बनाया है संगठन
निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए अभिभावकों ने अपना संगठन बनाया है, मगर उनकी समस्याएं भी जिला शिक्षा अधिकारी नहीं सुनते।
-डी.के. पुरोहित
जोधपुर. निजी स्कूलों के खिलाफ व्यापारियों ने मोर्चा खोल दिया है। निजी स्कूलों की लूट-खसौट, अभिभावकों को हो रही परेशानी के मुददों को उठाते हुए व्यापारियों ने एडीएम, जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक शिक्षा गजरा चौधरी, सूरसागर विधायक सूर्यकांता व्यास को पत्र लिखकर निजी स्कूलों पर लगाम लगाने की मांग की है।
पुस्तक, स्टेशनरी विक्रेता एवं व्यापारी सहयोग समिति के अध्यक्ष ओमप्रकाश जालानी, उपाध्यक्ष मदन मोहन अग्रवाल, सचिव चंद्रशेखर चौहान, कन्हैयालाल जाजड़ा ने अपने पत्र में लिखा कि निजी स्कूलें राजस्थान शिक्षा बोर्ड व केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के पाठयक्रम के इतर जाकर पुस्तकें स्टूडेंटस को पढ़ा रहे हैं।
कमीशन के लिए पढ़ाते हैं अलग पुस्तकें
जालानी ने बताया कि निजी स्कूल पाठयक्रम से इतर पुस्तकें इसलिए विद्यार्थियो को पढ़ाते हैं कि उन्हें अच्छा कमीशन मिल सके। स्कूल अपने स्तर पर ही विद्यार्थियों को पुस्तकें बेचते हैं। जो व्यापारी कमीशन नहीं देते उनके यहां से पुस्तकें नहीं खरीदी जाती। साथ ही पाठयक्रम से बाहर जाकर पुस्तकें इसलिए स्टूडेंटृस को पढ़ाई जाती है, ताकि अधिक कमीशन बन सके। ये पुस्तकें बहुत महंगी होती है, जिससे अभिभावकों को परेशानी उठानी पड़ती है। अभिभावक लुट रहे हैं और जिला शिक्षा अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते।
दुकान विषेष से यूनिफार्म खरीदने को बाध्य करते हैं
निजी स्कूलों की मनमानी से अभिभावक परेशान है, मगर कुछ बोल नहीं पाते। कई स्कूल ऐसे हैं जो अपने यहां पर ही कपड़ा बेचते हैं और कई स्कूल किसी दुकान विशेष के यहां से यूनिफार्म खरीदने को बाध्य करते हैं। इससे भी स्कूलों को कमीशन मिलता है।
मनमानी फीस, किसे सुनाएं टीस
अभिभावक राधाकृष्ण ने बताया कि निजी स्कूल मनमानी फीस वसूल रहे हैं। सरकार ने अभी तक फीस का निर्धारण नहीं किया है। कई स्कूलों ने तो जिला शिक्षा अधिकारी को रिपोर्ट भी नहीं सौंपी है। ऐसे में सरकार भी फीस का निर्धारण नहीं कर पा रही है। हर साल फीस बढा लेते हैं, इससे गरीब व मध्यम वर्ग के लोग तो अपने बच्चों को अच्छी स्कूल में पढ़ा भी नहीं पाते। जिन अभिभावकों के तीन-चार बच्चे होते हैं उसकी जेब से साल भर में डेढ लाख से 5 लाख रुपए खर्चा आ जाता है। यही नहीं स्टेशनरी, ड्रेस, बैग और अन्य सामग्री को मिलाकर खर्चा बहुत अधिक हो जाता है, जबकि आम आदमी की आय भी इतनी नहीं होती।
आरटीई की पालना नहीं
राइट टू एजुकेशन यानी आरटीई की निजी स्कूल पालना नहीं कर रहे हैं। इससे अभिभावक परेशान है। गरीब व मध्यमवर्ग के लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हो रहा। निजी स्कूल तो डीईओ को रिपोर्ट भी नहीं भेजते।
निजी स्कूल शिक्षा विभाग के बाबुओं से करवाते हैं बीमे
हालत यह है कि निजी स्कूलों के टीचर शिक्षा विभाग के बाबुओं से बीमा करवाते हैं। अगर बीमा नहीं करवाते हैं तो उन्हें उपहार और रकम देते हैं। यानी प्रलोभन देते हैं, जिससे निजी स्कूलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।
अभिभावकों ने भी बनाया है संगठन
निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए अभिभावकों ने अपना संगठन बनाया है, मगर उनकी समस्याएं भी जिला शिक्षा अधिकारी नहीं सुनते।
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