गीत : डी.के. पुरोहित
अंधेरा सच को छुपा लेता है
उजाले में हत्या हो जाती है
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है
सपने हमेशा भ्रम होते हैं
जीवन पानी का बुलबुला
सुख-दुख आने जाने हैं
क्रम रहता सदा मिलाजुला
भरोसा ही साचा जगत में
प्रेम रुक्मणी की पाती है
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है
हमने मन को समझाया
कालिख न देख दुनिया की
रंग बिरंगे सुरों से भीगी
माला है बेमतलब मनिया की
जब तक स्वार्थ का धागा
तब तक साबित रह पाती है
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है
वो जो बड़े लोग कहलाते
खूब शोरगुल मचाते हैं
नजदीक से जाना तो पाया
वे डरपोक व्यर्थ ही डराते हैं
कांच के घरों में रहते
फिर भी बनते जजबाती हैं
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है
सागर गहरा खामोश है
उसके भीतर छिपे बादल हैं
आंखों में पानी बचाना जरूरी
जो दिखा वह क्रूर काजल है
कभी भी बरस सकती हैं
घटाएं जो उमड़ आती है
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है।
अंधेरा सच को छुपा लेता है
उजाले में हत्या हो जाती है
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है
सपने हमेशा भ्रम होते हैं
जीवन पानी का बुलबुला
सुख-दुख आने जाने हैं
क्रम रहता सदा मिलाजुला
भरोसा ही साचा जगत में
प्रेम रुक्मणी की पाती है
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है
हमने मन को समझाया
कालिख न देख दुनिया की
रंग बिरंगे सुरों से भीगी
माला है बेमतलब मनिया की
जब तक स्वार्थ का धागा
तब तक साबित रह पाती है
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है
वो जो बड़े लोग कहलाते
खूब शोरगुल मचाते हैं
नजदीक से जाना तो पाया
वे डरपोक व्यर्थ ही डराते हैं
कांच के घरों में रहते
फिर भी बनते जजबाती हैं
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है
सागर गहरा खामोश है
उसके भीतर छिपे बादल हैं
आंखों में पानी बचाना जरूरी
जो दिखा वह क्रूर काजल है
कभी भी बरस सकती हैं
घटाएं जो उमड़ आती है
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है।
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