गीत : डी.के. पुरोहित
कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद
जहर बांटते फिरते सब
अमृत की चाहते दीद
जीवन के इन धारों में
कितने धारे मिले हुए
सच्चाई से मुंह फेरा
सबके होंठ हैं सिले हुए
मतलब निकला भूल गए
देखो जग की ऐसी रीत
कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद
देवों को हैं शीश झुकाते
मां का नित करते अपमान
पिता आश्रमों में पलते
बेटा, वाह कितना धनवान
छल-कपट-धोखा देकर
पाते कैसी भैया जीत
कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद
औरों के हैं दोष ढूंढ़ते
खुद ही खुद से अनजान
खुद को जीत नहीं पाया
जग जीतने चला वो महान
सिकंदर खूब इठलाते घूमे
द्वैष बांटते, ना बनाए मीत
कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद।
कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद
जहर बांटते फिरते सब
अमृत की चाहते दीद
जीवन के इन धारों में
कितने धारे मिले हुए
सच्चाई से मुंह फेरा
सबके होंठ हैं सिले हुए
मतलब निकला भूल गए
देखो जग की ऐसी रीत
कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद
देवों को हैं शीश झुकाते
मां का नित करते अपमान
पिता आश्रमों में पलते
बेटा, वाह कितना धनवान
छल-कपट-धोखा देकर
पाते कैसी भैया जीत
कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद
औरों के हैं दोष ढूंढ़ते
खुद ही खुद से अनजान
खुद को जीत नहीं पाया
जग जीतने चला वो महान
सिकंदर खूब इठलाते घूमे
द्वैष बांटते, ना बनाए मीत
कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद।
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