Thursday, 13 February 2014

जिन्ना और नेहरू ने करवाई थी महात्मा गांधी की हत्या!

-गांधी को रास्ते से हटाने पर 13 जून 1945 में अहमद नगर किले में ही सहमति हो गई थी, मगर उसे मूर्त रूप 30 जनवरी 1948 को दिया गया।

डीके पुरोहित 

जोधपुर। महात्मा गांधी की हत्या की साजिश देश आजाद होने के दो साल पहले ही रची जा रही थी। रिपोर्ट है कि मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना और कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरू ने सोच लिया था कि जब तक गांधीजी जिंदा है देश का विभाजन नहीं हो सकेगा और वे दोनों प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे। 13 जून 1945 को अहमद नगर के किले में मोहम्मद अली जिन्ना नेहरू से मिले और इस बीच सात मिनट तक दोनों में बातचीत हुई थी।

रिपोर्ट के अनुसार बातचीत में जिन्ना ने बताया कि ब्रिटिश सरकार भारत को जल्द ही स्वतंत्र कर देगी, मगर दो राज्यों के आधार पर आजादी मिलेगी। तब जिन्ना ने पहली बार पाकिस्तान के निर्माण पर नेहरू से चर्चा की। नेहरू ने कहा-'जब तक बापू जिंदा है, दो अधिराज्यों की कल्पना ही नहीं की जा सकती। तब जिन्ना बोले-'ठहर जाओ। अभी तो बूढ़े की जरूरत है। बाद में कुछ बंदोबश्त करेंगे। समय आने पर सब ठीक कर देंगे। यह बात तब की है जब अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन को ब्रिटिश सरकार ने दमनपूर्वक कुचल दिया। मगर इस दौर में जो आगजनी और हिंसा हुई उससे ब्रिटिश सरकार घबरा गई । आंदोलन के दौरान कांग्रेस के सभी बड़े लीडर जेल में थे। 

अमेरिका और चीन भारत के पुराने मित्र

अमेरिका व चीन भारत के पुराने दोस्त हैं। कहने को यह बात अजीब लगे, लेकिन सच यह है कि महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट व चीन के मार्शल चांग काई शेक को पत्र लिखा था और कहा कि भारत को स्वतंत्र करने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालें। इसके बाद चांग काई शेक ने 25 जुलाई 1942 को अमेरिका के राष्ट्रपति रुजवेलट को पत्र लिखा कि अंग्रेजों के लिए सर्वश्रेष्ठ नीति यह है कि भारत को पूर्ण स्वतंत्र कर दें। बाद में रुजवेल्ट ने ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर कहा कि चांग काई शेक जो चाहते हैं उस पर अमल करें। बाद में ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी ने चीन को धमकी दी कि यदि वह भारत के आंतरिक मामलों में दखल देगा तो यह उसके खुद के लिए ठीक नहीं होगा।

अंबेडकर ने गांधी के आंदोलन में साथ नहीं दिया

9 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने वाला था। इसका दलित नेता डा. भीमराव अंबेडकर ने विरोध किया और इस आंदोलन से खुद को और दलितों को अलग रखा। 

जिन्ना भी आंदोलन से दूर रहे

मुस्लिम  लीग के मोहम्मद अली जिन्ना ने भी अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से किनारा कर लिया और मुसलमानों से कहा कि इस आंदोलन का साथ न दें। इस वजह से मुस्लिम लीग और डा. अंबेडकर अंग्रेजों के नजदीक हो गए।

ये नेता थे जेल में

अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने से पहले ही ब्रिटिश सरकार ने सुबह जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, आसफ अली, जीबी पंत, डा. पटटाभि सीतारमैया, डा. सैयद महमूद, आचार्य कृपलानी व प्रफुल्ल घोष को गिरफतार कर अहमद नगर के किले में कैद रखा। डा. राजेंद्र प्रसाद को गिरफतार कर पटना में रखा गया। महात्मा गांधी को आगा खां महल पूना में रखा गया।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 

लार्ड माउंट बेटन के प्रस्तावों की स्वीकृति के बाद ब्रिटिश सरकार ने संवैधानिक औपचारिता को पूरा करने की ओर ध्यान दिया। यह अधिनियम हाउस आफ कामन्स में पेश  किया गया जो 15 जुलाई को पास हो गया। 16 जुलाई  को हाउस आफ लाडर्स ने इस बिल को पास कर दिया तथा 18 जुलाई को बिल अंतिम रूप से स्वीकृत हो गया। ऐसे में जन्म हुआ पाकिस्तान व भारत का। भारत में बंबई, मद्रास, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रांत, बिहार, पूर्वी पंजाब,पश्चिमी बंगाल, देहली, अजमेर, मारवाड़ और कुर्ग थे। पाकिस्तान में सिंध, उत्तर ,पश्चिमी सीमा प्रांत,,पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल, आसाम में सिलहट जिले के क्षेत्र समिमलित किए गए। पंजाब और बंगाल का विभाजन रेडकिलफ के निर्णय से हुआ। गांधीजी विभाजन के पक्ष में नहीं थे। नेहरू और जिन्ना ने गांधीजी की उपेक्षा कर अपने स्तर पर ही दो राज्यों के निर्माण को स्वीकार किया। गांधी ने नेहरू और जिन्ना से कहा कि तुम लोग अपनी मनमानी कर रहे हो, मैं विभाजन के पक्ष में नहीं हूं। मैं अनशन कर देश को टुकड़े नहीं होने दूंगा। यह कहकर गांधीजी भारी मन से चले गए। बाद में विभाजन हुआ और उसके गददर में कई लोग मारे गए। गांधीजी ने फिर उपवास किया। शांति होने लगी। 

नेहरू और जिन्ना ने फिर रचा षड़यंत्र

दिल्ली (देहली) में राजनीतिक उठापटक जोरों पर थी। गांधीजी दुखी थे। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों से लगभग किनारा कर लिया। इस बीच उन्होंने नेहरू और जिन्ना को समझाने की कोशिश की, मगर उन दिनों वे उपेक्षित कर दिए गए। नेहरू जिन्ना ने एक मुलाकात में फिर अहमद नगर के किले की बातें याद की और कहा कि अब समय आ गया है इस बूढ़े का बंदोबश्त करें। उस समय हिंदू महासभा अतिवादी संगठन था। नेहरू जिन्ना ने 'शिवसंदेश नाम के एक व्यकित को हिंदू महासभा से संपर्क करने को कहा गया और इस तरह रची गई गांधी की हत्या की साजिश । 30 जनवरी 1948 को गांधीजी नई  दिल्ली के बिड़ला भवन के मैदान में शाम के समय टहल रहे थे कि उन पर गोलियां चलाई  गई । इस मामले में नाथूराम गौडसे और सहयोगी नारायण आप्टे को गिरफतार किया गया। जबकि शिवसंदेश और नेहरू व जिन्ना की भूमिका कभी सामने नहीं आ पाई । 

(नोट यह स्टोरी मुझे हिली ग्रह के लोगों ने मानसिक संदेश  देकर लिखवाई  है)     


Tuesday, 11 February 2014

निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ व्यापारी हुए लामबंद

-पुस्तक स्टेशनरी विक्रेता एवं व्यापारी सहयोग समिति ने निजी स्कूलों के खिलाफ खोला मोर्चा, बोले-मनमानी फीस, राज्य व केंद्र के पाठयक्रम से इतर पुस्तकें पढ़ा रहें  हैंस्कूल से ही पाठयपुस्तकें और स्टेशनरी खरीदना व यूनिफार्म खरीद के लिए किसी दुकान विशेष को अधिकृत करना, निजी स्कूलों की आदत बन गई है, जिला शिक्षा अधिकारी से शिकायत कर कार्रवाई करने की मांग की

-डी.के. पुरोहित

जोधपुर. निजी स्कूलों के खिलाफ व्यापारियों ने मोर्चा खोल दिया है। निजी स्कूलों की लूट-खसौट, अभिभावकों को हो रही परेशानी के मुददों को उठाते हुए व्यापारियों ने एडीएम, जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक  शिक्षा गजरा चौधरी, सूरसागर विधायक सूर्यकांता व्यास को पत्र लिखकर निजी स्कूलों पर लगाम लगाने की मांग की है।

पुस्तक, स्टेशनरी विक्रेता एवं व्यापारी सहयोग समिति के अध्यक्ष ओमप्रकाश जालानी, उपाध्यक्ष मदन मोहन अग्रवाल, सचिव चंद्रशेखर चौहान, कन्हैयालाल जाजड़ा ने अपने पत्र में लिखा कि निजी स्कूलें राजस्थान शिक्षा बोर्ड व केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के पाठयक्रम के इतर जाकर पुस्तकें स्टूडेंटस को पढ़ा रहे हैं।

कमीशन के लिए पढ़ाते हैं अलग पुस्तकें

जालानी ने बताया कि निजी स्कूल पाठयक्रम से इतर पुस्तकें इसलिए विद्यार्थियो को पढ़ाते हैं कि उन्हें अच्छा कमीशन मिल सके। स्कूल अपने स्तर पर ही विद्यार्थियों को पुस्तकें बेचते हैं। जो व्यापारी कमीशन नहीं देते उनके यहां से पुस्तकें नहीं खरीदी जाती। साथ ही पाठयक्रम से बाहर जाकर पुस्तकें इसलिए स्टूडेंटृस को पढ़ाई जाती है, ताकि अधिक कमीशन बन सके। ये पुस्तकें बहुत महंगी होती है, जिससे अभिभावकों को परेशानी उठानी पड़ती है। अभिभावक लुट रहे हैं और जिला शिक्षा अधिकारी कोई  कार्रवाई नहीं करते।

दुकान विषेष से यूनिफार्म खरीदने को बाध्य करते हैं

निजी स्कूलों की मनमानी से अभिभावक परेशान है, मगर कुछ बोल नहीं पाते। कई  स्कूल ऐसे हैं जो अपने यहां पर ही कपड़ा बेचते हैं और कई स्कूल किसी दुकान विशेष के यहां से यूनिफार्म खरीदने को बाध्य करते हैं। इससे भी स्कूलों को कमीशन मिलता है।

मनमानी फीस, किसे सुनाएं टीस

अभिभावक राधाकृष्ण ने बताया कि निजी स्कूल मनमानी फीस वसूल रहे हैं। सरकार ने अभी तक फीस का निर्धारण नहीं किया है। कई स्कूलों ने तो जिला शिक्षा अधिकारी को रिपोर्ट भी नहीं सौंपी है। ऐसे में सरकार भी फीस का निर्धारण नहीं कर पा रही है। हर साल फीस बढा लेते हैं, इससे गरीब व मध्यम वर्ग के लोग तो अपने बच्चों को अच्छी स्कूल में पढ़ा भी नहीं पाते। जिन अभिभावकों के तीन-चार बच्चे होते हैं उसकी जेब से साल भर में डेढ लाख से 5 लाख रुपए खर्चा आ जाता है। यही नहीं स्टेशनरी, ड्रेस, बैग और अन्य सामग्री को मिलाकर खर्चा बहुत अधिक हो जाता है, जबकि आम आदमी की आय भी इतनी नहीं होती।

आरटीई की पालना नहीं
राइट टू एजुकेशन यानी आरटीई  की निजी स्कूल पालना नहीं कर रहे हैं। इससे अभिभावक परेशान है। गरीब व मध्यमवर्ग के लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हो रहा। निजी स्कूल तो डीईओ को रिपोर्ट भी नहीं भेजते।

निजी स्कूल शिक्षा विभाग के बाबुओं से करवाते हैं बीमे
हालत यह है कि निजी स्कूलों के टीचर शिक्षा विभाग के बाबुओं से बीमा करवाते हैं। अगर बीमा नहीं करवाते हैं तो उन्हें उपहार और रकम देते हैं। यानी प्रलोभन देते हैं, जिससे निजी स्कूलों के खिलाफ कोई कार्रवाई  नहीं होती।

अभिभावकों ने भी बनाया है संगठन
निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए अभिभावकों ने अपना संगठन बनाया है, मगर उनकी समस्याएं भी जिला शिक्षा अधिकारी नहीं सुनते।

सांस टूटी तो अकेले चले जाना है

गीत : डी.के. पुरोहित

रुठे गीतों को आज मनाना है
नाराज शब्दों को गले लगाना है
अकेले आए हैं इस जहां में
सांस टूटी तो अकेले चले जाना है

जिंदगी एक फसाना है
प्रेम कोई मीठा बहाना है
नफरत के बदले यारों
हर पल प्यार लुटाना है
सफर में जो छूट गए हैं पीछे
उनको ढाढस बंधाना है
अकेले आए हैं इस जहां में
सांस टूटी तो अकेले चले जाना है

मंजिल पास हमारे है
कदम बढ़ाने की देरी है
झूठ-सच का कैसे अंतर जानें
जब हर तरफ रात अंधेरी है
विश्वास का इक दीप जला
रोशनी का दामन बचाना है
अकेले आए हैं इस जहां में
सांस टूटी तो अकेले चले जाना है

आसमां के आंगन में अनगिनत तारे
एक चांद फिर भी भारी है
धर्म की महाभारत में
अकेले कृष्ण, सामने दुनिया सारी है
युद्ध जीतना पहले से तय है
गीता सुन पार्थ को गांडीव उठाना है
अकेले आएं हैं इस जहां में
सांस टूटी तो अकेले चले जाना है

खुद की नजर में ना गिरना

गीत : डी.के. पुरोहित

औरों की नजरों में गिरें
कोई रंज ना करना
याद रखना दोस्त मेरी बात
खुद की नजर में ना गिरना

दुनिया में कई मोड़ आएंगे
जब लोग दिल तोड़ेंगे
भावनाओं से खेलेंगे और
वक्त आने पर दगा देंगे
खुद पर रखना भरोसा
किसी मुश्क़िलों से ना डरना
याद रखना दोस्त मेरी बात
खुद की नजर में ना गिरना

भगवान भी कभी बेवक्त
परीक्षा हमारी लेते हैं
प्यार, ममता, करुणा के बदले
दुख हजार देते हैं
मगर हर डगर पार करना
दुख से विचलित ना होना
याद रखना दोस्त मेरी बात
खुद की नजर में ना गिरना

आंसू कहने को इक बूंद है
मगर इसमें गम का सागर है
लौट आती है लब पर हंसी
जब सुख की आती लहर है
जिंदगी है उम्मीद का नाम
इसको अनदेखा ना करना
याद रखना दोस्त मेरी बात
खुद की नजर में ना गिरना

रोशनी को फिर से लड़ते देखा है

गीत : डी.के. पुरोहित

आंधियों से पेड़ों को गिरते देखा है
सूरज शूरमा को बादल से घिरते देखा है
मुश्किलें लाख आती है
रोशनी को फिर से लड़ते देखा है

सितम चाहे जितना कर लो दुनिया वालों
रास्तों में कांटे लाख बिछा दो औ मतवालों
जिसके सीने में हो फौलाद
उसे फर्ज पर यहां मरते देखा है

पत्थरों से उम्मीद क्या करें सिर फोड़ने के सिवाय
फूलों ने भी हमें जब जख्म दिए हाय!
सौरभ का क्यों भरम लें
माली को किस्मत से छलते देखा है

मैंने देखा था कभी जग जीतने का सपना
इस महाभारत में अर्जुन के सामने था कृष्णा
संजय जानता है मैं सच हूं
तब शूरमाओं को ढलते देखा है

एटमी हथियारों के युग में संकट गहरा है
बुद्धि और ज्ञान पर सिरफिरों का पहरा है
बचेगा वही जो समय संग हो
असमय काल को पिघलते देखा है


मेहनत जीवन गीत गाती है

गीत : डी.के. पुरोहित

अंधेरा सच को छुपा लेता है
उजाले में हत्या हो जाती है
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है

सपने हमेशा भ्रम होते हैं
जीवन पानी का बुलबुला
सुख-दुख आने जाने हैं
क्रम रहता सदा मिलाजुला
भरोसा ही साचा जगत में
प्रेम रुक्मणी की पाती है
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है

हमने मन को समझाया
कालिख न देख दुनिया की 
रंग बिरंगे सुरों से भीगी
माला है बेमतलब मनिया की 
जब तक स्वार्थ का धागा
तब तक साबित रह पाती है
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है

वो जो बड़े लोग कहलाते
खूब शोरगुल मचाते हैं
नजदीक से जाना तो पाया
वे डरपोक व्यर्थ ही डराते हैं
कांच के घरों में रहते
फिर भी बनते जजबाती हैं
कड़ी धूप में भीगती जब
मेहनत जीवन गीत गाती है

सागर गहरा खामोश है
उसके भीतर छिपे बादल हैं
आंखों में पानी बचाना जरूरी 
जो दिखा वह क्रूर काजल है
कभी भी बरस सकती हैं
घटाएं जो उमड़ आती है
कड़ी धूप में भीगती जब 
मेहनत जीवन गीत गाती है।

Saturday, 8 February 2014

आओ मिलो मेरे गीतों से

गीत : डी.के. पुरोहित


आओ मिलो मेरे गीतों से
इनसे आंखें चार करो
खुद से जो खुद को मिला दे 
उन गीतों से प्यार करो

मेरे गीत धवल चांदनी
रातों का शृंगार है
प्यासी धरती पर जैसे
बादल की मल्हार है
मंद पवन का झोंका बन 
उनका तुम दीदार करो
खुद से जो खुद को मिला दे 
उन गीतों से प्यार करो

सौ सौ फूल गुलाबों के
यह बाहों का गलहार है
हर मौसम में मुस्काते
यह तो सदा बहार है
दिल जजबातों को समझे 
इनसे तुम इकरार करो
खुद से जो खुद को मिला दे 
उन गीतों से प्यार करो

यह गीता, यह रामायण
वेदों का यह सार है
गुरुग्रंथ की वाणी इसमें
दीनधर्म संसार है
इन्हें बसाओ आंखों में
फसल नई तैयार करो
खुद से जो खुद को मिला दे 
उन गीतों से प्यार करो

इन्हें न देखो बुरी नजर से
यह तो पाक पुनीता है
जैसे रावण की लंका में
वनवास भोगती सीता है
राम बने चले आओ
पत्थर का उद्धार करो
खुद से जो खुद को मिला दे 
उन गीतों से प्यार करो

शब्दों का जीसस जिस दिन
सूली पर चढ़ जाएगा
मरियम का बेटा उस दिन
रीत नई गढ़ पाएगा
कांटों का तुम ताज सजा कर
गीतों पर उपकार करो
खुद से जो खुद को मिला दे 
उन गीतों से प्यार करो

मेरा गीत निराकार है
छंद ने दे पाया आकार
सृष्टि का यह बीज रूप तो
हर युग में होगा साकार
भावों की सह प्रसव वेदना
रचना का सत्कार करो
खुद से जो खुद को मिला दे 
उन गीतों से प्यार करो। 

कांटों सा जीवन जीते

गीत : डी.के. पुरोहित


कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद
जहर बांटते फिरते सब
अमृत की चाहते दीद

जीवन के इन धारों में
कितने धारे मिले हुए
सच्चाई से मुंह फेरा
सबके होंठ हैं सिले हुए
मतलब निकला भूल गए 
देखो जग की ऐसी रीत
कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद

देवों को हैं शीश झुकाते
मां का नित करते अपमान
पिता आश्रमों में पलते
बेटा, वाह कितना धनवान
छल-कपट-धोखा देकर
पाते कैसी भैया जीत
कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद

औरों के हैं दोष ढूंढ़ते
खुद ही खुद से अनजान
खुद को जीत नहीं पाया
जग जीतने चला वो महान
सिकंदर खूब इठलाते घूमे
द्वैष बांटते, ना बनाए मीत
कांटों सा जीवन जीते
करते फूलों की उम्मीद। 

ये बहार, ये फिजां

गीत : डी.के. पुरोहित


ये बहार, ये फिजां 
फिर खिलेगी नहीं
प्यार की वो मंजिलें 
फिर कभी मिलेगी नहीं

रास्तों को ढूंढ़ते
बढ़ चले जो कदम
मन मरीचिका हुआ
मिट न पाया भरम
प्यासी रतियां कभी
नींद को सहेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां 
फिर खिलेगी नहीं

नासमझ नहीं थे हम
साफ था हमारा मन
समझाने उन्हें भला
क्या कम किए जतन
बेरहम हवा ने कहा-
वो अब बहेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां
फिर खिलेगी नहीं

दो किनारे हम हुए
नादां लहर मचलती रही
सागर की खामोशियां
बादलों को छलती रही
कैसे अमरित गिरे
जब भाप उठेगी नहीं
ये बहार, ये फिजां 
फिर खिलेगी नहीं

बनते बिगड़ते बुलबुलों सी...

गीत : डी.के. पुरोहित



आंसुओं की जुबां में
दर्द कहता है अपनी कहानी
बनते बिगड़ते बुलबुलों सी
है छोटी सी जिंदगानी

कबीर ने कष्ट सहे
मीरा पी गई जहर
तुलसी ने बदली प्रीत
बुद्ध भटके दर-दर
अहिंसा के पुजारी को
गोली पड़ी थी खानी
बनते बिगड़ते बुलबुलों सी
है छोटी सी जिंदगानी

साथी है दिखावे के
वहां जाना है अकेला
सब बिखर जाना है
छूट जाएगा यह मेला
जिस पर करते हैं नाज
सदा न रहेगी वह जवानी
बनते बिगड़ते बुलबुलों सी
है छोटी सी जिंदगानी

माटी का पुतला मनवा
बुनता सपनों का जाल
कपट की जोड़ धनमाया
रखा उसे खूब संभाल
छूटे तन से प्राण तो
बादल थे बिन पानी
बनते बिगड़ते बुलबुलों सी
है छोटी सी जिंदगानी। 

तेरी गोदी में मेरा सर हो

गीत : डी.के. पुरोहित



तेरी गोदी में मेरा सर हो
ना दुनिया का कोई डर हो
सुहाना यह सफर हो
मंजिल की ना फिकर हो
तो राही, ओ राही...
आ जाए मजा जीने का
आ जाए मजा जीने का

पवन में सुगंध का घर हो
दुआओं में गहरा असर हो
दोस्तों में अपनी बसर हो
हो मीठा, भलेही जहर हो
तो साकी, ओ साकी...
आ जाए मजा पीने का
आ जाए मजा पीने का

नैन भीगे औ प्यासे अधर हो
हो छोटा मगर कोई घर हो
अपनों का न अपनों में डर हो
शांत और शालीन शहर हो
तो खुदा, ओ खुदा...
रंग चढ़ जाए मदीने का
रंग चढ़ जाए मदीने का